आधार से लिंक करके क्या चुनाव ईमानदारी से हो जायेंगे ?
गत दो वर्षों के दौरान देश में हुए लगभग सभी चुनावों में विपक्षी पार्टियों ने मतदाता फ्रॉड का गंभीर आरोप लगाया है। इस पृष्ठभूमि में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 18 मार्च, 2025 को नई दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक बुलायी, जिसमें केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन, यूआईडीएआई के सीईओ एस कृष्णन आदि वरिष्ठ अधिकारी व चुनाव आयोग के तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हुए। बैठक में आधार को एपिक (इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड) नंबर्स से जोड़ने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया और इस मुद्दे पर जल्द ही यूआईडीएआई (भारत का विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) से तकनीकी विचार विमर्श किया जायेगा। इस पहल का किसी राजनीतिक दल ने विरोध तो नहीं किया है लेकिन कांग्रेस ने कहा है कि चुनाव आयोग को सभी सियासी पार्टियों व स्टेकहोल्डर्स से बात करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘एक भी योग्य मतदाता को उसके मतप्रयोग अधिकार से वंचित न किये जाने के पर्याप्त सुरक्षा कवच हों’। यह ज़रूरी भी है क्योंकि बुजुर्ग नागरिकों के अक्सर उंगलियों के निशान लेना तकरीबन असंभव हो जाता है जिससे उनका आधार कार्ड नहीं बन पाता है। मतदाता सूची में भी अक्सर पूरे मोहल्ले के नाम गायब मिलते हैं। यह भी देखने में आया है कि एक घर में अगर पांच मतदाता हैं तो तीन के नाम मतदाता सूची से नदारद होते हैं। हाल ही में राजस्थान का एक मामला प्रकाश में आया था जिसमें एक पते पर सैंकड़ों मतदाता पंजीकृत थे और पत्रकार जब उस पते पर पहुंचे तो वहां कोई घर था ही नहीं।
बहरहाल यह पहला अवसर नहीं है जब आधार को वोटर आईडी से लिंक करने का प्रयास किया जा रहा है। फरवरी 2015 में वोटर आईडी को आधार से लिंक करने और डुप्लीकेट एंट्री को खत्म करने के लिए एनईआरपीएपी (नेशनल इलेक्टोरल रोल्स प्योरिफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम) लांच की थी, जिसके तहत तीन माह के भीतर ही 300 मिलियन मतदाताओं को लिंक कर दिया गया था लेकिन अगस्त 2015 में सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश आया कि केवल कल्याणकारी योजनाओं और पैन कार्ड से ही आधार कार्ड को लाज़मी तौर पर लिंक कराया जा सकता। फलस्वरूप यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। अब एपिक-आधार लिंक योजना को फिर से शुरू किया जा रहा है, विशेषकर इसलिए कि 11 मार्च 2025 को तृणमूल कांग्रेस के दस सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से डुप्लीकेट एपिक नंबरों व क्लोन आधार कार्डों के आरोपों को लेकर मुलाकात की थी। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में निर्धारित हैं, जिसकी तैयारी अभी से आरंभ हो गई है। इस बीच इस राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल को कुछ ऐसे एपिक नंबर मिले जो अन्य राज्यों में भी आवंटित किये गये थे। साथ ही उसे क्लोन आधार कार्ड भी मिले। इन्हीं ‘साक्ष्यों’ को लेकर वह चुनाव आयोग से मिली थी। विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को संसद व उसके बाहर उठाया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में भी इस बात को उठाया था। इससे पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाता सूची में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगाये थे।
इन आरोपों पर चुनाव आयोग की सफाई यह है कि मतदाता सूची तैयार करने के लिए एरोनेट डिजिटल प्लेटफार्म के आने से पहले मैन्युअल गलतियों के कारण सूचियों में डुप्लीकेशन हुआ। उसने राजनीतिक दलों को यह आश्वासन भी दिया था कि समान एपिक नंबर वाले मतदाता जो अन्य राज्यों में पंजीकृत हैं वह फिर भी अपने अधिवास कागज़ात का प्रयोग करके मतदान कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने इस मुद्दे का हल तीन माह में करने का वायदा किया है। केंद्र सरकार ने संसद को सूचित किया है कि आधार-वोटर आईडी को लिंक करना ‘प्रक्रिया संचालित’ एक्सरसाइज है और इस प्रस्तावित लिंकिंग के लिए कोई लक्ष्य या समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि जो लोग अपने आधार को अपने वोटर आईडी से लिंक नहीं करायेंगे उनके नाम मतदाता सूची से हटाये नहीं जायेंगे। जनप्रतिनिधि कानून 1950, जैसा कि चुनाव नियम (संशोधन) कानून 2021 द्वारा संशोधित किया गया है के सेक्शन 23 के अनुसार मतदाता पंजीकरण अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वह वर्तमान या भावी मतदाताओं से उनकी पहचान स्थापित करने के लिए उनके आधार नंबर स्वैच्छिक आधार पर मांग सकते हैं। अब चुनाव आयोग का कहना है कि एपिक को आधार से लिंक अनुच्छेद 326 के प्रावधानों के तहत किया जायेगा, जो कहता है कि मतदान के अधिकार केवल नागरिकों को ही दिये जा सकते हैं।
आधार कार्ड से व्यक्ति की सिर्फ पहचान स्थापित होती है। चुनाव आयोग का यह भी कहना है कि लिंकिंग जनप्रतिनिधि कानून 1950 के सेक्शन्स 23(4), 23(5) व 23(6) के प्रावधानों और डब्लूपी (सिविल) नंबर 177/2023 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप की जायेगी। सेक्शन 23(6) के अनुसार, ‘मतदाता सूची में शामिल करने के लिए दी गई कोई भी अज़र्ी इसलिए निरस्त नहीं की जा सकती कि व्यक्ति ने निर्धारित पर्याप्त कारण से अपना आधार नंबर प्रेषित नहीं किया है।’ इसका अर्थ यह हुआ कि लिंकिंग उन्हीं मामलों में की जायेगी जिनमें मतदाता ने अपनी इच्छा से आपना आधार नंबर प्रेषित किया है। चुनाव आयोग ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसने मतदाता सूचियों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में लगभग 66.23 करोड़ आधार कार्डों को अपलोड किया हुआ है। चुनाव आयोग 1 अगस्त 2022 से वर्तमान व भावी मतदाताओं के आधार नंबर ऐच्छिक आधार पर एकत्र करने का कार्यक्रम चलाये हुए है, जैसा कि उसने 2023 में संसद को बताया। आधार को लिंक करने की मंजूरी मतदाता से फॉर्म 6बी के जरिये ली जाती है, लेकिन मंजूरी वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि एपिक नंबर को आधार नंबर से जोड़ने पर मतदाता सूची से डुप्लीकेट इंट्री हटाने में मदद मिलेगी, जोकि ज़रूरी भी है लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ चिंताएं भी हैं जिन पर विचार किया जाना ज़रूरी है। आधार डाटाबेस में गलतियां हैं, जो भले ही बहुत कम हों लेकिन हैं, जिनकी वजह से मतदाता सूची में से सही वोटर्स के नाम भी हटाये जा सकते हैं। दूसरा यह कि आधार केवल रिहाईश का सबूत है न कि नागरिकता का। इसलिए इसकी वजह से मतदाता सूची से उन नामों को नहीं हटाया जा सकता जो देश के नागरिक नहीं हैं। इसके लिए चुनाव आयोग को अलग से प्रयास करने होंगे। अंतिम यह कि भले ही मतदाता सूची में आधार नंबर का उल्लेख निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो, लेकिन फिर भी उसका दुरूपयोग हो सकता है क्योंकि मतदाता सूची राजनीतिक पार्टियों में बड़े पैमाने पर वितरित की जाती है।
मतप्रयोग का हक संवैधानिक अधिकार है, जिसे किसी विधायकी प्रक्रिया से सीमित नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर्स नागरिक हैं और हर चुनावी प्रक्रिया पर उनको विश्वास होना चाहिए। इसलिए एपिक को आधार से जोड़ने के लिए देशव्यापी चर्चा होनी चाहिए और मतदाता की हर चिंता को दूर किया जाना चाहिए
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर