इस बार गेहूं का बेहतर उत्पादन होने की सम्भावना
इस वर्ष गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना है। आईसीएआर-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ले रिसर्च के डायरैक्टर डा. रत्न तिवारी, इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट के सीनियर व्हीट ब्रीडर डा. राजवीर यादव तथा पंजाब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर जसवंत सिंह सभी ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष गेहूं का उत्पादन विगत वर्षों को पार कर जाएगा, परन्तु इसके लिए अप्रैल में कटाई के दौरान मौसम का अनुकूल रहना भी ज़रूरी है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू ) के उप-कुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल का कहना है कि इस वर्ष मौसम अपेक्षाकृत ठंडा रहा और अप्रैल के शुरू तक भी तापमान 34 से 35 डिग्री सेल्सियस तक ही रहा, जिससे फसल पकने को लम्बा समय मिल गया और मौसम गेहूं की फसल के लिए बहुत लाभदायक रहा। इन कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार भारत में गेहूं का उत्पादन 115 मिलियन टन तथा पंजाब में 19 मिलियन टन (187-190 लाख टन) होने की पूरी सम्भावना है। यह उत्पादन विगत के वर्षों से अधिक है।
पंजाब में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के ‘क्रोप कटिंग एक्सपैरीमैंट’ शुरू हैं, जिनके आधार पर सही एवं असल उत्पादन के आंकड़े सामने आ जाएंगे। गेहूं की कटाई इस वर्ष कुछ देरी से हो रही है।
प्रगतिशील किसानों तथा पीएयू द्वारा करवाए गए किसान मेलों में भाग लेने वाले बड़े किसानों द्वारा भी इस वर्ष रिकार्ड उत्पादन होने के अनुमान लगाए गए हैं। डा. गोसल तथा डा. यादव के अनुसार इस वर्ष गेहूं को कोई विशेष बीमारी नहीं लगी और फसल पीली कुंगी से भी लगभग मुक्त रही। गुल्ली डंडा जो अक्सर गेहूं का कई खेतों में 40 प्रतिशत तक उत्पादन कम करने के लिए ज़िम्मेदार होता है, इस वर्ष अपेक्षाकृत कम रहा। किसानों ने शुद्ध नदीन-नाशक इस्तेमाल किए हैं और इनके छिड़काव के कारण बीमारी पर नियंत्रण ही रहा है। गेहूं के उत्पादन के लिए मौसम की मुख्य भूमिका होती है। वर्ष 2021-22 में मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण तथा मार्च में अधिक गर्मी पड़ने से भारत में उत्पादन 106.82 मिलियन टन रह गया था, जबकि वर्ष 2020-21 में 109.59 मिलियन टन था। पंजाब में गेहूं का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 148.63 लाख टन रह गया था। रकबे में कोई कमी नहीं आई थी, जो 35-36 लाख हैक्टेयर तक ही था। इस वर्ष पंजाब में 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की काश्त की गई है। यह रकबा गत वर्ष से थोड़ा कम है, जो 35.08 लाख हैक्टेयर था। इस वर्ष गेहूं के उत्पादन को लेकर किसानों के चेहरे पर खुशी है, जबकि उन्हें 2524 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। डायरैक्टर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार रिकार्ड उत्पादन होगा। वर्ष 2018 के 51.82 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के रिकार्ड उत्पादन को इस बार पार कर जाएगा। कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के कर्मचारियों अनुसार तो इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 55-60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पहुंचने की सम्भावना है। खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले के मंत्री लाल चंद कटारूचक्क के अनुसार एफसीआई ने पंजाब से 124 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है।
इस वर्ष उत्पादन बढ़ने का कारण यह भी है कि किसानों ने आईआईडब्ल्यूबीआर द्वारा विकसित की गई अधिक उत्पादन देने वाली डी.बी.डब्ल्यू-327, डी.बी.डब्ल्यू-187, डी.बी.डब्ल्यू -222 (सिवाय नीम पहाड़ी क्षेत्रों के), डी.बी.डब्ल्यू.-372, डी.बी. डब्ल्यू.-371 तथा डी.बी.डब्ल्यू.-370 किस्मों की काश्त अधिक की है। पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में पीएयू द्वारा विकसित सफल तथा अधिक उत्पादन देने वाली पी.बी.डब्ल्यू.-826 किस्म की काश्त बहुत ज़्यादा रकबे पर की गई है। इसके अतिरिक्त कुछ किसानों ने आईएआरआई द्वारा विकसित एच.डी.-3406 (एच.डी.-2967 का संशोधित रूप) किस्म की बिजाई भी की है। आईएआरआई द्वारा विकसित अधिक उत्पादन देने वाली एच.डी.-3386 किस्म की काश्त भी कुछ प्रगतिशील किसानों ने की है। अगेती बिजाई के लिए सिफारिश की गई तीसरी किस्म एच.डी.-3385 है, जो आईएआरआई द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म पीली कुंगी तथा भूरी कुंगी का मुकाबला करने में समर्थ है और कुछ किसानों ने इसकी भी काश्त की है। गेहूं की इन किस्मों की बिजाई करने से किस्मों का विकेन्द्रीयकरण तो होगा ही, उत्पादन भी बढ़ेगा। ये नई किस्में इस वर्ष चाहे सीमित रकबे में लगाई गई हैं, परन्तु आगामी वर्ष ये उत्पादन को बड़ी सीमा तक प्रभावित करेंगी।