रूस से आयात में भारी कटौती के लिए अमरीका का भारत पर दबाव
भारत द्वारा रूसी हथियारों और शस्त्रों की खरीद अमरीका को परेशान करती है। अमरीकी वाणिज्य सचिव हॉवर्डलुटनिक के अनुसारए यह भारत-अमरीका संबंधों में एक परेशानी है।
इतना कहने के बाद यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि भारत विविध संपत्तियों वाला एक बड़ा देश है, विशेष रूप से इसके प्रतिभाशाली लोग जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में सक्षम हैं। वाशिंगटन डीसी में भारतीय टीवी नेटवर्क एएनआई के साथ बात करते हुए अमरीकी वाणिज्य सचिव लुटनिक ने अमरीकी विचारों को स्पष्ट किया। लुटनिक ने बताया कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहली प्राथमिकता उन्नत विनिर्माण में अमरीका फर्स्ट है। हालांकि, इसके अलावा अमरीका के पास मित्रों और सहयोगियों के साथ सहयोग के कई क्षेत्र खुले हैं, जिन्हें भारत द्वारा खोजा जा सकता है। लुटनिक ने बताया कि विनिर्माण के इन उच्चतम तकनीक और उन्नत क्षेत्रों में से कुछ को अमरीका द्वारा एक सुविचारित नीति के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है।
विनिर्माण के उस विशिष्ट समूह के बाहर भारत के लिए विनिर्माण का एक बहुत बड़ा क्षेत्र खुला है, जिसका वह दोहन कर सकता है और देश इन उत्पादों के साथ अमरीकी बाज़ार तक पहुंच सकता है। औद्योगिक सहयोग के इन क्षेत्रों में दोनों देशों के लिए लाभ ही लाभ संभव है। वाणिज्य सचिव लुटनिक जिस बात का जिक्त्र कर रहे थे, उसके पीछे कुछ तर्क और दृष्टिकोण है। आम अमरीकियों की खपत की जरूरतों को पूरा करने वाले 90 प्रतिशत से अधिक सामान्य माल की आपूर्ति वर्तमान में चीन द्वारा की जा रही थी। इसके परिणामस्वरूप अमरीका के मुकाबले चीन का व्यापार अधिशेष बहुत अधिक हो रहा था।
डोनाल्ड ट्रम्प की नीति के तहत अमरीका इस असंतुलन को ठीक करने और इन क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को विकसित करने की कोशिश कर रहा है। यह अमरीकी रणनीतिका हिस्सा है और देश को भारत को एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरते हुए देखकर खुशी होगी।
दूसरी ओरए अमरीकी वाणिज्य सचिव ने सहजता से कहा कि यूक्रेन पर मौजूदा शत्रुतापूर्ण स्थिति के संदर्भ में यदि भारत रूस से अपने सभी हथियारों की खरीद जारी रखता है तो इससे भारतीय वस्तुओं की खरीद नीति निर्माताओं के बीच भारत के प्रति प्रतिकूल भावनाएं पैदा करेगी। अमरीका के लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली तथाकथित एसएएम-400 की खरीद थी, जो पहलगाम में आतंकवादी हमले की घटना को लेकर भारत.पाक टकराव में बेहद मूल्यवान साबित हुई थी। भारत देश में एसएएश-400 मिसाइल प्रणाली का एक और सेट तैनात करने की योजना बना रहा है।
आतंकवादी हमले पर हालिया विवाद से ठीक पहले भारत ने धीरे-धीरे रक्षा उपकरणों और हथियार प्रणाली की खरीद में विविधता ला दी है, जिसमें अमरीकी हार्डवेयर की खरीद भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में भारत ने अमरीकी प्रणालियों और हथियारों की खरीद शुरू की है।
भारत और अमरीका के बीच सहयोग का एक और क्षेत्र आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हो सकता है। उन्नत एआई सिस्टम भारतीय और अमरीकी विशेषज्ञों के बीच मिलकर बनाये जा सकते हैं और इससे बहुत फायदा होगा। उन्होंने स्वीकार किया कि इन क्षेत्रों में भारतीय दक्षता की आम तौर पर सराहना की जाती है और इनका उपयोग दोनों देशों के लाभ के लिए किया जा सकता है।
वास्तव मेंए राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा अपने ‘पारस्परिक टैरिफ’ की घोषणा के बादए भारत और अमरीका ने व्यापार वार्ता में भाग लिया है। वर्तमान में केवल कुछ ही देश गंभीर और बहुत आगे बढ़कर व्यापार वार्ता कर रहे हैं और भारत उन चुनिंदा देशों में से एक है। अमरीका जापान के साथ इसी तरह की व्यापार वार्ता कर रहा है और दक्षिण कोरिया भी इसी तरह की वार्ता कर रहा है। आंतरिक सूत्रों के अनुसारए भारत-अमरीका व्यापार वार्ता कम समय में पूरी हो सकती है। आम तौर पर एक व्यापार वार्ता कम से कम दो साल तक चलती है क्योंकि कई नाज़ुक और जटिल मुद्दों को सुलझाना होता है। फिर भी, अफवाहों के अनुसार इन्हें कुछ महीनों की अवधि में ही समेट दिया जा रहा है।
भीतरी जानकारी से संकेत मिलता है कि अगर विनिर्माण गतिविधियों को इस तरह से व्यवस्थित किया जा सके तो भारत-अमरीका व्यापार कारोबार कम समय में 500 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है। हालांकि भारत को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भूमि और श्रम बाज़ारों के सुधारों जैसे कुछ बड़े आंतरिक सुधारों की आवश्यकता होगी।
फिर भी इन सुधारों को लागू करना आसान नहीं है। ये मूल रूप से एक लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे में घरेलू राजनीतिक मुद्दे हैं। इसके लिए विभिन्न राज्यों में सत्तासीन प्रमुख राजनीतिक दलों और केंद्र के बीच लम्बी बातचीत की आवश्यकता हो सकती है और यहीं पर समस्या है।
आशाजनक संकेत यह है कि कुछ राज्य इन बाध्यताओं के बारे में बढ़ती जागरूकता दिखा रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि जो राज्य इन बाध्यताओं के प्रति सजग हैं, वे स्पष्ट प्रगति कर रहे हैंए जबकि जो राज्य अपनी कट्टर राजनीतिक स्थिति में अड़े हुए हैं, वे पिछड़ रहे हैं। इससे देश के भीतर प्रगतिशील और प्रतिगामी राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा हो सकती है जो विकास के लिए संयुक्त मार्ग निर्धारित कर सकती है। (संवाद)