विपक्षी दल से भी बेहतर नेता निकले हैं

वे लोग जो आंखें मूंद कर सत्ताधारी पार्टी के समर्थक बने रहते हैं और विपक्ष की आलोचना पर तिलमिला उठते हैं, उन्हें दो बातें समझ लेनी चाहिएं। एक तो लोकतंत्र में यह सामान्य-सी बात है, आलोचना करते हुए उन्हें अपने मतदाता का ध्यान रखना पड़ता है। दूसरे, विपक्ष में सभी नेता केवल विपक्ष की बात नहीं करते, संकट के समय व्यापक हित और देश-हित की बात भी करते हैं। पहलगाम में जो परिस्थितियां बनीं, उसके बाद जब विश्व बिरादरी के समक्ष भारत ने अपना पक्ष रखने का फैसला किया तब गरिमापूर्ण तरीके से विपक्ष के अनेक नेताओं को ‘नये भारत’ की तस्वीर पेश करने के लिए चुना गया, क्योंकि पाकिस्तान की झूठ बोलने की आदत से भारतीय शीर्ष नेता परिचित थे। इसलिए भारत की एकजुटता और सही नेरेटिव बनाने के लिए विपक्ष के बड़े नेताओं को भी अवसर दिया गया। इससे विभिन्न दलों में उभर रहे नये नेतृत्व को सामने आने का अवसर मिला, जो भारत के हित को प्रभावशाली ढंग से सामने रख पाये। सात प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करने वाले या फिर इस टीम का सम्मानित सदस्य होने वाले अधिकांश समय से सक्रिय राजनीति में हैं। उन्हें अपनी पार्टी में भी अक्सर शीर्ष रुतबा हासिल नहीं। उन्हें दूसरी या तीसरी पंक्ति का नेता माना गया। 
ए.आई.एम.आई.एम. सांसद असुद्दीन ओवैसी जैसे कुछ नेता तो अपनी पार्टी का नेतृत्व भी कर रहे थे, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से उन्होंने विश्व की राजधानियों में जाकर भारत की पोजीशन को सराहनीय ढंग से प्रस्तुत किया, उससे देश की अवाम ने उन्हें नये ढंग में देखा और परखा है। विदेश में जाकर इन नेताओं ने जिस सकारात्मक ढंग से भारत का पक्ष रखा, वैसा शायद भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता भी नहीं कर पाते। वे एक लय होकर एक दिशा में आगे बढ़े जबकि संसद में आपने उन्हें लड़ते झगड़ते पाया होगा। ओवैसी को ही देखें। भारत में वह अल्पसंख्यकों के मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पाकिस्तान पर कठोर शब्दों में प्रहार किये। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा दिखाई गई फर्जी तस्वीरों पर अच्छी तरह खबर ली और कहा कि नकल के लिए भी अकल की ज़रूरत होती है। प्रियंका चतुर्वेदी (शिव सेना यू.बी.टी.) ने भारत को न केवल बुद्ध और गांधी बल्कि कृष्ण की भूमि भी बताया, जिन्होंने पांडवों से आग्रह किया था कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो युद्ध करने से भी न हिचकिचाएं। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने हमलों का भारत द्वारा करार जवाब देने के बारे में सूचित किया। मनीष तिवारी ने पाकिस्तान को चुनौती दी कि अगर उसने आतंकवाद को प्रायोजित करना बंद नहीं किया तो भविष्य में भारत की प्रतिक्रिया बहुत तीखी होने वाली है।
इस तरह के चलन से भारत की विश्व भर में छवि बनी है। सरकार को भी कूटनीतिक लाभ मिला है। पूरे का पूरा राजनीतिक वर्ग पहलगाम के बाद सरकार की वस्तु स्थिति को भारत की वस्तु स्थिति मान कर बचाव के मूड में रहा है, लेकिन जब सर्वदलीय समूहों ने तेतीस देशों में जाकर, वहां के सभी भारतवासियों के बीच भी एक सशक्त मैसेज पहुंचा दिया कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की अमानवीय हरकतों का पर्दाफाश हो चुका है। भारत आतंकवाद के विरोध में एकजुटता से खड़ा है, जबकि पाकिस्तान के आतंकवादी हमलों से मानवता शर्मसार हो रही है।
देखना यह है कि सत्तारूढ़ दल उनका कितना कूटनीतिक स्तर पर इस्तेमाल कर सकता है। अभी यह शुरुआत है। दूसरे देशों ने इनको सुना। कई सहमत भी हुए परन्तु वे पाकिस्तान के खिलाफ खुल कर नहीं बोले। सलमान खुर्शीद ने 370 अनुच्छेद हटाने का समर्थन किया। कहा कि इससे कश्मीर के अलग होने की धारणा बनती है। इस पर उनकी अपनी पार्टी भी उनसे नाराज़ हुई। शशि थरूर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में खूब सराहना बटोर कर आए हैं। इससे भारत को बेहतर विपक्ष की उम्मीद तो है ही।

#ता निकले हैं