अमरीका में ‘समाजवादी’ शब्द
प्रत्येक विचारधारा, वह जैसी भी हो, पहले वाली वैचारिक अवधारणा को रद्द कर अपना मुकाम बनाती है। उसे प्रचलित समाज की त्रुटियां व कमियां ही नज़र आती हैं। फिर ‘विचारधारा’ को क्या समझें? विचारधारा जो है उसे अस्वीकार कर जो होना चाहिए उसी पर ज़ोर देती है और एक आदर्श दुनिया की तरफ ले जाती है। कार्ल मार्क्स (5 मई, 1818 से 14 मार्च 1883) सशर्त सिद्धांत में शोषण की अवधारणा लेकर आये पूंजीपति वर्ग दूसरे वर्ग की श्रम शक्ति का उपयोग कर मुनाफा पैदा करता है। श्रमिक वर्ग को इससे कुछ नहीं मिलता। केवल नाममात्र मजदूरी ताकि वह मरे नहीं और उसके लिए काम करता रहे। यही शोषण का व्यवहार है। इसी मूलभूत सिद्धांत पर सोवियत संघ रूस ने क्रांति की। चीन में भी क्रांति हुई। सोवियत संघ रूस और उसके साथी देश समाजवादी कहलाए। अमरीका और उसके साथी देश पूंजीवादी देश कहलाए। बरसों बरस गुज़र गये। 1940 के आसपास सोवियत संघ का विघटन हुआ। यानी हालात बदल गये लेकिन समाजवादी देश पूंजीवादी देश को अच्छा नहीं समझते रहे। अमरीका ने समाजवाद को अच्छा नहीं समझा। अब अमरीका में समाजवाद को बढ़ावा मिलने लगा है। ऐसा महसूस किया जा रहा है कि जोहरान ममदानी को अधिक चर्चा मिल सकती है। वह गाजा के समर्थक हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के ट्रम्प-विरोध को उभार रहे हैं। डैमोक्रेटिक लेफ्ट के पैरोकार हैं। जबकि ट्रम्प उन्हें ‘सौ फीसदी कम्युनिस्ट पागल’ के नाम से बुलाते हैं। ट्रम्प डैमोक्रेटिक लेफ्ट की चार महिलाओं की चौकड़ी को उनके विख्यात होने के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। आजकल हवा कुछ ऐसी है कि ट्रम्प द्वारा अपमान किये जाने को कोई ज्यादा बुरा नहीं मानता। ममदानी के चुनावी वायदों की एक झलक देखें। वह बसों का किराया खत्म कर देंगे। दिल्ली, कर्नाटक, तेलंगाना में यह प्रयोग हो चुका है। समाजवाद के प्रति लगाव जितनी अचम्भे की बात है, उतनी ही रोचकता से भरपूर है। न्यूयार्क के युवा इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। अमरीका के अधिकांश बड़े शहरों की यही स्थिति है। वहां डैमोक्रेटों का नियंत्रण चल रहा है। ममदानी उनके ‘लेफ्ट’ में खड़े हैं, जिस ‘लेफ्ट’ का नाम अमरीका में कोई सुनना नहीं चाहता था। पूंजीवादी सभ्यता का ब्रांड होने वाला शहर अब विरोधाभास में है। क्या इसकी सफलता समाजवाद के आगमन की भूमिका तैयार करती नज़र आती है? या फिर अमीरी इतनी ज्यादा है कि वामपंथ के लिए गुंजाइश बन रही है। यूरोप में भी यही कुछ हुआ था। अमीरों ने वामपंथ को जगह दी थी। समूह समाज समाजवाद के प्रति आकर्षण तो रखता ही है। जब चीज़ें उल्ट जाती हैं तो दक्षिणपंथ लौट आता है।
मार्क्स के सपनों का समाजवाद इस समय विश्व भर में कही नहीं, परन्तु लाखों लोगों की आंखों में आज भी समाजवाद का सपना ज़िंदा है। मार्क्स ने कहा था ‘अब तक के समाज का इतिहास कर्म-संघर्षों का इतिहास है। दुनिया भर में जन संघर्ष हुए हैं। जन-आन्दोलन दुनिया भर में वर्ग-संघर्षों के विभिन्न रूप ही हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘स्वतंत्रता’। एक भ्रामक शब्द हो सकता है, लेकिन प्रतिबद्ध लोग पूछते हैं कि क्या स्वतंत्रता और अभाव एक साथ रहेंगे? क्या हम लोकतंत्र को ‘रेवड़ी कल्चर’ से अलग खड़ा करके एक अधिक मानवीय समाज विकसित नहीं कर सकते?



