ज़िद्दी राजू को मिला सबक
राजू बहुत ज़िद्दी था। स्कूल हो, घर हो या खेल का मैदान, उसे जिस काम को करने से मना किया जाता उसे वह जानबूझकर ज़रूर करता था, ज़िद्दी जो था। एक दिन स्कूल में क्रिकेट मैच चल रहा था। राजू भी टीम में था। जब बल्लेबाज़ी करने के लिए उसका नंबर आया तो वह हेलमेट लगाना भूल गया। जब वह पिच पर पहुंचा तो अंपायर ने उससे कहा, ‘बेटा! तेज़ गेंदबाज़ी हो रही है, विकेट पर असमतल उछाल भी है, तुम पवेलियन से अपना हेलमेट मंगा कर लगा लो।’
राजू नियमित हेलमेट लगाकर ही बल्लेबाज़ी करता था, लेकिन उस दिन क्योंकि अंपायर ने टोक दिया था राजू को अपनी आदत के अनुसार ज़िद चढ़ गई। उसने अंपायर से कहा, ‘हेलमेट कमज़ोर व डरपोक बैटर्स लगाते हैं, जो अच्छा खेलना नहीं जानते हैं। वेस्टइंडीज के महान बैटर विव रिचर्ड्स भी तो बिना हेलमेट के खेलते थे। वो मेरे आदर्श हैं। मैं उनकी तरह ही आंख व हाथ के कोआर्डिनेशन से खेलता हूं। मुझे कुछ नहीं होने का। आप चिंता न करें।’ राजू की ज़िद के आगे अंपायर खामोश हो गये।
उस दिन संयोग से राजू के शरीर पर कोई गेंद नहीं लगी। उसने अर्द्धशतक लगाया। उसकी टीम भी जीत गई। इस सफलता से तो राजू की ज़िद में वृद्धि हो गई। वह पहले से अधिक ज़िद्दी हो गया। उसके माता-पिता, घर के अन्य बुजुर्गों और टीचर्स ने उसे खूब समझाया कि वह बेकार की ज़िद न किया करे और हर फैसला सोच समझकर होशियारी के साथ लिया करे लेकिन वह कहां सुनने वाला था। इसी तरह दिन बीतते गये। राजू की ज़िदें भी बढ़ने लगीं। उसने यह शेर भी याद कर लिया, जिसे वह निरंतर दोहराता रहता था- ‘ज़िदें तो शान हैं रईसज़ादों की/जो चौथी सिम्त न जाये वो शहज़ादा क्या।’
राजू अपना अलग रास्ता बनाने की बजाय अक्सर गलत या खतरनाक मार्ग का चयन करता, ज़ाहिर है अपनी ज़िद की वजह से। एक दिन राजू अपने मम्मी पापा के साथ नदी के किनारे पिकनिक मनाने के लिए गया था। उसके पापा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा! तुम्हें तैरना नहीं आता है, इसलिए नदी के किनारे नहीं खेलना।’
अपने पापा की बात सुनकर राजू को ज़िद चढ़ गई। जब उसके मम्मी पापा चहलकदमी करते हुए कुछ दूर निकल गये तो राजू नदी के किनारे चला गया और वहां दौड़ने लगा। अचानक उसका पैर फिसल गया और वह नदी में गिर गया। उसे तैरना नहीं आता था। वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, ‘बचाओ, बचाओ।’ उसकी आवाज़ सुनकर उसके पापा भी नदी किनारे पहुंच गये। अन्य लोग भी जमा हो गये। उसके पापा ने कहा, ‘मैंने तुम्हें मना किया था। देख लिया अपनी ज़िद का नतीजा।’
राजू बहुत शर्मिंदा हुआ। वह अपने किये पर पछताने लगा। उसने वायदा किया, ‘अब से मैं ज़िद नहीं करूंगा। सोच समझकर निर्णय लूंगा। बड़ों का कहना मानूंगा।’ उसके पापा ने लम्बी सी लकड़ी उसकी तरफ की। लकड़ी को पकड़कर राजू नदी से सुरक्षित बाहर आ गया।
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