पर्वत पूजा के भाईचारे का विशिष्ट पर्व है पांग ल्हाब्सोल

भारत की सांस्कृतिक विविधता पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक इस कदर विविध और विराट है कि कदम कदम पर आपको चकित करती है। अपने यहां कहीं पोंगल, कहीं लोहड़ी, कहीं बिहू, कहीं गणेश उत्सव तो कहीं पांग ल्हाब्सोल जैसे पर्वों की इतनी विविधता है कि आप उन्हें किसी एक सांस्कृतिक खांचे में रख ही नहीं सकते और किसी एक सांस्कृतिक नज़र से देख नहीं सकते। हर उत्सव अपने आपमें में इतना रंगीन और उत्सवधर्मिता से परिपूर्ण है कि उसके सामने दूसरे सभी फीके लगते हैं। तिब्बती कैलेंडर के मुताबिक हर साल भाद्रपद महीने में आने वाला सिक्किम का अनूठा सामुदायिक पर्व पांग ल्हाब्सोल इस साल 12 सितंबर को मनाया जायेगा। यह सिक्किम का एक बेहद खास और अनूठा त्योहार है, जो मुख्यत: सिक्किम और दार्जिलिंग क्षेत्र में रहने वाले भूटिया और लेपचा समुदायों द्वारा आपसी भाईचारे को मज़बूत करने की याद में मनाया जाता है। 
दरअसल पांग का मतलब होता है सामूहिक पूजा या समारोह तथा ल्हाब्सोल का मतलब होता है देवताओं को धन्यवाद अर्पित करना। मतलब सिक्किम के लोग इस पर्व के जरिये कंचनजंगा पर्वत को अपना संरक्षक देवता मानते हुए, उसकी संरक्षण शक्तियों को धन्यवाद अर्पित करने के लिए मिलकर सामूहिक पूजा करते हैं। लेपचा और भूटिया समुदाय इस पर्व के कारण आपस में भाईचारे के बंधन से बंधे हुए हैं और इसी भाईचारे की एकता के लिए ली गई शपथ की याद में यह रंगीन उत्सव मनाते हैं। क्योंकि कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला को सिक्किम का जनजातीय समुदाय अपना संरक्षक देवता मानता है, इसलिए उसके संरक्षण को धन्यवाद देने के लिए हर साल पांग ल्हाब्सोल का अनूठा पर्व मनाता है।
इस पर्व की शुरुआत तब हुई थी, जब यहां के लेपचा और भूटिया समुदायों द्वारा आपसी एकता की शपथ ली गई थी। इसी शपथ की याद मे इस पर्व के जरिये हर साल मनाया जाता है। पांग ल्हाब्सोल एक विशिष्ट धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। इसमें बौद्ध अनुष्ठान, पूजा मंत्र और मुखौटा नृत्य का संगम होता है। लोग आपस में मिलकर चाम डांस यानी मुखौटा नृत्य करते हैं। यही दोनों समुदायों की मिलकर पर्वतराज कंचनजंगा की गई सामूहिक प्रार्थना होती है। दरअसल पांग-तोचाम नृत्य दोनो समुदायों के विशिष्ट लोगाें द्वारा मिलकर किया जाता है और यह योद्धा व देवताओं का रुपक होता है। यह त्योहार सिर्फ सामुदायिक पूजाभर नहीं है बल्कि सिक्किम की पहचान और यहां की सामूहिक एकता की प्रतीक है। इस पूजा के जरिये प्रकृति, पर्वत और जमीन को जीवित शक्तियों का दर्जा दिया जाता है और इन सभी के संरक्षक कंचनजंगा पर्वत को सामूहिक पूजा के जरिये खुश किया जाता है ताकि यहां के लोगों का सुख और समृद्धि अक्षुण्ण रहे।
यह पर्व नदियों, जंगलों और धरती के प्रति विनम्रता का प्रतीक है। इससे पता चलता है कि भारतीय भूमि में तब भी पर्यावरण के प्रति सजगता बरकरार थी, जब दुनिया के दूसरे हिस्सों में दूर-दूर तक ऐसा कहीं नहीं था। जैसा कि हम जानते हैं सिक्किम की संस्कृति में पर्यावरण का महत्व बहुत है, इसलिए सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और यहां तिब्बत से आये भूटिया समुदाय के लोग अपने जीवन को सुखी और समद्ध बनाने के लिए कंचनजंगा पर्वत को अपना कुल देवता मानकर पूजा करते हैं। यह पूजा सामूहिक रूप से इसलिए की जाती है ताकि सदियों पहले दोनो समुदायों द्वारा आपस में ली गई भाईचारे की शपथ को मजबूती से जारी रखने के लिए इसे याद किया जाता है यानी यह सांस्कृतिक पर्व सिर्फ पूजा के लिए नहीं बल्कि भाईचारे और एकता की गांठ को मजबूती देने के लिए मनाया जाता है। क्योंकि यह सिक्किम का बहुत लोकप्रिय पर्व है, जिसमें तरह तरह के मुखौटों को पहनकर विशेष पर्वतीय नृत्य किया जाता है, इसलिए इस त्योहार में शामिल होने के लिए और इस सांस्कृतिक पर्व की मस्ती को जीवंत रूप से महसूस करने के लिए हर साल यहां पांग ल्हाब्सोल के मौके पर लाखों की तादाद में विदेशी सैलानी आते हैं और इस जीवंत नृत्योत्सव का हिस्सा बनते हैं।
रातभर चलने वाले इस नाच, गाने और जमकर खाने पीने के पर्व में कई तरह की धार्मिक, अनुष्ठानिक गतिविधियों के साथ लोककला और रंगमंच की जीवंत विशिष्टता शामिल होती है। इसलिए सिक्किम का यह विशेष सांस्कृतिक पर्व इसकी पहचान बन गया है। इस पर्व के जरिये सिक्किम के स्थानीय लोग यह भी संदेश देते हैं कि किये गये वायदों को इतनी प्रतिबद्धता से मनाया जाना चाहिए, फिर चाहे वह भाईचारे का वायदा ही क्यों न हो। पांग ल्हाब्सोल पर्व वास्तव में मानव समाज की संस्कृति नहीं है बल्कि प्रकृति पूजा की संस्कृति भी है। सिक्किम का यह पर्व भारत के अनेक प्रकृति से जुड़े पर्वों की श्रृंखला का हिस्सा है, जो भारतीय संस्कृति की विराटता को समृद्ध करता है। पांग ल्हाब्सोल जैसा सांस्कृतिक पर्व हमें यह याद दिलाता है कि लोककलाओं के जरिये भाईचारे और पर्यावरण को बचाया जा सकता है। इस तरह देखें तो पांग ल्हाब्सोल भारत की सांस्कृतिक आत्मा का दर्पण है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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