सर्फिंग में भारत के लिए पहला पदक जीतने वाले रमेश बुधियाल

महाबलिपुरम की लहरें अभी निश्चित लय में स्थिर नहीं हुई थीं, जिसकी 24 वर्षीय रमेश बुधियाल उम्मीद कर रहे थे। फिर उन्हें अपना मार्ग मिल गया 6.17 का स्कोर अर्जित करने के लिए। इण्डोनेशिया के पजार अरियाना और दक्षिण कोरिया के कनोया हीजे उनसे आगे थे। अंतिम चरण में रमेश ने कभी ऊंची उठती तो कभी नीची रहती लहरों के बावजूद अपना संयम बनाये रखा 6.43 के स्कोर के लिए। उनका कुल स्कोर 12.60 हुआ। हॉर्न बज गया। रमेश के चेहरे पर मुस्कान आयी और उन्होंने अपना बोर्ड ऊपर उठा लिया। वह एशियन सर्फिंग चैंपियनशिप्स में भारत के लिए ऐतिहासिक पहला व्यक्तिगत पदक जीतने वाले खिलाड़ी बन गये थे। उन्होंने कांस्य पदक जीता।
कुछ साल पहले तक कोई नहीं कह सकता था कि भारत में सर्फिंग का विकास इतनी तेज़ी से होगा। लेकिन हर साल हम मज़बूत होते जा रहे हैं। रमेश इस परिवर्तन के साक्षी हैं। वह पांच साल के थे, जब उनका लहरों से परिचय हुआ था, केरल के तटवर्ती शहर कोवलम में। उनके पैरेंट्स इस शहर में कर्नाटक के मुरादी टांडा से कोवलम आये थे, कपड़े की दुकान खोलने के लिए। स्कूल के बाद रमेश उन बच्चों से तैराकी सीख रहे थे, जो पैदा ही तैराक हुए थे। उन्हें समुद्र से प्यार होता जा रहा था। फिर एक दिन रमेश ने अपने एक दोस्त कृष्ण थागारप्पा (जो सब सर्फिंग इंस्ट्रक्टर हैं) को बोर्ड पर देखा। वह क्या कर रहे हैं? वह कैसे कर रहे हैं? उन्हें वेटसूट कहां से मिला और वह अजीब फ्लोटिंग प्लेटफार्म? रमेश के इन सवालों का जवाब देने के लिए कृष्ण उन्हें जेली बिगोल के पास ले गये, जो बेल्जियन हैं और जिन्होंने एनजीओ कोवलम सर्फ क्लब की स्थापना की है व उसमें सर्फिंग सिखाते भी हैं। 
यह क्लब बच्चों में स्कूल के बाद सर्फिंग को बेहतर सेहत व आउटडोर एक्टिविटी के रूप में प्रोत्साहित करता है। बिगोल ने रमेश को बोर्ड और कुछ शिक्षा दी। रमेश के लिए सर्फिंग ऐसी हो गई जैसे मछली के लिए पानी। वह असामान्य रूप से पानी के लिए तैयार रहने लगे। पहले क्षण से उन्हें पानी से प्यार हो गया था। रमेश के जीवन में बिगोल का गहरा प्रभाव पड़ा। रमेश के पैरेंट्स जब इस खेल को लेकर डर व घबराहट से भरे हुए थे, तो बिगोल ने उन्हें आश्वस्त किया। बिगोल ने रमेश व अन्य बच्चों में सर्फर संस्कृति उत्पन्न की, जिसका संबंध बांटने, दया व सहयोग से है। बिगोल बच्चों के लिए तीसरे पैरेंट और सबसे दोस्ती करने वाले शिक्षक बन गये। वह बच्चों के साथ हंसते, उन्हें कहानियां सुनाते व अच्छा खाना खिलाते। वह सर्फ सीजन में अब भी नये बोर्ड्स व सर्फ शॉर्ट्स से भरे बैग के साथ बेल्जियम से आते हैं। बिगोल जैसे शिक्षकों ने ही भारत में सर्फिंग का नक्शा बदला है। अब तक बिगोल के 20 छात्र इस खेल को प्रोफेशन के तौर पर अपना चुके हैं। रमेश भी उनमें से एक हैं।
रमेश जब 13 साल के हुए तो उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। यह एकदम नया अनुभव था, जिसकी तीव्रता व जोश से उन्हें आनंद आने लगा। फ्री-सर्फिंग ध्यान लगाने जैसी है। इसमें कोई दबाव नहीं होता। बस आप होते हैं और पानी। लेकिन प्रतिस्पर्धात्मक-सर्फिंग एकदम अलग है, जिसमें जीतने से रमेश को एहसास हुआ कि वह दबाव में सर्वश्रेष्ठ लहर को भी पकड़ सकते हैं और वह वास्तव में इसमें कॅरियर भी बना सकते हैं। रमेश ने 10वीं कक्षा के बाद पढ़ना छोड़ दिया और इस खेल पर फोकस करना तय किया। प्रतिस्पर्धा ने उन्हें संयम की शक्ति प्रदान की और वह रूटीन दिया जिसका अब वह पालन करते हैं। हर मुकाबले से पहले वह लगभग आधा घंटे तक समुद्र को देखते रहते हैं, लहरों को ट्रेक करते हैं और उनके पैटर्न को समझने का प्रयास करते हैं। फिर जब वह बोर्ड पर होते हैं, तो इन तस्वीरों को अपने मन में दोहराते हैं ताकि अपनी अगली चाल को तय करने में मदद मिल सके। उन्हें बैरल लहरें पसंद हैं, जो लगभग टनल की तरह बंद होती हैं। ‘क्लोज-आउट’ लहरें जितनी मोटी होती हैं, उतना ही अधिक कठिन उन्हें नेविगेट करना होता है। यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है कि वह कहां बंद होंगीं या वह किस प्रकार ध्वस्त हो जायेंगी और इससे योजना बनाने के लिए बहुत कम समय मिल पाता है। 
सर्फिंग में स्कोर स्पीड, पॉवर, फ्लो और मेजर व क्रिटिकल टर्न से तय होता है। लहरें जितनी अधिक ऊंचीं होंगी उतना ज्यादा समय सर्फर को मिल जाता है, जजों को प्रभावित करने के लिए। महाबलिपुरम में एशियन चैंपियनशिप्स (भारत ने जिसकी पहली बार मेज़बानी की) के दौरान किस्मत से लहरें 4 से 8 फीट ऊंचीं थीं, जिससे रमेश को लाभ मिला। उन्होंने विश्वास से सर्फ किया और पदक भी जीता। सर्फिंग में एक चीज़ नहीं सिखायी जा सकती- स्टाइल, जो रमेश में प्राकृतिक रूप से है, फ्लो, तकनीक व टाइमिंग के साथ। रमेश अधिक बोलते नहीं हैं। वह लहरों पर खुद को व्यक्त करते हैं। उन्हें जो कुछ कहना होता है, वह समुद्र में कहते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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