कारपोरेट जगत में अब है ‘स्किल’ का जलवा
पहले जब कोई कहता था कि उसने आईआईटी, आईआईएम, हार्वड्स या ऑक्सफोर्ड से डिग्री ली है, तो कारपोरेट जगत में उसे एंट्री ऑटोमेटिक ही मिल जाती थी। लोग उससे ज्यादा सवाल जवाब करने की कोशिश नहीं करते थे। लेकिन हाल के कुछ सालों से इस चलन में कमी आ रही है बल्कि सच तो यह है कि अब बड़ी कारपोरेट कंपनियां इस बात की परवाह नहीं करतीं कि डिग्री कितने एलीट एकेडमिक संस्थान से है। आज नियुक्ति का व्यवहारिक परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है। एलीट डिग्रियों के पीछे जो पहले जादुई ताकत हुआ करती थी, वह अब नहीं रही। अब बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने इम्प्लॉयी से परफोर्मेंस चाहती हैं, नतीजा चाहती हैं, उसकी डिग्रियां देखकर अपनी आंखों की संतुष्टिभर नहीं चाहतीं। यही कारण है कि दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियां जैसे- गूगल, एप्पल, आईवीएम आदि में कई जॉब से हाल के सालों में डिग्री की अनिवार्य शर्त खत्म कर दी है, अब उन्हें सिर्फ रखे जाने वाले इम्प्लॉयी में प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल से ही लेना देना है यानी स्किल और आउटपुट अब पहले है, डिग्री बाद में है। यही कारण है कि आज बड़ी से बड़ी कंपनियां आपकी ऑनलाइन डिग्री पर ही भरोसा कर लेती हैं। किसी को इसकी ज़रूरत नहीं है कि आपने किसी एलीट शिक्षण संस्थान के कैंपस में वक्त गुजारा है या नहीं।
दरअसल साल 2018 के बाद से दुनिया की ज्यादातर कंपनियों में स्किल बेस्ड हायरिंग का चलन शुरु हुआ है। तब से लगातार कंपनियां भर्ती किये जाने वाले कर्मचारियों की डिग्रियों से ज्यादा उनकी कुशलता को महत्व दे रही हैं। खास तौर पर एआई और ग्रीन जॉब जैसे क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए साल 2018 से 2023 के बीच इंग्लैंड में एआई रोल्स की मांग में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई और विश्वविद्यालय डिग्री की मांग में 15 प्रतिशत की गिरावट आयी। मतलब साफ है कि स्किल की वैल्यू पर अब बहुत ज्यादा जोर बढ़ गया है। कई कंपनियां माइक्रो सर्टिफिकेट, बूट कैंप और कौशल प्रशिक्षण वर्कशॉप को प्राथमिकता दे रही हैं। पहले गूगल और एप्पल जैसी टॉप कंपनियां टॉप यूनिवर्सिटी डिग्रीधारियों को ही अपने यहां भर्ती किया करती थीं। लेकिन इन्होंने भी 2018 के बाद से इस तरह की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है।
स्टार्टअप्स में भी यही कल्चर है
भारत के मशहूर स्टार्टअप्स जैसे- पेटीएम, ओला, जोमटो और जेरोढा में आजकल उम्मीदवारों की डिग्री पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता बल्कि इस बात पर ध्यान ज्यादा रहता है कि उम्मीदवार के काम करने का ट्रैक रिकॉर्ड और उसका स्किल क्या है? यही वजह है कि आजकल किसी वी. टेक डिग्रीधारी से कहीं ज्यादा प्राथमिकता एक ऐसे वेब डेवलपर को मिलती है, जिसने ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स, हैक ऑन या गिट हब्स पर अच्छे प्रोजेक्ट दिखाये हैं। इसी तरह इन दिनों हिंदुस्तान में ज्यादातर सेमीकंडेक्टर कंपनियां फ्रेशर्स को 6 से 12 लाख वार्षिक पैकेज पर ले रही हैं। ये कंपनियां उन उम्मीदवारों को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं, जिन्होंने एफपीजीए, वीएलएसआई डिजाइन, एआई हार्डवेयर प्रोजेक्ट्स में काम किया है, चाहे उनका कॉलेज या यूनिवर्सिटी कहीं की भी हो। कहने का मतलब यह है कि स्किल और प्रैक्टिकल एक्सपोजर अब डिग्री से बड़ा फैक्टर बन चुका है।
फ्रीलांसिंग और गिग इकोनॉमी
अपवर्क, फीवरर या टैपटॉल जैसे प्लेटफॉर्म्स पर क्लाइंट सिर्फ यह देखते हैं कि व्यक्ति का प्रोफाइल और स्किल कैसा है? उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपने हार्वर्ड से एमबीए किया है या किसी छोटे शहर से बीकॉम। अगर आपने दो हफ्तों में एक मोबाइल एप बना लिया तो आपको प्रोजेक्ट मिलेगा, न कि उस उम्मीदवार को मिलेगा, जिसकी डिग्री कितनी ही बड़ी हो, मगर एक एप बनाने में जिसके पसीने छूट रहे हों।
आखिर क्यों हो रहा है यह बदलाव?
इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि आज तकनीक बहुत तेजी से बदल रही है। नई टेक्नोलॉजी इतनी जल्दी नई हो रही है कि केवल डिग्री पर टिके रहने से आज काम नहीं चल रहा। कंपनियों को आज ऐसे लोग चाहिए, जो तुरंत काम शुरु कर सकें। तुरंत काम वही शुरु कर सकते हैं, जिनके पास पहले से ही प्रैक्टिकल नॉलेज हो। इसलिए आजकल ऐसे कर्मचारियों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे कोरसेरा, यूडेमी और नेपटोल से स्किल हासिल कर रखी है। इसलिए यह व्यवहारिक तौर पर बिल्कुल सही है कि इन दिनों कारपोरेट दुनिया में आपकी एलीट डिग्रियों की बजाय आपके काम करने की व्यवहारिक क्षमताएं और कुशलताएं देखी जाती हैं। इन दिनों कंपनियां उम्मीदवारों की डिग्रियों पर ज्यादा जोर इसलिए नहीं देतीं, क्योंकि अनेक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ने डिग्रियाें में जो लंबे समय के बाद स्किल सिखायी जाती थी, वही स्किल अब महज कुछ महीनों के कोर्स में सिखा देते हैं।
यही कारण है कि पहले जो तमाम कुशलताएं लोग कई कई सालाें तक एमआईटी और आईआईटी जैसे संस्थानों में पढ़ाई करके सीखते थे, अब वो कुशलताएं आज के तेजतर्रार नौजवान अपने लैपटॉप और इंटरनेट के जरिये गांव में बैठे हुए ही सीख लेता है। सबसे बड़ी बात यह है कि पहले इस तरह की सीखी गई कुशलताओं को प्रैक्टिकल इस्तेमाल के प्लेटफॉर्म्स नहीं थे या बहुत कम थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर