तिजोरीवाला का दीपक तिजोरी बनने तक का स़फर

वह पारसी ईरानी मूल की थीं, नृत्य का शौक था, 1950 के दशक में सुनील दत्त के साथ रेडियो कार्यक्रम किया करती थीं और फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश रखती थीं, जो पूरी न हो सकी चूंकि मेहसाणा, गुजरात के एक रूढ़िवादी परिवार में विवाह हो गया था, जिसे बहू-बेटियों का घर से निकलना पसंद न था। इस परिवार का पुश्तैनी काम तिजोरी बनाना था, इसलिए तिजोरीवाला कहलाता था और कारोबार के सिलसिले में बॉम्बे (अब मुंबई) शिफ्ट हो गया था। वह जब इस परिवार में देवकीनंदन तिजोरीवाला की पत्नी बनकर आयीं, तो उनका नाम इंद्राणी तिजोरीवाला हो गया (मूल नाम किसी को याद न रहा)।
इंद्राणी व देवकीनंदन के घर में 28 अगस्त 1961 को एक सुंदर लड़के ने जन्म लिया, जिसका नाम दीपक तिजोरीवाला रखा गया। इंद्राणी बड़े पर्दे पर आने के अपने सपने को अपने बेटे के ज़रिये साकार होता देखना चाहती थीं, इसलिए वह दीपक को बचपन से ही अभिनय की दुनिया में जाने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद दीपक ने मुंबई के नरसी मोनजी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां उनकी अभिनय में रूचि अधिक गहरी होती चली गई। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने एक थिएटर ग्रुप ज्वाइन कर लिया, जहां उनकी मुलाकात व दोस्ती आमिर खान, आशुतोष गोवारिकर, परेश रावल जैसे अनेक कलाकारों से हुई, जो आगे चलकर बड़े नाम बने। कॉलेज के दिनों में दीपक हर नाटक में हीरो की भूमिका में हुआ करते थे और उन्हें यकीन हो चला था कि कॉलेज से निकलते ही फिल्म निर्माता उन्हें हीरो लेने के लिए कतार में खड़े होंगे। लेकिन फिल्मी दुनिया में प्रवेश करना इतना आसान कहां है? वास्तविक संसार में कदम रखते ही उम्मीदों के हसीन सपने चकनाचूर हो गये। फिर भी दीपक ने हार नहीं मानी, अपनी मां की खातिर।
बॉलीवुड जितना बाहर से चमकदार दिखायी देता है उतना बल्कि उससे भी अधिक अंदर संघर्ष से भरा है। भाई-भतीजावाद के चलते ब्रेक तो मिल जाता है, लेकिन उसके बाद भी पैर जमाने आसान नहीं होते हैं। अगर आसान होते तो राज कपूर अपने बेटे राजीव कपूर को और यश चोपड़ा अपने बेटे उदय चोपड़ा को दिलीप कुमार बना देते। बाहर के लोगों के लिए तो ब्रेक मिलना भी लोहे के चने चबाने से कम नहीं होता। बॉलीवुड में कदम रखने के लिए संघर्ष की हर किसी की अपनी एक जुदा कहानी है। एक कहानी दीपक की भी है। फिल्मों में काम पाने के लिए वह दिन में सुबह से शाम तक निर्माताओं के दफ्तरों के चक्कर लगाते और रात में एक होटल में काम किया करते थे, ताकि अपनी मां के सपने को साकार कर सकें। उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’ व ‘डर’ फिल्मों के लिए भी कामयाब ऑडिशन दिया था, उनका चयन भी कर लिया गया था, लेकिन बाद में मालूम हुआ कि उनकी जगह क्रमश: सलमान खान व शाहरुख खान को दे दी गई है। आखिरकार उन्हें एक फिल्म ‘पहला नशा’ (1993) में बतौर हीरो ब्रेक मिल ही गया, जिसे उन्होंने दीपक तिजोरीवाला के नाम से की। यह फिल्म फ्लॉप रही, फिर किसी ने दीपक को बतौर हीरो अपनी फिल्म में नहीं लिया। तिजोरीवाला सरनेम भी उन्हें हीरो का सा एहसास नहीं करा रहा था, विशेषकर लड़कियों के संदर्भ में, इसलिए उन्होंने बाद में अपना स्क्रीन नेम दीपक तिजोरी रख लिया।
आप सोच रहे होंगे कि जब दीपक का संबंध तिजोरीवाला परिवार से था, तो उन्हें होटल में काम करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? दरअसल, हर किसी को उतार-चढ़ाव के दिन देखने पड़ते हैं। दीपक के घर की आर्थिक स्थिति भी कमज़ोर हो गई थी। पिता की आमदनी सीमित थी और बड़े भाई के कंधों पर परिवार की ज़िम्मेदारी थी। ऐसे में दीपक के लिए मजबूरी हो गई कि वह बांद्रा के एक होटल में रात में फ्रंट डेस्क पर काम करें ताकि दिन में निर्माताओं के दफ्तरों के चक्कर लगा सकें। यह उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल वक्त था, लेकिन इसने उन्हें मज़बूती प्रदान की। दिनभर संघर्ष और रातभर काम, यही उन्हें ज़िंदा रखने का सबब बन गया। बहरहाल, जहां चाह होती है, वहां राह भी निकल ही आती है। दीपक हैंडसम तो थे ही, उन्हें मॉडलिंग का काम मिलने लगा। एक दिन एक्टर अवतार गिल का उन्हें फोन आया कि महेश भट्ट उन्हें तलाश कर रहे हैं। दीपक ने तुरंत उनसे संपर्क किया और उन्हें फिल्म ‘आशिकी’ में दोस्त का किरदार मिल गया। 
उनका काम पसंद किया गया और फिर तो फिल्मों की लाइन लग गई- ‘सड़क’, ‘दिल है कि मानता नहीं’, ‘खिलाड़ी’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘कभी हां कभी न’, ‘अंजाम’ आदि। ये सभी फिल्में हिट रहीं, दीपक का काम भी पसंद किया गया और वह एक सह-अभिनेता के रूप में स्थापित हो गये। बाद में उन्होंने फिल्म निर्देशक (ऑप्स, 2003) के रूप में भी अपनी किस्मत आजमायी और गुजराती फिल्मों व टीवी (सैटरडे सस्पेंस, डायल 100 आदि) में भी काम किया। एक निर्देशक के तौर पर तो दीपक अभी तक कोई हिट फिल्म नहीं दे सके हैं, एक्टर वह वास्तव में प्रतिभाशाली हैं, लेकिन इसके बावजूद वह अभिनय से अधिक अपनी शादी को लेकर चर्चा में रहे हैं। उन्होंने शिवानी तोमर से शादी की और इस बंधन से बेटी समारा ने जन्म लिया। शादी के लगभग दो दशक बाद दीपक व शिवानी में किसी बात पर तीखी बहस हुई। शिवानी ने उन्हें घर से निकाल दिया, बात अदालत तक पहुंची, दीपक को मालूम हुआ कि शिवानी ने अपने पहले पति से तो तलाक ली ही नहीं थी, इसलिए वह किसी और की पत्नी के साथ रह रहे थे और उन्हें इसका पता भी न था। शिवानी का दावा है कि दीपक को सबकुछ मालूम था। मामला अदालत में विचाराधीन है, इसलिए इस पर अभी केवल इतना ही।                                            
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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