राजनीतिक विरासत पर भी कुछ सोचें

क्या हम सांस्कृतिक मूल्यों से हाथ धो चुके हैं? क्या नैतिकता की किताबें रद्दी में बिक रही हैं। भारत को सदाचार क्या विदेश से लेना पड़ेगा? अगर वहां भी नहीं मिला तब? बिहार में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल की एक राजनीतिक रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल हमारी राष्ट्रीय राजनीति की गिरावट का स्पष्ट संदेश है। अफसोसजनक बात यह है कि एक तो गिरावट पर कोई स्वीकृति नहीं। दूसरे अब यह गिरावट आकस्मिक नहीं, अपितु व्यवस्थित रूप धारण कर चुकी नज़र आ रही है। इस तरह की गिरावट गांधी के समय में नहीं थी। उनके लिए ‘हिन्द स्वराज’ अंग्रेज़ी शासन से निजात पाने का नहीं, पश्चिमी सभ्यता की गुलामी से छूटने का साधन था। उनकी लड़ाई मूलत: सभ्यता की लड़ाई थी। उनके लिए ‘हिन्द स्वराज’ एक ऐसी व्यवस्था तक पहुंचने का नाम है जो एक ‘उच्चतर सभ्यता’ के नियमों से संचालित हो।
भारतीय राजनीति एक समय में वैचारिक स्टैंड लेने तक सीमित रही है। उसमेें एक दूसरे पर कीचड़ नहीं उछाला जाता था, लेकिन आज की सूरते हाल बिल्कुल अलग जान पड़ती है। कीचड़ उछालने वालों को मज़ा आने लगा है तो इसे नैतिक मूल्यों का पतन, शिष्टाचार का हृस ही माना जा सकता है। जबकि हाथ कीचड़ उछालने वाले के भी गंदे हो रहे हैं। गरिमा और शिष्टाचार की गिरावट ने कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया है। 
पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने शिष्टाचार को गंवाया नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी गरिमा के साथ विपक्ष से संवाद करते थे। उनसे पूर्व गांधी शिष्टता से पत्राचार किया करते थे, लेकिन अब भाषायी पतन की चरम सीमा नज़र आने लगी है, क्या राजनीतिक संस्कृति इतनी खोखली हो गई है कि लोग पत्थर मार भाषा का इस्तेमाल करने लगें?
थोड़ा अतीत में जाकर देखें और बिहार के 1990 से 2005 तक के हालात पर दृष्टिपात करें, वह किसी जंगल राज से कम नहीं था। उस समय के अंतराल में कानून-व्यवस्था और नैतिक निष्ठा की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। हालात कुछ ऐसे थे कि शोरूम से नई कार उड़ा ली जाती थी। अपने ही शहर में अंधेरा हो जाने पर लोग घरों से बाहर जाने पर डरते थे कि न जाने कब क्या हो जाए।
घटिया भाषा का प्रयोग पक्ष और विपक्ष के कई लोग बेहिचक करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के पद ग्रहण के बाद एक सार्वजनिक भाषण में उनके ही एक राज्यमंत्री ने आपत्तिजनक नारा दिया था। लोग समझ रहे थे कि भाजपा उस मंत्री के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करके अपनी निष्ठा का परिचय देगी, परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं। बाद में उक्त मंत्री ने अपने शब्दों के लिए खेद जताया था। कांग्रेस के नेता अगर असभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो नैतिक गिरावट और कानूनी कार्यवाही से बचने नहीं चाहिएं, लेकिन अगर भाजपा के नेता उसी भाषा में जवाब देने पर उतर आते हैं, तो यह उनके लिए भी निंदनीय है। जर्सीगाय, ‘कांग्रेस की विधवा’ और ‘90 करोड़ की गर्लफ्रैंड’ जैसी अशोभनीय, अपमानजनक बातें सार्वजनिक भाषणों क्यों सुनने को मिलती है? 
स्कूल में पहला कदम रखते ही पढ़ने को मिलता है ‘तोल मोल के बोल’, ‘मीठी वाणी बोलिए’ महा-कवि ने कहा है- ‘बोलिए तो तब जब बोलने की बुद्धि होय’। विद्वान कहते हैं कि जिस किसी की कुदरती कोप के कारण एक आंख नहीं है, उसे काणा कह कर अपमानित न करें। ऐसा करके आप कुदरत का अपमान तो नहीं कर रहे? उसके पास बैठ कर कंधे पर हाथ रख कर उसे प्रेम की भाषा में पूछेंगे कि आपकी आंख को क्या हुआ? वह अपना पूरा हाल बता देगा। आप असभ्य भी नहीं रहोगे।

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