अहिंसा परमो धर्म:—एक अधूरा वाक्य एवं प्रयास
ज़िन्दगी को जीना है तो तकलीफें तो होंगी ही....वरना मरने के बाद तो जलने का एहसास भी नहीं होता।
जी हां, हमारे देश में जहां कहीं भी आप हाथ डालेंगे, हाथों के जलने का डर तो रहेगा ही। साथ ही साथ ज़िन्दा रहने के लिए भी डर सताने लगेगा, क्योंकि हमने अपने नेताओं को ईश्वर का दर्जा देना शुरू कर दिया है और उनके बारे में या उन के शब्दों या उनके कार्यों पर टिप्पणी करना पाप की श्रेणी में आ जाता है।
मैं आपको एक उदाहरण द्वारा इसे समझाने की कोशिश कर रहा हूं :
‘अहिंसा परमो धर्म:’
अहिंसा एक परम धर्म है, ऐसा महात्मा गांधी जी हर जगह प्रचार किया करते थे और तत्कालीन राजनीतिक दल इस विचारधारा को अपने प्रचार और प्रसार का हिस्सा बना कर चलते रहे।
देशवासियों ने इस विचारधारा को एक जीवनशैली के रूप में अपनाने की कोशिश की है, परन्तु क्या आप जानते हैं कि ये शब्द मूल रूप में कहां से लिए गए हैं? ये शब्द महाभारत के एक श्लोक का अधूरा बाक्य है। पूरा वाक्य जो माधव अर्थात श्री कृष्ण ने कहा, वह यह है :
‘अहिंसा परमो धर्म:,
धर्म हिंसा तदैव च’
अर्थात अहिंसा परम धर्म है, परन्तु धर्म की रक्षा हेतु हिंसा सबसे बड़ा धर्म है। अब अगर हम इन पंक्तियों का विश्लेषण करें, तब हम पाएंगे कि प्रथम भाग को मानने वाले जीवन में कभी भी आगे बढ़ने या अपना विस्तार करने के बारे स्वप्न में भी सोच नहीं सकते क्योंकि उनकी विचारधारा ही एक अलग सोच के साथ विकसित हो रही होती है जिसमें हम किसी दूसरे व्यक्ति को कभी भी व्यथित करना ही नहीं चाहेंगे।
दूसरे भाग को मानने वाले हमेशा ही आगे बढ़ने व विस्तार के बारे में सोचेंगे। इसी सोच के साथ वे आगे बढ़ते चले जाएंगे और जहां कहीं भी लगेगा कि उनकी उचित बातों को अनुचित ढंग से दबाने की कोशिश की जा रही है, वे उसको उसी भाषा में उत्तर देने व उन्हें खामोश करने की ताकत व संसाधन रखते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेंगे, परन्तु क्या विगत वर्षों में ऐसा हो पाया है? नहीं।
क्योंकि हमें तो प्रथम भाग ही पढ़ाया व सिखाया जाता रहा है। जिन्होंने पढ़ाया, वे राष्ट्रपिता हो गए, राष्ट्रपिता के शब्दों को प्रश्नात्मक दृष्टि से देखना पाप हो गया और आप पापियों की श्रेणी में आ गए।
इन्हीं शब्दों को रटा-रटा कर हमारे युवा वर्ग को ऐसे मार्ग पर डाल दिया गया जो अन्तहीन था, जो अपवाद था और इस जाल में आए ही नहीं और इस कुटिल प्रयास को समझ कर इस विचारधारा से अलग हो गए। परिणामस्वरूप वे सभी न केवल अपने क्षेत्र में आगे बढ़े बल्कि देश का नाम भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गरिमापूर्ण बनाया। यहां पर मैं एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं किसी भी तरह से हिंसा का पक्षधर नहीं हूं, परन्तु श्री कृष्ण व श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का अनुयायी होने के नाते इस नीति का पक्षधर हूं कि अगर आप के समस्त नीतिगत प्रयासों के बावजूद आप को बल व छलपूर्वक दबाने की कोशिश की जाती है, तब आपका बल प्रयोग हिंसा की श्रेणी में नहीं आता है। मूल विषय की ओर लौटते हुए एक प्रश्न—किन कारणों से महाभारत के इस श्लोक को और वो भी आधा, प्रचारित और प्रसारित किया जाता रहा?
उत्तर ढूंढने की दिशा में प्रयासरत हूं। उतनी देर तक :
झांकने की कुछ...
बेहतरीन जगहों में से,
एक जगह...
अपना गिरेबान भी है।
-मो. 94175-47493