पैरा एथलैटिक चैम्पियन एकता

बचपन में डाक्टर बनने के सपने संजोने वाली एकता ने कभी यह सोचा भी नहीं था कि एक दिन उनकी ज़िन्दगी एक व्हीलचेयर के सहारे ही आगे चल सकेगी, लेकिन वह हारी नहीं, बल्कि बड़े गर्व से कहती हैं कि ‘ज़िन्दगी हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन जीना तो हमारे हाथ में है।’ इसलिए वह व्हीलचेयर पर होकर भी कह देती हैं कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इस प्रतिभाशाली और हौसले की मिसाल एकता का जन्म 7 जून, 1985 को पिता बलजीत सिंह बियान के घर माता रेणु बियान की कोख से हरियाणा के शहर हिसार में हुआ। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार एकता पढ़-लिख कर डाक्टर बनना चाहती थी, जिसकी तैयारी उन्होंने बचपन से ही कर ली थी और वह अपने शहर से 12वीं कक्षा प्राप्त करके उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चली गई। वर्ष 2003 में वह अपनी सहपाठी लड़कियों के साथ कार में सवार होकर सोनीपत से दिल्ली जा रही थी तो रास्ते में उन्होंने अपनी कार पार्किंग के लिए खड़ी ही की थी कि दुर्भाग्यवश उनकी खड़ी कार के ऊपर सब्ज़ियों से भरा ट्रक आ पलटा, जिससे कार में सवार पांच लड़कियों की मौके पर ही मौत हो गई और एकता गम्भीर रूप से घायल हो गई। एकता का दिल्ली में कई महीने इलाज चला और वह ठीक तो हो गई लेकिन उसकी रीढ़ की हड्डी टूटने से उसका निचला हिस्सा नकारा हो गया। यह एकता और परिवार के लिए असहनीय सदमा था, क्योंकि अब एकता पैरों के सहारे चल-फिर नहीं सकती थी, बल्कि हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर थी। एक दिन एकता गहरे सदमे में अपने अतीत के बारे में सोच रही थी, क्योंकि भविष्य उनको अपना धुंधला नज़र आ रहा था। उनकी नज़र कमरे में चल रहे पंखे पर पड़ी तो वह सोचने लगी कि पंखा चल रहा होता है तो हवा आती है, रुक जाता है तो हवा आनी बंद हो जाती है, वह एक दम अपने कमरे से बाहर आई तो उनको अपना आस-पास ही पंखें की गति की तरह गतिशील लगा। उन्होंने तेजी से व्हीलचेयर दौड़ाई और मन से एक ही आवाज़ आई ‘ज़िन्दगी रुकने का नहीं, चलने का नाम है।’ एकता ने हौसले की अंगड़ाई भरी और उसी दिन से ही उन्होंने यह संकल्प कर लिया। एकता उच्च शिक्षा तो प्राप्त कर ही रही थी, उनका मन खेलने-कूदने को भी करता तो संयोगवश उनकी मुलाकात अर्जुन अवार्ड विजेता अमित सरोआ से हुई तो बस उन्होंने व्हीलचेयर खेल के मैदान में ऐसी उतारी कि आज उनको व्हीलचेयर पर खेलकर अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी होने का गौरव हासिल है।
वर्ष 2016 में वह जर्मनी क्लब थ्रो में खेलने गई और साथ ही पंचकूला में हुई पैरा एथलैटिक चैम्पियनशिप में उन्होंने क्लब थ्रो में कांस्य पदक विजेता रही। वर्ष 2017 में जयपुर में हुई पैरा एथलैटिक चैम्पियनशिप में क्लब थ्रो में स्वर्ण पदक और डिस्कस थ्रो में भी स्वर्ण पदक विजेता बनीं। वर्ष 2017 में ही लंदन में हुई वर्ल्ड पैरा एथलैटिक चैम्पियनशिप खेलों में खेलते हुए पूरे एशिया में पहला रैंक और पूरे विश्व में 6वें स्थान पर रहकर भारत का गौरव बढ़ाया। इससे पहले वह दुबई में ग्रैंड प्रैक्स में खेलते हुए पूरे एशिया में चौथे स्थान पर रहने का रिकार्ड भी उनके ही नाम बोलता था। वर्ष 2018 में भी उन्होंने खेलते हुए स्वर्ण पदक जीता। एकता ने बताया कि अब वह वर्ष 2020 में टोक्यो में होने वाली ओलम्पिक में खेलने की तैयारी में लगी हुई हैं और वह विश्वास से कहती हैं कि वह टोक्यो में भारत का राष्ट्रीय ध्वज ज़रूर लहराएंगी। एकता ने बताया कि वह अपनी इन उपलब्धियों के लिए कभी भी अपने माता-पिता और अपने कोच अमित सरोआ को नहीं भूल सकती, जिनके योग्य नेतृत्व ने उनको इस मंज़िल पर पहुंचाया है।