मोदी सरकार के लिए चुनौतियां

केन्द्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार जिसका नेतृत्व श्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं, के चार साल पूरे होने पर इसकी कारगुजारी के संबंध में बड़ी चर्चा चलती रही है। जहां इसके भागीदारों ने इसकी सफलताओं को गिनाया है, वहीं कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों ने यह कहा है कि इस सरकार की नाकामियों को देखकर आगामी समय में लोग इसे बदल देंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि यह सरकार पिछले चार सालों में जिस प्रकार विचरण करती आ रही है, उसे देखते हुए देश के लोगों की ओर से इसे पुन: फतवा दिया जायेगा, क्योंकि इस सरकार ने गरीबों एवं ज़रूरतमंद लोगों के लिए बड़ी योजनाएं तैयार करके उनके लिए अच्छे दिन लाए हैं। अमित शाह के अनुसार देश की आर्थिकता मजबूत हुई है तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी इसका प्रभाव बहुत बढ़ा है। उन्होंने यह नारा भी दिया है कि आगामी समय में भ्रष्टाचार एवं गरीबी के गलबे से देश मुक्त हो जायेगा। अमित शाह ने यह भी कहा है कि चाहे भाजपा एवं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अन्य भागीदारों के विरुद्ध बहुत से राजनीतिक दल एकत्रित हो गए हैं, परन्तु लोगों का समर्थन भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को ही मिलेगा। कांग्रेस ने यह दावा किया है कि पिछले वर्षों में सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ कम हुआ है। इसकी लोकसभा की सीटें भी 282 से कम होकर 274 रह गई हैं। पिछले वर्षों में लोकसभा की जिन 10 सीटों पर उप-चुनाव हुए हैं, उन सब में भाजपा को पराजय मिली है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में सम्पन्न हुए उप-चुनावों एवं अन्य कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में भी इसे पराजय का सामना करना पड़ा है। वामपंथी दलों ने सरकार की इस आधार पर आलोचना की है कि इसने समूचे रूप में देश के सामाजिक ताने-बाने को बिखरा दिया है। अल्पसंख्यकों से संबद्ध लोग भय एवं असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं। साम्प्रदायिक मोर्चे पर भी देश में तनाव बढ़ा है। विपक्षी दलों की उक्त आलोचना के बावजूद यदि मोदी सरकार की कारगुज़ारी को निष्पक्ष दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसकी कारगुज़ारी मिश्रित-सी है। नि:संदेह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से चलाई गई बहुत-सी विकास योजनाओं को देखें तो इनमें जन-धन योजना, आवास योजना, गांवों का विद्युतीकरण, आयुष्मान स्वास्थ्य योजना, स्वच्छ भारत का संकल्प, उज्जवला योजना जिसके अंतर्गत ज़रूरतमंद लोगों को बड़ी संख्या में रसोई गैस के कनैक्शन दिए गए हैं, आदि शामिल हैं। इनमें आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना एवं उज्जवला योजना का ही लोगों को कुछ लाभ हुआ है। नरेन्द्र मोदी की ओर से किए गए दो बड़े नीतिगत फैसलों की भी बहुत बड़े स्तर पर चर्चा हुई है। इनमें नोटबंदी का देश को अधिकतर नुक्सान ही झेलना पड़ा है। देश की आर्थिकता डावांडोल हुई है तथा इससे बेरोज़गारी में भी वृद्धि हुई है, परन्तु अमीरों एवं गरीबों के बीच बढ़ते अंतराल के कारण प्रारम्भ में आम लोगों की ओर से इसे पसंद किया गया था। मोदी सरकार की ओर से दूसरा बड़ा फैसला देश में कर प्रणाली में परिवर्तन लाए जाने को लेकर था। सरकार ने वस्तु एवं सेवाएं कर तैयार करके समूचे देश के लिए एक समान कर प्रणाली लागू की है। चाहे इसके क्रियान्वयन में अवश्य परेशानियां आती रही हैं तथा उन्हें आज भी महसूस किया जा रहा है परन्तु अभी भी यह आशा है कि इस कर ढांचे के पूरी तरह से लागू होने से देश की आर्थिकता के मजबूत होने की व्यापक सम्भावनाएं हैं। 
नि:संदेह पिछले दिनों में लोकसभा के सम्पन्न हुए उप-चुनावों एवं कुछ राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में मोदी सरकार को निराशा देखनी पड़ी थी, परन्तु अब 28 मई, सोमवार को सम्पन्न हुए चार लोकसभा एवं 10 विधानसभा सीटों के उप-चुनावों के लिए मतदान हुआ है, जिसके परिणाम 31 मई को घोषित होंगे। इनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, झारखण्ड, मेघालय, पश्चिम बंगाल एवं नागालैंड आदि प्रांत शामिल हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत ये उप-चुनाव सम्पन्न हुए हैं। आगामी दिनों में इनके परिणामों से भी मोदी सरकार की चार सालों की कारगुज़ारी का कुछ न कुछ अनुमान लगाया जा सकेगा। अभी से यह अनुमान लगाया जाने लगा है कि आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्षी दलों का एक मजबूत मोर्चा बन सकता है, जो भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को एक बड़ी चुनौती देने में सक्षम होगा। यदि नरेन्द्र मोदी एवं उनकी पार्टी ने आगामी समय में पुन: देश का नेतृत्व करना है, तो उन्हें राज धर्म का पालन करने में परिपक्व होना पड़ेगा। भारतीय संविधान की भावना के अनुसार धर्म एवं जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर सक्रिय होना पड़ेगा। देश में सख्ती के साथ कानून के शासन की भावना पर पहरा देना होगा। अभी तक मोदी सरकार ने प्रभावपूर्ण ढंग से बढ़ती हुई आबादी पर नियंत्रण करने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं बनाई तथा न ही रोज़गार के अधिकाधिक साधन पैदा किए जाने को प्राथमिकता दी है। इन न्यूनताओं की पूर्ति से ही देश पर छाये गरीबी के घने बादलों को कम किया जा सकता है। पिछले चार सालों की कारगुज़ारी से भी अधिक केन्द्र सरकार की आगामी एक वर्ष की की कारगुज़ारी स्थितियों में भारी परिवर्तन लाने में समर्थ हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द