अंतरिक्ष जाने वाले कौन होंगे तीन भाग्यशाली गगनॉट?

इन दिनों पूरे देश में यह उत्सुकता है कि तीन साल बाद जब तीन भारतीय अंतरिक्ष जायेंगे तो ये तीन कौन होंगे? क्या ये सभी पुरुष होंगे या इनमें कोई स्त्री भी होगी? आखिर किसको मिलेगा पहला गगनॉट या फिर व्योमनॉट बनने का अवसर? कौन-कौन पहनेंगे स्पेस सूट? किसको देखेंगे लोग टीवी पर स्पेस हेलमेट पहनते हुए? किसे अनुभव मिलेगा शटल में जाने का? काउंटडाउन और फिर लांच वाला जबरदस्त ब्लास्ट का अद्भुत अहसास कौन कर पायेगा? और अंत में कि जिन्हें यह सब हासिल होगा उन्हें कब चुना जा सकेगा?,अगले साल तो चुनावी गहमागहमी है पर 2020 में इसरो एक मानव रहित अंतरिक्षयान अंतरिक्ष में भेजेगा। इसके बाद जून 2021 में एक बार फिर यह कवायद की जायेगी ताकि पिछले अनुभवों को और बेहतर किया जा सके और दिसंबर 2022 में जब अंतरिक्ष यात्री समेत गगनयान अंतरिक्ष में जाए तो उसका जाना और लौटकर आना सफल रहे। देश आश्वस्त है कि इसरो यह काम बखूबी कर लेगा। इस तरह देश के बेटे-बेटियों का अंतरिक्ष में जाने का समय तय हो चुका है। दिसंबर 2022 तक इसरो देश के बेटे-बेटियों में से किन्हीं तीन को गगनॉट बनायेगा। उत्सुकता इस बात की है कि अंतरिक्ष में कौन जायेगा? अधिकतम तीन ही जा सकते हैं। क्या सभी पुरुष होंगे या कोई स्त्री भी इसमें शामिल होगी? बात महज लैंगिक विभिन्नता और तरजीह तथा सामाजिक राजनीतिक संकेतों की नहीं है, इसके वैज्ञानिक पहलू भी हैं।बड़ा सवाल यह है उनके प्रशिक्षण का क्या होगा, क्या वे देश में ही प्रशिक्षित होंगे या बाहर भेजा जायेगा? क्या ये सारी प्रक्रियाएं गगनयान के भेजने से पहले पूरी हो पायेंगी? यान, रॉकेट इंजिन, ईधन सब तैयार पर जब सवारी ही नहीं तो कहीं इसके चलते तो गगनयान की उड़ान में देर नहीं होगी। खैर! देरी से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये, अचानक बिना वैज्ञानिकों की राय लिये घोषित परियोजना में देर सबेर तो हो ही सकती है और फिर अंतरिक्ष अभी कहां भागा जा रहा है। सो उत्सुकता इस बात में ज्यादा है कि देर से ही सही पर अंतरिक्ष में जायेगा कौन? फिलहाल इसरो ने इसकी सारी-सारी जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना पर डाल दी है कि वह मनोवैज्ञानिक या मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक क्षमता आदि की नियत कसौटियों पर कसके कुशल और उपयुक्त सुपात्रों का चयन करे। इसमें औरतें हों या पुरुष ही, गगनयान यानी इंडियन ऑर्बिटलमॉड्यूल में कौन सवार होकर अंतरिक्ष की सैर कर सुर्खरू होगा यह सब भारतीय वायुसेना पर निर्भर है। अब जब सब कुछ भारतीय वायुसेना पर ही निर्भर है तो एक बात तय है कि कुछ उच्चतम स्तर के उड़ाका या पायलट ही चयनित होंगे, खासतौर वे जो कम उम्र में अपने शानदार कौशल प्रदर्शन के चलते प्रशिक्षक भी हैं। हो सकता है कि महिला अंतरिक्ष यात्री की संभावना कम हो जाये। आमतौर से अंतरिक्ष यात्री इन्हीं में से बनाये जाने की परंपरा रही है। 1950 में नासा ने भी अपना पहला अंतरिक्ष यात्री एयरफोर्स के पायलट को ही चुना था। अब अमरीका ने ऐसा किया तो सोवियत संघ भी उसी रास्ते पर चला। 2009 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपने यहां छह अंतरिक्ष यात्री भर्ती किए। इनमें भी अधिकतर सेना के पायलट थे। फाइटर पायलट बहुत सघन प्रशिक्षण के बाद बनते हैं। 2,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ने वाले फाइटरजेट्स के पायलटों में शारीरिक और मानसिक तौर पर वे मूलभूत गुण और क्षमताएं पहले से ही मौजूद होती हैं, जो किसी अंतरिक्ष यात्री के लिये अनिवार्य आवश्यकता है। भारहीनता की अवस्था में रह सकना, विपरीत परिस्थितियों में बिना घबराये उचित और तत्काल फैसले लेना, दबाव में काम करना जानना, उड़ान के प्रति अगाध इच्छा इत्यादि सो इसके बाद इनका प्रशिक्षण ही शेष रहता है। भारतीय वायु सेना कुल छह जेट फाइटर पायलट या प्रशिक्षकों को चुनेगी। यह इसलिये कि आखिरी वक्त में किसी यात्री के साथ कोई परेशानी पैदा हो तो उसका बदल तैयार रहे।प्रत्याशी प्रशिक्षणार्थी तो बहुत से होते हैं और उनकी संख्या दहाई से पार होगी, लेकिन आखिर में छह चुने जायेंगे जिनको दो से तीन साल तक प्रशिक्षण में लगाना पड़ सकता है। अगर पूरे तीन साल न भी लगें तो दो साल से ज्यादा हर कीमत पर लगना तय है। लगता है चयन प्रक्रिया और छंटाई में ही अगला आधा साल पार हो जायेगा। फिलहाल मामला अभी बातचीत तक ही है। चुने जाने के बाद भारतीय वायुसेना का इंस्टीट्यूट ऑफ  एयरोस्पेस मेडिसिन सेंटर को अंतरिक्ष यात्रियों का प्रारम्भिक परीक्षण करना है कि वे वास्तव में अंतरिक्ष जाने और उससे पहले प्रशिक्षण के लिये मूलभूत तौरपर कितने तैयार हैं यहां भी अवसंरचना या कहें उचित उपस्करों उपकरणों का लोचा बताया जाता है। कहते हैं कि इसरो ने अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण के लिये दशक भर से ज्यादा समय से योजना बना रखी थी। इसके लिये 50 एकड़ का क्षेत्र चाहिये जो उसने बंग्लुरू एयरपोर्ट से 10 किलोमीटर दूर देवनहल्ली के अपने गेस्ट हाउस के पास कैपेगौड़ा में तय कर रखी है। रूसी एस्ट्रॉनॉट प्रशिक्षण केंद्र की तर्ज पर बनाये जाने की कागजी रूपरेखा पर कोई जमीनी  काम अब तक नहीं हुआ है। इसके अलावा इंडियन एयरफोर्स इंस्टीट्यूट ऑफ  एविएशन मेडिसिन के तहत एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग एंड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर भी अभी कार्यरत नहीं है। अब समय कम है, यह सब इतना जल्दी बनना मुमकिन नहीं सो अंतरिक्ष यात्री रूस के यूरी गागरिन ट्रेनिंग सेंटर जायेंगे या फिर अमरीका। घरेलू की रट लगाने वाली इसरो का अब कहना है कि जो लोग पहले इस दिशा में काम कर आये हैं, बुद्धिमत्ता इसी में है कि हम उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और उनकी अवसंरचना का लाभ लें। अंतरिक्ष के वातावरण में विकिरण झेलने का अभ्यास अपने यहां नहीं हो सकता है, पर देश में जीरो ग्रेविटी या गुरुत्वाकर्षण शून्यता, भारहीनता, जी फोर्स  तथा स्पेस वाक के प्रशिक्षण के लिये पानी के भीतर चलाये जाने वाले अभ्यास की सुविधा जल्द निर्मित की जा सकती है पर वक्त लगेगा। थर्मल साइक्लिंग तथा दूसरे सिम्युलेशन केंद्र यहां स्थापित तो होंगे पर समय लगेगा। ऐसे में मेडिकल ट्रेनिंग हो या स्पेस वॉक का प्रशिक्षण अपने अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग के लिये बाहर भेजने के अलावा फिलहाल कोई चारा नजर नहीं आता। यह भी इतना आसान नहीं है प्रशिक्षण के लिये अपने अंतरिक्ष यात्रियों को बाहर भेजने की भी तैयारी करनी है। इस बावत एयरफोर्स और इसरो के साथ तीसरा पक्ष यानी दूसरे देश के प्रशिक्षण प्रदाता संस्थान और प्रशिक्षक के साथ तालमेल बिठाना होगा। इसकी शुरुआत नहीं हो पाई है, समय लगेगा। अंतरिक्ष यात्रियों से पहले इसरो को ही सुविधाओं के बारे में सुनिश्चित होने के लिये आना-जाना होगा। निशाने पर रूस और अमरीका के अलावा जर्मनी भी है। देखना है कि बात किससे तय होती है और क्या सूरत निकलती है। किन मानदंडों और समझौतों पर सहमति बनती है; क्योंकि यह कोई सामान्य कार्य प्रशिक्षण नहीं है। इसमें देश शामिल रहते हैं। खैर, प्रशिक्षण तो दूर की बात है सबसे बड़ी बात तो चयन की है। सवाल अब भी यही है कि 2022 में 140 फीट लंबे हैं और 200 हाथियों जितने यानी 640 टन से ज्यादा वजन वाले दानवाकार रॉकेट की सहायता से अंतरिक्ष जाने वाले गगनयान में कौन होगा सवार। इसकी घोषणा कब होगी।