बर्तानवी शासकों ने 173 वर्षों में भारत से 45 ट्रीलियन डालर लूटे

लंदन, 3 दिसम्बर (मनप्रीत सिंह बधनी कलां): बर्तानिया ने भारत पर 200 वर्ष तक राज किया, जिस समय बहुत ही गरीबी व भुखमरी हुई। इन दो सदियों में भारत की दौलत घाटे में आई, इस बारे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री उतशा पटनायक द्वारा बस्तीवादी भारत व बर्तानिया के बीच संबंधों बारे की खोज में इसका खुलासा किया है। उतशा पटनायक ने कहा कि भारतीयों को यह जानने में उत्सुकता होगी कि बर्तानिया ने भारत से कितना खज़ाना छीना है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रैस द्वारा गत दिवस छापे एक लेख में लेखिका ने कहा कि बर्तानिया ने भारत से 45 ट्रीलियन डालर निकाला, जिससे आज तक भारत गरीबी से बाहर नहीं निकल सका।पटनायक ने कहा कि बर्तानिया ने 70 वर्ष पहले भारत छोड़ने के बावजूद बस्तीवादी के चिन्ह शेष हैं। पटनायक ने कहा कि 1765 से 1938 के बीच 9.2 ट्रीलियन पौंड (45 ट्रीलियन डालर) बाहर निकाला, जो भारत की बरामदगी की कमाई को माप के रूप में ले रहा है तथा 5 प्रतिशत ब्याज दर को बढ़ा रहा है। लेखिका ने कहा है कि भारतीयों को कभी उनके कीमती स्रोतों जैसे सोना व अन्य कमाई का कभी श्रेय नहीं दिया गया, जो सभी बर्तानवी लोगों को खिलाने के लिए गए थे। खोज अनुसार वर्ष 1990 से 1945/46 तक देश के प्रति व्यक्ति आय लगभग स्थिर थी। जो वर्ष 1900 से 1902 तक 196.1 रुपए व 1945 से 1946 तक केवल 201.9 रुपए प्रति व्यक्ति आय थी, यह सब भारत के आज़ाद होने से एक वर्ष पहले था। 1930 से 1932 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 223.8 रुपए हो गई थी। यह सब उस समय हुआ जब 1929 को भारत को तीन दशकों का निर्यात करने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति घोषित किया गया। उतशा के अनुसार बर्तानवी हर वर्ष केन्द्र सरकार के 26-26 प्रतिशत के बजट के बराबर की स्रोतों को लूटने लगे जिसने भारत के विकासको बड़ा नुक्सान पहुंचाया। अर्थशास्त्री का मानना है कि यदि यह कमाई भारत में ही रहती तो भारत आज बहुत आगे होना था, इसकी स्वास्थ्य सुविधाएं व सामाजिक भलाई के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ चुका होना था। उतशा ने खोज में ऐसे हैरान करने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं जिसमें उसने कहा है कि जब भारत के लोग भुखमरी, मक्खियों व अन्य बीमारियों से मर रहे हैं, उस समय भी बर्तानवियों ने गरीब भारतीयों की कमाई को बाहर निकालने का काम जारी रखा। उन्होंने कहा कि 1911 में भारतीयों की आयु केवल 22 वर्ष मानी जाती थी। पटनायक ने कहा कि बर्तानवियों ने अनाज की बरामद की तथा बड़े टैक्स लगाए, जिससे भारत में काल पड़ गया तथा खरीद शक्ति घट गई। दूसरे विश्व युद्ध दौरान खाने की प्रति व्यक्ति खपत 200 किलोग्राम थी तथा 1946 में 137 किलोग्राम थी। उसने यह भी कहा कि आज़ादी समय भारत की स्थिति सारे सामाजिक क्षेत्रों में निराशाजनक थी।