हरी सिंह नलवा की हवेली की पुन: लौट रही रौनक

अमृतसर, 7 फरवरी (सुरिन्द्र कोछड़) : पाकिस्तान के ज़िला चक्कवाल में मौजूद श्री कटासराज तीर्थ में जरनैल हरी सिंह नलवा की हवेली में अजायब घर बनाए जाने का काम अंतिम चरण में पहुंच चुका है तथा यह नवनिर्माण पूर्ण होने पर यह विरासती स्मारक दर्शकों के लिए खोल दिया जाएगा। स. हरी सिंह नलवा की हवेली को 12 अप्रैल 1921 को एक नोटीफिकेशन जारी करके सुरक्षित इमारत घोषित किया गया था। उसके बाद वर्ष 1956 में पाकिस्तान सरकार ने इसको पुन: सुरक्षित इमारत घोषित कर दिया, परन्तु इसके बावजूद देश के बंटवारे के बाद इस स्मारक में हुई लूट-खसूट के चलते यह हवेली एक खंडहर में तबदील हो गई। पाकिस्तान पुरातत्व विभाग के अधिकारियों अनुसार उक्त हवेली का नवनिर्माण वर्ष 2005 में शुरू किया गया, परन्तु फंडों की कमी के कारण निर्माण का काम लम्बे समय तक लटका रहा। अब नवनिर्माण तथा सौंदर्यीकरण के चलते हवेली में दीवार चित्रों की भी मुरम्मत की गई है। वर्णनीय है कि श्री कटासराज तीर्थ में एक ऊंचे टीले पर निर्माण की गई स. हरी सिंह नलवा की उक्त हवेली सिख राज्य के समय किले के रूप में भी सेवाएं देती रही। इसकी 5 मीटर ऊंची मज़बूत दीवार में 4 बुर्ज भी बनाए गए हैं तथा हवेली के अंदर 10 से ज्यादा बड़े कमरे तथा अन्य स्मारक मौजूद हैं। तीर्थ के श्री राम मंदिर के साथ लगती इस हवेली में महाराजा रणजीत सिंह वर्ष 1806 की वैसाखी मौके, दिसम्बर 1818 तथा वर्ष 1924 में दर्शनों के लिए पधारे। श्री कटासराज के संबंध में तवारीख-ए-जेहलम तथा ब्रिटिश आरकोलोजिस्ट सर अलैगजेंडर कनिंघम ने लिखा है कि ‘कटाक्ष’ संस्कृति भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘आंसू’। कटाक्ष से ही कटासराज प्रचलित हो गया। कनिंघम के अनुसार कटासराज में पांडव पुत्रों ने अपने वनवास के 12 वर्षों में से चार साल का समय व्यतीत किया। यहीं उन्होंने सात मंदिरों का निर्माण करवाया, जो आज भी सात-घरों के नाम से जाने जाते हैं तथा पाकिस्तान द्वारा उनका नवनिर्माण करवाया जा रहा है।