कोलकाता का हावड़ा ब्रिज कहानियाें और किंवदंतियों का पुल

चारों तरफ रात का अंधेरा पसरा है। हुगली नदी पर एक नाव चप्पुओं की छप छप की आवाज के साथ आगे बढ़ रही है। नाव में एक मद्धिम रोशनी की लालटेन टिमटिमा रही है। नायिका एक तरफ सिकुड़ी हुई बैठी है और नायक के चेहरे पर पड़ रही लालटेन की महीन रोशनी से लग रहा है वह हल्के सुरूर में है। इस झिलमिल पृष्ठभूमि में धीमे स्वर मगर गहरी अलाप के साथ नायक के होठों से शब्द फूटते हैं- चिनगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए, सावन जो अगन लगाए, उसे कौन बुझाए..’ दिल की गहराइयों से निकली शब्दों की इस मरमरी कशिश के बीच से धीरे-धीरे टिमटिमाती रोशनी वाली एक लंबी और विशालाकार संरचना उभरती है- दर्शक समझ जाते हैं यह कोलकाता है क्योंकि धुंधली रोशनी से उभरने वाली वह छवि हावड़ा ब्रिज की है। हावड़ा ब्रिज और कोलकाता, जिसे पहले कलकत्ता कहते थे, एक-दूसरे में घुले मिले, एक दूसरे के पर्याय, प्रतीक हैं। वास्तव में हावड़ा ब्रिज का नाम लेते ही आंखों के सामने कोलकाता का अक्स घूम जाता है और  कोलकाता कहते ही आंखों के सामने हावड़ा ब्रिज रक्स करने लगता है।
हावड़ा ब्रिज और कोलकाता एक-दूसरे में इस तरह रचे बसे हैं कि किसी एक का अस्तित्व दूसरे के बिना सोचा भी नहीं जा सकता। हालांकि आज़ादी के कुछ सालों बाद हावड़ा ब्रिज का नाम बदलकर रवींद्र सेतु कर दिया गया, लेकिन हावड़ा ब्रिज की अपने आपमें ऐसी लोकप्रियता है कि दूसरा कोई नाम जुबान में चढ़ता ही नहीं। न जाने बॉलीवुड की कितनी ही फिल्मों में हावड़ा ब्रिज को शूट किया गया है। भारत ही नहीं हॉलीवुड सहित दुनिया की अनेक फिल्मों में हावड़ा ब्रिज की मौजूदगी अपनी भरपूर लोकप्रियता के साथ है। हावड़ा ब्रिज दरअसल कोलकाता के उपनगर हावड़ा और कोलकाता को आपस में जोड़ता है। इस कैंटीलीवर पुल को अंग्रेजों ने 1937 से 1943 के बीच बनवाया था। एक तरह से अंग्रेजों ने कोलकाता को अपना यह सबसे मशहूर गिफ्ट देश से जाते जाते दिया है। जिस समय यह बना था, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कैंटीलीवर पुल था। इस पुल से 26 मीटर नीचे गंगा बहती है, जिसे वहां हुगली कहते हैं। हावड़ा ब्रिज सिर्फ कोलकाता का पर्याय ही नहीं है, यहां की अस्त-व्यस्त और भीड़भाड़ भरी जीवनशैली का प्रतीक भी है। इस पुल से हर दिन करीब एक लाख वाहन और करीब पंद्रह लाख लोग पैदल आर-पार करते हैं। इसे ब्रेथवेट बर्न और जेसप कंस्ट्रक्शन कंपनी ने, जिसकी स्थापना 26 जनवरी, 1935 को हुई थी और जो रेल पुलों, रेल-सह-सड़क पुलों, औद्योगिक संरचनात्मक कार्यों, बड़ी इमारतों की नींव डालने, सिविल इंजीनियरिंग कार्यों, रिफाइनरी पाइपिंग कार्यों आदि में महारत रखती है, मेसर्स रेंडेल, पामर और ट्रिटन कम्पनी की डिजाइन के आधार पर इसे 6 सालों में बनाया था।
इसके निर्माण में इस्पात, सीमेंट, लोहा, पत्थर आदि का इस्तेमाल हुआ है। पुल की लम्बाई करीब 99.125 मीटर है और चौड़ाई करीब 457 मीटर है। इसे कई नामों से पुकारते हैं, कोई इसे रवींद्र सेतु कहता है, कोई गेट वे ऑफ कोलकाता कहता है, कोई हावड़ा ब्रिज कहता है, लेकिन सबको मालूम होता है कि बात हावड़ा ब्रिज की हो रही है। आमतौर पर पुलों के नीचे बहुत सारे खंभे होते हैं, जिन पर वे टिके होते हैं, परन्तु यह एक ऐसा पुल है जो सिर्फ 4 खंभों पर टिका है। दो नदी के इस तरफ है और दो नदी के दूसरी तरफ।
जबकि इस पुल में हजारों टन वजनी इस्पात का इस्तेमाल हुआ है, फिर भी ये चार पुलों पर विश्वास के साथ खड़ा है। इसके सहारे के लिए कोई दूसरी अदृश्य व्यवस्था भी नहीं है। पिछले 80 सालों से इस पुल को एक दिन की भी राहत नहीं मिली यानी एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिली। कुछ सालों पहले इसके साथ निर्माणाधीन एक पुल का कुछ हिस्सा ढह गया था, तब एक दो दिन के लिए हावड़ा ब्रिज बंद किया गया था, वरना यह दिन रात आंख मूंदकर चलता ही रहता है। दरअसल इस पुल के नीचे खंभे इसलिए नहीं बनाये गये, क्योंकि अंग्रेज नहीं चाहते थे कि माल भरकर जब जहाज गहरे समुद्र की तरफ जाएं तो हावड़ा ब्रिज में जगह जगह पर बने पुल इस परिवहन को प्रभावित करें। हालांकि हावड़ा ब्रिज सिर्फ अपनी संरचना के लिए ही नहीं जाना जाता है, अपनी जादुई कहानियों के लिए भी विख्यात है। इस पुल के साथ दो चार दस नहीं सैकड़ों कहानियां जुड़ी हुई हैं।
मसलन अंग्रेजों को बस जाना ही था, फिर भी उन्होंने ढाई करोड़ की लागत लगाकर यह पुल बनाया। इससे पता चलता है कि उन्हें अपने आप पर बहुत कॉन्फिडेंस था कि वे हिंदुस्तान से कभी नहीं जाएंगे। अगर यह पुल द्वितीय विश्व युद्ध के पहले बन गया होता, तो इसका बहुत उपयोग होता। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक बम इस पुल से करीब 100 मीटर दूर गिरा था। कहते हैं बाद में कभी कोई सेना इसके आसपास नहीं फटक सकी, क्योंकि तब से मां दुर्गा ने इसकी रक्षा करना शुरु कर दिया था, ऐसा यहां के लोग कहते हैं। दरअसल पर्ल हार्बर में उन्हीं दिनों जापान ने एक ऐसा हमला किया था, जिसे देख पूरी दुनिया हिल गई थी, जबकि जापान का उस समय अंडमान निकोबार द्वीप में एक तरह से कब्ज़ा था। इसलिए अंग्रेजों को डर था कि अगर पुल का जोर-शोर से प्रचार और उद्घाटन जैसा समारोह मनाया गया तो नाराज़ होकर जापान यहां हमला कर सकता है।
पिछले 80 सालों से सिर उठाये खड़ा हावड़ा का पुल अब भी तो बहुत मज़बूत है, लेकिन साल 2011 में वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया था कि मोटाई काफी कम हो गई है। इसके बाद पुल की सुरक्षा के लिए स्टील के पायों को नीचे से फाइबर गिलास से ढक दिया गया है। देश विदेश की सैकड़ों फिल्मों की यहां शूटिंग हुई है। बॉलीवुड की जिन मशहूर फिल्मों में हावड़ा ब्रिज एक किरदार की तरह दिखता है, उनमे दो बीघा जमीन, चाइना टाउन और अमर प्रेम और हाल के सालों की पीकू जैसी फिल्म है।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर