किसान व गरीब वर्ग के लिए सदैव संघर्षरत रहे चौधरी देवीलाल

जननायक चौ. देवी लाल जमीन से जुड़े एकमात्र राजनीतिक व्यक्तित्व रहे, जिन्होंने आज़ादी से पूर्व व बाद में सदैव किसान-काश्तकार, दलितों व मध्यम वर्ग के कारोबारियों के कल्याण के लिए संघर्ष किया और इन वर्गों के हितों के लिए विभिन्न सामाजिक व कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं। समाज कल्याण का जज्बा उनमें बचपन से ही रहा, इसीलिए मात्र 16 वर्ष की आयु में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी शिक्षा बीच में छोड़कर अंग्रेजो ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में कूद पड़े। उनका समस्त जीवन किसानी व जनसाधारण को समर्पित रहा। अत: आज़ादी के बाद अपनी हजारों एकड़ भूमि मुजारों, भमिहीन व खेतीहर मज़दूरों के जीवनयापन हेतु दान कर दी। 
उनका राजनीतिक सफर भी एक अलग मिसाल के तौर से जाना जाता है। उन्होंने कभी भी निजी स्वार्थ की व्यक्तिगत राजनीति को तवज्जो नहीं दी। उनका मानना था कि ‘लोक राज लोकराज’ से चलता है और प्रजातंत्र में जनता की अदालत ही सर्वोपरि है जनता जनार्दन की आवाज का सम्मान ही प्रजातंत्र की असली पहचान है, इसलिए पुलिस व सिविल प्रशासन को जनता दरबार लगाकर आम जन के प्रति जवाबदेह बनाया। उनकी राजनीतिक सोच आरम्भ से ही ग्रामीण समाज कल्याण विशेषकर अन्नदाता, लघु ग्रामीण उद्योग व दलित कल्याण पर केन्द्रित रही और सत्ता में होते हुए भी सार्वजनिक तौर से आह्वान करते थे कि राष्ट्र के विकास के लिए किसान का बेटा प्रधानमंत्री तथा हरिजन का बेटा राष्ट्रपति होना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह उनका सदैव यह मत रहा कि ग्रामीण समाज के विकास के बिना राष्ट्र सम्पन्न नहीं हो सकता।  
अपने शासनकाल में जनता के लिए बुढ़ापा पेंशन, विकलांग पेंशन, विधवा पेंशन, बेरोज़गार पेंशन, जच्चा-बच्चा योजना, गांव-गांव हरिजन चौपाल आदि अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं जिनका आज पूरे राष्ट्र में अनुसरण किया जा रहा है। महिला शिक्षा के विकास के लिए पंचायतों को तीन गुणा मैचिंग ग्रांट देने का प्रावधान किया। खेलों को बढ़ावा देने तथा युवाओं के लिए रोज़गार सुनिश्चित करने हेतु सरकारी नौकरी व पुलिस बल में 3 प्रतिशत खेल कोटे के साथ-साथ युवाओं के लिए नौकरी हेतु साक्षात्कार व परीक्षा देने जाने के लिए रोडवेज बसों में मुफ्त सफर का प्रावधान किया। चौ. देवी लाल ने अपनी जनप्रिय व न्यायवादी छवि के कारण वर्ष 1987 में विधानसभा की 90 सीटों में से 85 सीटें जीतकर एकछत्र नेता के तौर पर एक नई मिसाल कायम की, जिसकी बराबरी होना शायद असंभव है। अपनी अनूठी राजनीतिक विचारधारा की बदौलत वर्ष 1977 में कांग्रेस का सफाया कर दिया।   
चौधरी साहब ने किसान-मजदूर के हितों के लिए प्रधानमंत्री की पेशकश को ठुकरा कर स्वर्गीय वी.पी. सिंह व बाद में स्वर्गीय चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनवाकर निस्वार्थ व त्याग की एक ऐतिहासिक मिसाल पेश की और किंगमेकर बन गए। सोनीपत में अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था कि हम राजनीति में देश की रक्षा व विकास के लिए आते हैं, न कि सत्ता सुख भोगने के लिए। देवीलाल ने अपने शासनकाल में जनता द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों को जनता-जनार्दन के हितों व कल्याण के प्रति खरा न उतरने पर उनको वापस बुलाने तक की मांग उठाई थी। हरियाणा प्रदेश के गठन के लिए उनका सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल स्थिति लागू कर दी तो उन्होंने उसका डटकर विरोध किया और 19 माह बाद जेल से रिहा होकर समस्त विपक्ष को इकट्ठा करके जनता पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई। आमजन के प्रति उनके संघर्ष व लगाव के कारण पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ताऊ को जनता का प्रतीक कहा। चौधरी देवीलाल ने सदैव किसान-मजदूर के दर्द को महसूस किया। किसान की फसल की बर्बादी को देखकर मुख्यमंत्री होते हुए सरकारी अमले को छोड़कर खेत की मेढ पर बैठ गये और बाढ़ के दौरान गांव में जाकर रिंग बांध बनाने हेतू स्वयं सिर पर मिट्टी का टोकरा उठा लेते। वह मानते थे किसान सर्वाधिक मेहनती, भोला, ईमानदार व देशभक्त समुदाय है। चौधरी देवीलाल ने सत्ता में आते ही प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान पर किसान को सरकारी कोष से मुआवजा दिलवाने का प्रावधान किया और वर्ष 1978 में ओलावृष्टि का 400 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा दिलवाया। बाद में किसान के खेत के साथ खड़े वृक्षों में से किसान को आधी कीमत दिलाई, किसानों, काश्तकारों, मज़दूरों व श्रमिकों के 10 हजार तक के ऋण माफ किए और किसान-कामगार के लिए किसान मंडी, अपनी मंडी, मैचिंग ग्रांट, काम के बदले अनाज आदि लाभकारी योजनाएं शुरू की जो कि बाद में आने वाली सरकार ने धीरे-धीरे बंद कर दी, जिस कारण किसान मज़दूर आज फिर सरकारी उपेक्षा के कारण दयनीय हालत से गुजर रहा है।  
आज आवश्यकता है कि ताऊ देवीलाल की नीतियों व सिद्धांतों का अनुसरण किया जाए। इससे सरकारी नीति व कार्यशैली निर्धारण में मदद मिलेगी। चौधरी साहब की जन कल्याणकारी योजनाओं व नि:स्वार्थ राजनीति से प्रेरणा लेकर प्रशासनिक व राजनीतिक तंत्र की विचारधारा को बदलने की नितांत आवश्यकता है ताकि ग्रामीण गरीब-मजदूर व किसान वर्ग के कल्याण व उत्थान के साथ-साथ स्वच्छ प्रशासन के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके। वास्तव में ताऊ देवीलाल गरीब व असहाय समाज की आवाज को बुलंद करने वाले एक सशक्त वक्ता थे इसलिए आज जन साधारण विशेषकर ग्रामीण गरीब-मज़दूर, कामगार व छोटे काश्तकारों को अपने अधिकारों व हितों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि दलगत राजनीतिज्ञ व संबंधित प्रशासन इनके हितों की अनदेखी न कर सकें। आज उनकी 112वीं जन्म शताब्दी पर जननायक धरती पुत्र धरती में समाया हुआ आवाज दे रहा है कि जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि जनहित में काम करने की बजाये चैन की नींद सो रहे हैं, इसलिए जनता जनार्दन को उन्हें वापस बुलाने का अधिकार दिया जाए ताकि किसान-कामगार-काश्तकार व जनसाधारण की आवाज पुन: बुलंद हो सकें। 

-पूर्व डीजीपी, हरियाणा

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