बंदी सिंहों की रिहाई संबंधी केन्द्र सरकार अपना वायदा पूरा करे

यहां इन्स़ाफ है ज़िन्दा तो अदालत की वजह से,
यहां इन्स़ाफ जो मरता है तो मुनस़िफ भी वजह है।
भारत में न्याय अभी जीवित है तो इसके लिए भारतीय अदालतों को शाबाशी देना बनता है, परन्तु जब भी अदालतों में न्याय नहीं मिलता तो उसमें जांच एजेंसियों की मज़र्ी, लापरवाही तथा कुछ हालतों में न्याय-कर्ताओं की निजी सोच भी ज़िम्मेदार होती है। बात 28 सितम्बर, 2019 की है, जब साहिब श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जन्म शताब्दी के अवसर पर भारत के गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय गृह मंत्रालय ने मानवतावादी सोच को उजागर करते हुए घोषणा की थी कि देश की अलग-अलग जेलों में बंद आठ सिख कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा और एक विशेष नोट के माध्यम से एक केदी की मौत की सज़ा को उम्रकैद में बदलने का फैसला भी लिया गया था। इस संबंध में एक संदेश उन राज्यों को भी भेजा गया था, जहां की जेलों में ये कैदी बंद थे। केन्द्र सरकार ने यह फैसला सिख समुदाय के अलग-अलग संगठनों द्वारा लम्बे समय से इस सिख कैदियों की रिहाई के लिए की जाती रही मांग के दृष्टिगत लिया था। 
अब जब हमने इसकी पूरी जानकारी लेने के लिए गृह विभाग की साइट पर इससे संबंधित नोटिफिकेशन की पी.डी.एफ. कापी ढूंढने की पूरी कोशिश की तो यह कहीं नहीं मिली। यह मामला शायद गज़ट भी नहीं हुआ था। पता चला है कि वास्तव में यह केन्द्र तथा राज्य के बीच भीतरी पत्र-व्यवहार था, जो केन्द्र ने सिर्फ राज्यों को एक संदेश के रूप में भेजा था और अगली कार्रवाई संबंधित राज्य सरकारों ने ही करनी थी, परन्तु विभिन्न सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस पत्र तथा घोषणा में भाई दविन्दरपाल सिंह भुल्लर, गुरदीप सिंह खेड़ा, लाल सिंह, नंद सिंह, सुबेग सिंह, बलवीर सिंह, वरियाम सिंह तथा हरजिन्दर सिंह काली के नाम शामिल थे, जबकि भाई बलवंत सिंह राजोआणा का नाम फांसी की सज़ा को, उम्र कैद में बदल कर रिहा करने के लिए शामिल था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार भाई लाल सिंह, नंद सिंह तथा सुबेग सिंह को तो तुरंत रिहाई मिल गई थी और भाई बलवीर सिंह, वरियाम सिंह तथा हरजिन्दर सिंह को बाद में रिहा कर दिये जाने के समाचार हैं, परन्तु इनकी पुष्टि नहीं हुई जबकि भाई दविन्दरपाल सिंह भुल्लर तथा भाई राजोआणा के मामले अभी लटक रहे हैं। केन्द्र सरकार को इस संबंधी 28 सितम्बर, 2019 को किया गया अपना वायदा पूरा करना चाहिए।
अदालत के सवाल पर आस
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में दोषी करार दिये जाने के बाद सज़ा-याफ्ता भाई बललंत सिंह राजोआणा के मामले को लेकर सवाल उठाए हैं तो न्याय पसंद लोगों के मन में फिर आशा की किरण जगी है क्योंकि जिस प्रकार का रवैया सुप्रीम कोर्ट के सुयोग्य न्यायाधीशों जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता तथा जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने भाई राजोआणा की अपील पर दिखाया है, वह न्याय की बात करता दिखाई देता है। पीठ ने भाई राजोआणा के मामले में केन्द्र सरकार द्वारा फैसले लेने में हो रही देरी पर सवाल उठाए हैं और साफ कहा है कि इतना लम्बा समय बीत जाने पर भी सरकार की चुप्पी गम्भीर सवाल खड़े करती है। उल्लेखनीय है कि भाई राजोआणा के वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में ज़ोरदार दलीलें दी हैं। यहां उल्लेखनीय है कि इतना लम्बा समय कैदी को मौत की सज़ा देकर चक्की में बंद रखना अपने-आप में ही  मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला माना जाता है। उदाहरण अन्य भी बहुत हैं, परन्तु एक स्पष्ट उदाहरण शत्रुघ्न चौहान का मामला है, जिसमें 2014 में अदालत ने फैसला सुनाया था कि लम्बी देरी को टार्चर की भांति मान के मौत की सज़ा उम्र कैद में बदली जा सकती है। इस मामले के कुछ मुख्य बिन्दु थे कि मौत की सज़ा को तेज़ी से लागू किया जाना चाहिए, मौत की सज़ा में अनावश्यक तथा अनुचित देरी से एक अमानवीय प्रभाव पड़ता है और यह निश्चित तौर पर धारा 21 का उल्लंघन है।
मौत की सज़ा का प्रचलन एक अलग एवं पहचानयोग्य प्रचलन है। यह अलग-अलग कारकों का एक जटिल परस्पर प्रभाव है और फांसी का इन्तज़ार कर रहे दोषी कैदी पर इसके गम्भीर परिणाम होते हैं।
यह भी लिखा गया कि धारा 21 में दर्ज जीवन का अधिकार सबसे कीमती मानवाधिकार है। यह अन्य सभी अधिकारों की नींव है। इसे किसी ऐसी प्रक्रिया के द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता जो बहुत लम्बी, अनिश्चित और अमानवीय हो। फिर इससे बड़ा अन्य सुबूत क्या हो सकता है कि भारत का गृह मंत्रालय 28 सितम्बर, 2019 को बाकायदा घोषित कर चुका है कि भाई राजोआणा की फांसी की सज़ा उम्र कैद में बदली जाएगी। अत: इन हालात को देखते हुए एक आशा की किरण तो दिखाई देती ही है कि उन्हें बड़ी राहत मिल सकती है।
इतनी त़ाखीर भी अच्छी कहां होती है ़खुदावंद,
जो तुम इन्स़ाफ करो मुझ को ना-इन्स़ाफी सा लगे।
(लाल फिरोज़पुरी)
(त़ाखीर = देरी) 
हास्यस्पद दलील
सब ने मिलाये हाथ यहां तीरगी के साथ,
कितना बड़ा मज़ाक हुआ रौशनी के साथ।
(वसीम बरेलवी)
(तीरगी = घना अंधेरी)
भाखड़ा ब्यास प्रबंधकीय बोर्ड (बी.बी.एम.बी.) ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस संजीव बेरी की पीठ के समक्ष एक दलील रखी है कि यदि उन्होंने (पंजाब ने)(हरियाणा के लिए)पानी छोड़ने से इन्कार न किया होता तो बाढ़ की स्थिति इतनी खराब ने होती। अदालत इस दलील को कैसे लेती है, पता नहीं, परन्तु आम लोग तथा बुद्धिजीवी इस दलील को हास्यस्पद ही मान रहे हैं। उल्लेखनीय है कि स्वयं बी.बी.एम.बी. के चेयरमैन साहिब एक प्रैस कान्फ्रैंस में कह चुके हैं कि प्रतिदिन 2.5 लाख क्यूसिक पानी आ रहा है, जबकि उस समय हरियाणा 8-10 दिनों के लिए सिर्फ 8500 क्यूसिक पानी प्रतिदिन मांग रहा था और पंजाब शायद 4400 क्यूसिक पानी मानवता के नाते दे भी रहा था। इसलिए ऐसी दलील एक काबिल वकील द्वारा क्यों दी गई, समझ से बाहर है, परन्तु हां, बी.बी.एम.बी. का फज़र् है कि वह इकालोजी के नियमों के अनुसार सारा साल हरियाणा में नदियों का सामर्थ्य का कम से कम 20 प्रतिशत पानी छोड़ता रहे ताकि जो नदियों तथा दरियाओं के जीव जीवित रह सकें और पंजाब के भू-जल का स्तर भी बहुत नीचे न जाए, परन्तु बी.बी.एम.बी. के इस से क्या? उसे तो हरियाणा तथा राजस्थान की ज़रूरतों के लिए बांधों को भर कर रखना ज़रूरी है और उसका उद्देश्य यह भी है कि बिजली भी लगातार बनती रह सके। यदि इस प्रकार बांध 25 प्रतिशत खाली हों तो सचमुच ही बाढ़ आने के आसार नहीं के बराबर होंगे, परन्तु किसी को क्या, नुकसान तो अकेले पंजाब को ही सहन करना पड़ता है।
10 लाख का बीमा लटकने के आसार 
चाहे सरकार ने मुख्यमंत्री सरबत बीमा योजना के तहत प्रत्येक परिवार का 10 लाख का बीमा करने के लिए दो ज़िलों में पायलट कार्यक्रम शुरू कर लिया है, परन्तु यह योजना लटकती प्रतीत होती है, क्योंकि हमारी जानकारी के अनुसार अभी तक सरकार को इस बीमे के लिए कोई बीमा कम्पनी नहीं मिली। इसका कारण सरकार की ओर से पेश की गई दरें तथा पंजाब सरकार की आर्थिक हालत को माना जा रहा है। हालांकि पंजाब सरकार का यह प्रयास प्रशंसनीय है, यदि यह ईमानदारी से तथा पूरी तरह लागू हो जाए। वैसे 65 लाख परिवारों के लिए यह लागू करना कोई आसान बात नहीं। इससे पहले जो बीमा हो रहा था, उसमें भी अधिकतर अस्पताल बहुत-सी बीमारियों के लिए मरीज़ का उपचार करने से इन्कार कर देते थे और इस बीमा के सहारे बैठे लोगों पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ता था कि अब वे अचानक पैसे कहां से लाएं? मैंने एक डाक्टर से पूछा तो उसका जवाब था कि पहली बात तो यह है कि बहुत-सी बीमारियों के उपचार के लिए जो रेट निश्चित किये गये हैं, उनसे अस्पताल को घाटा पड़ता है। फिर ये पैसे आसानी से मिलते भी नहीं। इस बीच यह भी पता लगा है कि अब पंजाब सरकार यह भी सोच रही है कि जिन परिवारों के पास पहले ही 5 लाख रुपये का केन्द्रीय आयुष्मान योजना का स्वास्थ्य बीमा है, उन्हें पांच लाख रुपये का टॉप-अप अर्थात आयुष्मान बीमा के 5 लाख रुपये के खर्च के बाद जो अन्य खर्च आए तो वह दिया जाए, जो असल बीमा से बहुत सस्ता पड़ता है। वैसे 2027 के चुनाव सिर पर हैं। देखो, पंजाब सरकार यह वायदा कैसे तथा कितना पूरा करती है।
एक वायदा है किसी का जो व़फा होता नहीं,
वरना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं।
(सागर सद्दीकी)

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