विश्व को भारत की अमूल्य सांस्कृतिक देन है रामलीला
रामलीला महज एक धार्मिक नाटक या लीला आयोजनभर नहीं है बल्कि यह भारत की जीवित सांस्कृतिक आत्मा है और दुनियाभर में भारतीय मूल्यों की जीवंत राजदूत की तरह काम करती है। भारत के बाहर चाहे इंडोनेशिया हो, चाहे थाइलैंड हो, चाहे त्रिनिदाद हो या मॉरीशस अथवा फिज़ी, जहां भी भारतीय पहुंचे हैं, वो अपने साथ रामलीला लेकर भी गये हैं। आज अमरीका जैसे प्रवासी केंद्र पर भारतीय संस्कृति की पहचान रामलीला है। रामलीला में आध्यात्म, कला, संगीत, नृत्य, रंगमंच और लोक संस्कृति सब समाहित है। यही कारण है कि साल 2008 में यूनेस्को ने रामलीला को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया, जो कि दुनिया को भारतीयों की देन है।
रामलीला का वृहत वैश्विक महत्व है, क्योंकि ये महज नाटक नहीं मानव मूल्याें का संदेश है। रामलीला सत्य, धर्म न्याय, त्याग, भाईचारे और करुणा जैसे सार्वभौमिक मूल्यों का वैश्विक दस्तावेज है। रामलीला के मूल्य सिर्फ हिंदू समाज तक सीमित नहीं हैं बल्कि ये समूची मानवता के पथ प्रदर्शक हैं। दुनिया के अनेक देशों जैसे इंडोनेशिया, थाइलैंड, कंबोडिया, त्रिनिदाद, फिज़ी, सूरीनाम, मॉरीशस, अमरीका, ब्रिटेन और कनाडा में रामलीलाओं का मंचन भारत में सांस्कृतिक ध्वजा की माफिक लहराता है। यहां की स्थानीय बोली, गीत, वेशभूषा और कलात्मक शैली मिलकर इसे एक वैश्विक नाट्य परंपरा बनाते हैं।
रामलीला दुनिया की अमूल्य धरोहर इसलिए है, क्याेंकि यह धर्म और संस्कृति को साझे लोकमंच में बदलती है। रामलीला में दर्शक और कलाकार के बीच कोई भेद नहीं रहता। कलाकार और कला के दर्शक दोनों एक ही भाव जगत में रहते हैं, इसलिए रामलीला भारत में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परंपरा और लोकसंस्कृति का संरक्षण करती है। आज दुनिया के मंच पर यह भारत की मजबूत पहचान है। आज दुनिया इस बात को स्वीकारती है कि भारत केवल तकनीकी और विज्ञान ही नहीं बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य भी देता है। इसलिए यूनेस्को ने रामलीला को ‘इन्टेंजिबल कल्चर हेरिटेज ऑफ ह्यूमिनिटी’ कहा है। रामलीला का मंचन केवल रामकथा का मंचन नहीं है बल्कि यह जीवन के सबसे संभावित आदर्श पाठों का मंचन होती है, जब हमारे बीच में ही साधारण लोग मजदूर, किसान, छात्र, युवा आदि राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान आदि का रूप धरकर रामकथा प्रस्तुत करते हैं तो यह धारणा प्रबल होती है कि सत्य और मूल्य किसी एक का नहीं बल्कि समूची मानवता का उनमें साझा है।
रामलीला की महत्ता इस बात से भी है कि यह लोककला और लोकआस्था का अनोखा संगम है। मंच पर, मंच के नीचे और हर तरफ मौजूद लोग रामलीला के कलाकारों के साथ ही दोहे, भजन और चौपाईयां दोहराते हैं और फिर ढोल, नगाड़े और लोकनृत्याें में पारंपरिक परिधानों में सजे कलाकार एक जीवंत कथा, उत्सव रचते हैं। इसलिए रामलीला सामूहिक उत्सव है। इसके कलाकार भी भाव विभोर होते हैं। रामलीला का अस्तित्व सदियों से मौखिक परंपरा के बल पर ही पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहा है। विद्यालयों और महाविद्यालयों में रामलीला के मंचन को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है और इस सबका अब डिजिटल दस्तावेजीकरण हो रहा है ताकि दुनिया में यह महान सांस्कृतिक परंपरा हमेशा के लिए बनी रहे। आज रामलीलाओं की डिजिटल रिकॉर्डिंग और डाक्यूमेंट्री फॉर्म में विकसित की गई रामलीलाएं दुनियाभर में देखी जा रहीं और सराही जा रही हैं। आज यह पर्यटन और सांस्कृतिक महोत्सवों का हिस्सा हैं। जैसे वाराणासी की रामनगर की रामलीला, भारत की यह अमूल्य सांस्कृतिक विरासत आज पूरी दुनिया में अपनी भव्य पहचान रखती है। यूनेस्को द्वारा इसे मानवता की अमूर्त धरोहर घोषित किये जाने का एक उद्देश्य यह भी था। आज अमरीका के ह्यूस्टन में हर साल भव्य रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें पूरी दुनिया के महत्वपूर्ण कलाकार हिस्सा लेते हैं और भारत की इस सांस्कृतिक परंपरा की खुशबू दुनिया के कोने-कोने तक फैलती है।
रामलीला भारत की संवेदनशील विश्व धरोहर है। चूंकि यह निरा संस्कृति ही नहीं इसमें धार्मिक आस्थाआें के तार भी जुड़े हैं। इसलिए जरा भी उपेक्षा या अतिरिक्त व्यवसायिकता इसके मूल भाव को कमजोर कर सकती है। यही कारण है कि रामलीला के आयोजन में चाहे जितना धन खर्च कर दिया जाए, इसे पूर्णत: व्यवसायिक नहीं बनाया जाता या बनाया जा सकता। क्योंकि यह भारत की एक ऐसी परंपरा है, जिसमें लोक धर्म और लोक आस्था की जड़ें गहरे तक फैली हैं। हिंदू संस्कृति, आध्यात्म और भारतीय जीवनमूल्यों की रामलीला प्रतिनिधि मानी जाती है। इसलिए इसमें पूर्णत: व्यवसायिक रंग नहीं आ सकते। धरोहर के रूप में इसका संरक्षण जरूरी है, लेकिन मनोरंजन के रूप में नहीं। इसलिए रामलीलाओं को आज भी व्यवसायिक कलाकारों से बचाकर रखा जाता है। अयोध्या, वाराणसी, रामनगर, मथुरा, मध्य प्रदेश और बिहार से लेकर दक्षिण भारत तक रामलीलाओं की शैलियां अलग-अलग और स्थानिकता से ओतप्रोत हैं। लेकिन कभी भी किसी शैली को एक-दूसरे से सुधारने की कोशिश नहीं की जाती, न ही रामलीलाओं को मुंबई, चेन्नई या कोलकाता की व्यवसायिक सिने इंडस्ट्री के हवाले किया जाता है। आदर्श रामलीलाएं आज भी अयोध्या और वाराणसी में होती हैं और इनकी तुलना कोई मुंबई से नहीं करता। क्याेंकि रामलीला भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक और संस्कृति का मंच है। किसी नाटक या फिल्म का नहीं, इसलिए रामलीलाआें पर आज भी लोक की भागीदारी ज्यादा और मज़बूत रहती है।
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