धार्मिक जुनून का ज़हर फैलाने लगा है पाकिस्तान

जब इज़रायल और ईरान के बीच लड़ाई चल रही थी, तब पाकिस्तान ने कहा था कि मुस्लिम देश इज़रायल के खिलाफ एक हो जाएं। मतलब वह चाहता था कि मुसलमान एक होकर यहूदियों की बहुलता वाले देश इज़रायल के खिलाफ गोलबंद हो जाएं। इसी तरह जब उसने सऊदी अरब से रक्षा करार किया तो उसमें यह कहा गया कि यदि सऊदी अरब पर कोई हमला करता है, तो यह हमला पाकिस्तान पर भी माना जायेगा। इसका मतलब यह था कि यदि पाकिस्तान पर कोई हमला करता है तो इसे सऊदी अरब भी अपने पर हमला मानेगा। इस करार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मतलब यह था कि पाकिस्तान चाहता है कि भारत की मदद करने वाले इज़रायल के खिलाफ पूरा मुस्लिम वर्ल्ड एक हो जाए। इस करार का संदेश साफ है कि पाकिस्तान चाहता है कि अब दुनिया धर्म और सांप्रदाय के रूप में गोलबंद हो जाए जिसका मतलब यह है कि अंतत: मौका पड़ने पर दुनिया बिना झिझक के सांप्रदायिक युद्ध के मैदान में कूद जाए। 
शांति का नोबेल पाने के ख्वाबों में जी रहे डोनाल्ड ट्रम्प की शह पर पाकिस्तान अब खुद की सुरक्षा के लिए दुनिया में सांप्रदायिक उन्माद भड़काकर युद्ध कराने के लिए बेताव नज़र आ रहा है। ट्रम्प के दरबार में जाकर गिड़गिड़ाना पाकिस्तान की फितरत में शामिल हो गया है। खासतौर पर जबसे उसे आपरेशन सिंदूर में भारत ने बेइज्जती की इंतहा पर ले जाकर छोड़ा है। पाकिस्तान और सऊदी अरब का सैन्य समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब पाकिस्तान को आतंकवादी देश के साथ ही ऐसे देश के लिए भी जाना जाने लगा, जो धर्मों के नाम पर लोगों की हत्या करने वाले आतंकियों का पनाहगार है। पूरी दुनिया जानती है कि पहलगांव में जिस तरह से धर्म पूंछकर हिंदुओं को मारा गया, वह मुस्लिम कट्टरता का एक ऐसा रूप था, जिसे किसी भी सूरत में धार्मिक सद्भाव नहीं कहा जा सकता। 
पाकिस्तान ने सऊदी अरब से जो समझौता किया है, उसके अनुसार अगर पाकिस्तान पर कोई देश हमला करता है या सैन्य कार्रवाई भी करता है, तो उसे सऊदी अरब पर भी हमला या कार्रवाई माना जाएगा। जैसे ही यह समझौता हुआ, वैसे ही सैन्य जानकार इस बात की पैरोकारी करने लगे हैं कि भारत को भी अब अपनी ताकत और बढ़ाने के लिए इज़रायल से ऐसा ही समझौता करना चाहिए या फिर उसे उन देशों के साथ इस बात पर बात करनी चाहिए कि अगर पाकिस्तान और उसके पालित आतंकी भारत में कोई हमला या कार्रवाई करते हैं, तो वे देश भी भारत को सपोर्ट करेंगे। 
वैसे,यही वक्त है कि अब भारत इज़राजल के साथ अपनी प्रतिबद्धता को उसी स्तर पर दोहराए, जिस तरह से पाकिस्तान ने दोहराया है। यूं भी अमरीकी राष्ट्रपति भारत पर नए-नए प्रतिबंध लगाकर, पाकिस्तान के हर कदम को सपोर्ट करने का एक प्रकार से नाटक ही कर रहे हैं। पूरा विश्व जानता है कि भारत और इज़रायल तीन दशक से अधिक पुराने दोस्त हैं तथा गाढ़े समय में इज़रायल ने हमेशा भारत की मदद की है। यह मदद सिर्फ सैन्य मामलों में ही नहीं है बल्कि कृषि व जल संसाधन जैसी आम ज़रूरताें के लिए भी की गई है। कारगिल में युद्ध के दौरान भारत की मदद करने वाला देश इज़रायल ही था। भारत-इजरायल में रणनीतिक साझेदारी के तहत रक्षा सहयोग में रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग तो हर वर्ष बढ़ ही रहा है, साथ ही आतंकवाद विरोधी लड़ाई में भी दोनों देश एक-दूसरे के साथ खड़े हैं। 
इज़रायल हमेशा से भारत के साथ विभिन्न मंचों पर नज़र आता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर जब ज़रूरत हुई तो उसने खुलकर समर्थन किया है। यह भी माना जाता है कि चीन और पाकिस्तान के साथ जब भारत का युद्ध हुआ तो वह सीधा ही मददगार रहा। यह बात सभी जानते हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर में जो कुछ भी किया वह काफी हद तक हमास की हरकतों से मिलता-जुलता रहा है। हमास इज़रायल की सीमा में जाकर क्या कर चुका है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। 
दरअसल पाकिस्तान चाहता है कि वह किसी भी तरह कश्मीर में आतंक फैलाता रहे ताकि भारत पीओके से दूर रहे। इसके लिए वह कभी अमरीका भागता है तो कभी चीन की चरण वंदना करता है। ‘आपरेशन सिंदूर’ में जब उसने देखा कि भारत ने अकेले ही उसके होश उड़ा दिए हैं, तो उसने अपना भविष्य इस बात में देखा कि अगर वह दुनिया को धर्मों के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा दे, तो उसे दूसरे मुस्लिम कंट्री से सहायता मिल जाएगी। पर वह यह नहीं समझता कि भारत अकेला ही काफी है, उसके और सऊदी अरब के विपरीत। यह ध्यान देने की बात है कि भारत की सैन्य ताकत इन दोनों देशों की मिलीजुली ताकत से भी अधिक है। भारत के पास आज की तारीख में सैन्य ताकत के रूप में रिजर्व सैनिकों को जोड़कर करीब बीस लाख सैनिक हैं जबकि पाकिस्तान और सऊदी अरब के पास कुल 12-13 लाख ही सैनिक होंगे। दूसरे सैन्य साजो-सामान की स्थिति क्या है, यह ‘आपरेशन सिंदूर’ और इससे पहले हुई सर्जिकल स्ट्राइक में दुनिया देख ही चुकी है। हां, जिस अमरीका को पाकिस्तान यह समझ रहा है कि वह उसे हर समय मदद करेगा, तो उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि जब उसके प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तथा आर्मी चीफ असीम मुनीर ट्रम्प के दरबार में हाज़िरी लगाने गए तो ट्रम्प ने उन्हें आधे घंटे तक इंतजार कराया। व्हाइट हाउस का कोई सार्वजानिक बयान नहीं देना, मुलाकात का फोटो जारी नहीं करना भी बताता है कि अमरीका की नज़र में पाकिस्तान की औकात सिर्फ किसी मांगने वाली भिखारी जैसी है। 
पाकिस्तान की धार्मिक सोच को पूरा विश्व जानता है। जब पाकिस्तान ने अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे बलूचों को आतंकी घोषित करने की बात कही, तो यूएस, यूके और फ्रांस ने उसे सिरे से खारिज कर दिया। बलूच ही हैं जो पाकिस्तान को उसके मंसूबों में कामयाब नहीं होने दे रहे। वैसे जब पाकिस्तान ने ईरान और इज़रायल के हमले के समय मुस्लिम वर्ल्ड को एक होने के लिए कहा था, तो इसी सऊदी अरब ने उसे ठेंगा दिखा दिया था, वह ईरान के साथ खड़ा है उसने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही थी। 
पाकिस्तान को मुस्लिम वर्ल्ड की एका के नाम पर ईरान और तुर्किए का ही साथ मिला जिन्होंने कहा कि इज़रायल के खिलाफ इस्लामिक गठबंधन हो जाना चाहिए। इसमें किसी भी ऐसे राष्ट्र ने इन्हें सपोर्ट नहीं किया जिसे कहा जा सके कि वह दुनिया में अपनी व्यक्तिगत हैसियत रखता है। तुर्किए को सभी जानते हैं कि वह भारत के खिलाफ जब-तब काम करता रहता है। उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी पाकिस्तान को सपोर्ट देने के लिए कश्मीर पर बयान दिया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज किया था और उसकी अर्थव्यवस्था भी भारत के बहिष्कार से काफी बिगड़ी है। इस कारण वह पाकिस्तान को अपना समर्थन देकर भारत या उसके दोस्तों को डराने-धमकाने का प्रयास कर रहा है लेकिन हाल में जिस तरह से डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को उसकी औकात बताई है और चीन भारत के प्रति नरम हो रहा है, उससे साफ है कि पाकिस्तान की रणनीति किसी को भी पसंद नहीं है। वैसे दुनिया में धार्मिक आधार पर अगर एका होता तो पाकिस्तान को ‘आपरेशन सिंदूर’ के दौरान मटियामेट होने की नौबत नहीं आती।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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