इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता  डिजिटल ब्लैकहोल का मंडराता खतरा 

इसे सहजता से यूं समझिये कि किसी भी कारण से अगर एक दिन आपका पांच साल पुराना फोन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। साथ ही आपकी तमाम स्मार्टनेस के बावजूद आपका डिजिटल डाटा पुन: हासिल नहीं होता है तो जरा सोचिये क्या होता है ? चूंकि हम लोग धीरे-धीरे इस स्थिति के लिए कंडीशंड हो गए हैं। इसलिए दो-चार दिन या हफ्ते-दो हफ्ते की तड़पन के बाद, फिर शून्य से पर्सनल डाटा जुटाना शुरू कर देते हैं। दो-चार महीनों के बाद जुटा भी लेते हैं। लेकिन इस बीच हमें इस डाटा के गायब होने से क्या मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ इसका हमारे पास कोई हिसाब नहीं होता। रखने का कोई फायदा भी नहीं है। लेकिन सोचिये कल को हमारे और आपके स्मार्ट फोन की ही तरह जीमेल वेबसाइट का ढांचा एक झटके में उड़ जाए तो ? और हां! यह महज दु:स्वप्न है ऐसा मत सोचिये, आखिर गूगल प्लस बंद हो जायेगी किसने सोचा था ? एक बात यह भी याद रखिये कि ऐसा इंसान की बिना किसी गलती से भी हो सकता है यानी इंसान कोई अनहोनी हरकत न भी करे तो यह कुदरत की किसी अनहोनी घटना से भी हो सकता है। सैटेलाइटों में कोई टक्कर हो जाए ? ब्रह्मांडीय बिजली का कोई प्रकोप आ जाए ? बारहों ऐसी आशंका को जन्म देने वाली चीजें हैं ? तब क्या होगा ? अभी कहीं पढ़ रहा था कि युगोस्लाविया में  पिछले तीन दशकों में जो उथल-पुथल हुआ, उसका कोई 95 प्रतिशत से ज्यादा ऐतिहासिक साहित्य गायब है क्योंकि यह जिन कुछ वेबसाइटों में मौजूद था वो ही नहीं रहीं। इसलिए 100 प्रतिशत डिजिटल होना अक्लमंदी नहीं है। वर्ल्ड वाइड वेब आविष्कारक टीम बर्नर्स ली ने खुद कहा है कि हमने इंटरनेट को बहुत खतरनाक बना दिया है। इंटरनेट के पिछले साल 29 साल पूरे होने पर ली ने अपने ब्लॉग में एक लेख लिखते हुए कहा था कि इंटरनेट को हथियार जैसा खतरनाक बना दिया है। गौरतलब है कि मार्च 1989 में टिम बर्नर्स ली ने रॉबर्ट साइलाउ के साथ मिलकर इसका पहला कॉन्सेप्ट तैयार किया था। वही टीम अब लिखते हैं कि आज हम हथियारबंद इंटरनेट तैयार कर रहे हैं। आगे वह व्यंग्य में लिखते हैं ये अब आदमी जैसा खतरनाक व्यवहार करने लगा है। हालांकि टीम ने इंटरनेट के भविष्य पर वैसे सवाल नहीं उठाये जैसे डरावने सवाल कुछ दूसरे वैज्ञानिकों और इसके व्यवहारिक विशेषज्ञों ने उठाये हैं। स्टैनफोर्ड विश्व विद्यालय के जेफ  हैनकॉक जो कि  ऑनलाइन कम्युनिकेशन से जुड़े मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं, अपने छात्रों के अनुभव के आधार पर लिखते हैं कि आज अगर वे ऑफ लाइन हो जाते हैं तो उनके मुताबिक उनके काम पर बुरा असर पड़ता है, सोशल लाइफ प्रभावित होती है और दोस्तों और परिवार को चिंता होने लगती है कि कहीं उनके साथ कुछ अशुभ तो नहीं हो गया। क्योंकि अगर सब कुछ सही है तो आप निश्चित ही ऑनलाइन होंगे। वास्तव में आज की जिंदगी पूरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर जिंदगी है। ऐसे में यह महज एक जिज्ञासु सवाल भर नहीं है बल्कि झुरझुरी पैदा करने वाला डर है कि अगर एक दिन के लिए इंटरनेट बंद हो जाए तो क्या होगा ? आज इंटरनेट पर अर्थव्यवस्था, सफर (ट्रांसपोर्टेशन) कारोबार और किसी हद तक हमारा समूचा सक्रिय जीवन जिनमें विशेष रूप से सेवा आधारित समस्त गतिविधियां भी शामिल हैं, इंटरनेट पर पूरी तरह से आश्रित हो चुकी हैं। अढ़ाई दशक पहले 1995-96 में जब अभी इंटरनेट आया ही था, तो एक प्रतिशत से भी कम लोग ऑनलाइन थे। आज साढ़े तीन अरब से ज्यादा लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है। कहा जा सकता है कि धरती की आधी आबादी ऑनलाइन है। ये संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। माना जा रहा है कि हर एक घंटे में 5000 से ज्यादा लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं। आज 73 प्रतिशत अमरीकी हर रोज इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। जबकि लंदन में यह औसत करीब 90 प्रतिशत के आसपास है। इंटरनेट पर इस हद तक बढ़ी निर्भरता से साइबर हमलों की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। साइबर हमले इंटरनेट यूजर्स को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसमें इंटरनेट एक्सेस से लेकर निजी जानकारियों को चुराए जाने का खतरा शामिल है। यह मत सोचिये कि आप ज्यादा विकसित हैं तो आपको कम खतरा है बल्कि जो देश जितना ही विकसित और बड़ा होता है, वहां इंटरनेट के खतरे उतने ही ज्यादा होते हैं। सिर्फ  दुश्मनों की ही क्यों सोचें कुदरत भी तो इस मामले में दुश्मन बन सकती है ? अंतरिक्ष गतिविधियों का इंटरनेट कनेक्शन पर सबसे खराब असर पड़ता है। सौर तूफान से हमारी तरफ  जो तेज रोशनी आती है वो अगर काल्पनिक स्तर तक ज्यादा हो जाए,जो कि संभव है तो यह हमारे उपग्रह, पावरग्रिड और कंप्यूटर सिस्टम सबको ठप कर देती है। किसी भी क्षेत्र के समूचे कामकाज को इंटरनेट आधारित कर देना एक तरह से अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारना है। इसीलिये विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि हफ्ते में एक दिन तमाम कम्पनियों को पूरी तरह से इंटरनेट मुक्त रहना चाहिए। इस दौरान कर्मचारियों को पुराने तरीके से काम करना चाहिए। इस दिन हवाई जहाज, ट्रेन, बस आदि को भी  बिना इंटरनेट पुरानी पद्धति से संचालित करना चाहिए ताकि कभी एकाएक ऐसी स्थिति आ जाए तो सब कुछ भूल गया है, यह सुनने को न मिले। जबकि आज की तारीख में यह हो रहा है कि कार्यक्षमता बढ़ाने के नाम पर तमाम छोटे कारोबार तो पूरी तरह से हाईटेक हो चुके हैं। अचानक किसी दिन इंटरनेट अगर बंद हो जाए तो इसका सिर्फ  भौतिक असर ही नहीं पड़ेगा, इसका मनोवैज्ञानिक असर भी पड़ेगा। लोगों में बेचैनी बढ़ेगी, वे सामाजिक रूप से खुद के अलग-थलग पड़ गया महसूस करेंगे। दरअसल आज की सच्चाई यह है कि दुनिया की करीब आधी आबादी एक दूसरे से संवाद इसी के जरिये करती है। दोस्तों-रिश्तेदारों आदि से आज सम्पर्क का सबसे बड़ा माध्यम इंटरनेट ही है। दरअसल आज की तारीख में इंटरनेट के बदौलत ही तमाम रिश्तेदारियों और सम्बन्धों का अस्तित्व है। यही कारण है कि आज की तारीख में वे लोग, उन लोगों से कहीं ज्यादा सोशल हैं जो लोग इंटरनेट सेवी नहीं हैं।

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर