आज़ादी की लहर में लासानी है पंजाब का योगदान

सिख इतिहासकार प्रिंसीपल सतबीर सिंह लिखते हैं ‘भारत की आज़ादी की ज़मीन गदरी बाबाओं ने तैयार की, नक्शा जलियांवाला ब़ाग में तैयार हुआ, नींव गुरु के ब़ाग में रखी गई, दीवारें रावी के किनारे 1930 को और छत आज़ाद हिन्द फौज ने डाली।’ 
नि:संदेह भारत वर्ष को ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी से मुक्ति के लिए देश के अलग-अलग क्षेत्रों के जांबाज़ों और स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता, परन्तु अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम को शुरू करने में पंजाब और खास तौर पर सिखों का योगदान बहुत लासानी है। देश की आबादी का महज़ डेढ़ प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद सिखों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में 80 प्रतिशत से अधिक कुर्बानियों का बेमिसाल इतिहास रचा गया। ब्रिटिश सरकार के खुफिया रिकार्ड के अनुसार ही 1907 से 1917 तक हिन्दोस्तान में फांसी पर लटकाए गए कुल 47 शहीदों में से 38 सिख थे। उम्र कैद वाले 30 स्वतंत्रता सेनानियों में से 27 सिख थे। उम्र कैद और सम्पत्ति ज़ब्त करने की सज़ाओं का सामना करने वाले कुल 38 में से 31 सिख थे। काले पानी में कुल 29 योद्धाओं को भेजा गया, उनमें से 26 सिख थे। कड़ी सज़ाएं कुल 47 को हुई और उनमें से भी 38 सिख थे। 
विस्तृत आंकड़े देखे जाएं तो देश के आज़ाद होने तक ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जंग के दौरान कुल 121 शहीदों ने फांसी के फंदे चूमे, जिनमें से 93 सिख थे। उम्र कैद भोगने वाले 2646 स्वतंत्रता सेनानियों में से 2147 सिख थे। जलियांवाला ब़ाग के दुखांत के 1300 शहीदों में से 799 सिख थे। बजबज घाट के दुखांत में शहीद होने वाले 113 में से 67 सिख, कूका लहर के दौरान 91 के 91 और अकाली लहर के दौरान शहीद होने वाले 500 सिख ही थे। इन आंकड़ों की पुष्टि मौलाना आज़ाद ने भी थी। ये आंकड़े भी स्वतंत्रता संग्राम में सिखों की कुल कुर्बानियों का महज़ एक ही हिस्सा हैं। यदि भारत की आज़ादी में समूह पंजाबियों के योगदान का मूल्यांकन किया जाए, तो यह 90 प्रतिशत के लगभग बन जाता है। 
जब अंग्रेज़ों ने अभी पंजाब में अपने पांव भी पूरी तरह नहीं जमाये थे, कि नौरंगाबाद के बाबा महाराज सिंह ने 1847 में विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया। सरकार ने उनको पकड़ कर सिंगापुर जेल भेज दिया, जहां उनकी मौत हो गई। स. अत्तर सिंह अटारी वाले ने आज़ादी का बिगुल बजाया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। अंतत: 1849 को अंग्रेज़ों ने पंजाब सहित समूचे भारत को अपने शासन में मिला लिया। ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सबसे पहला शांति पूर्ण आन्दोलन पंजाब से ही 1869 में बाबा राम सिंह जी नामधारी ने शुरू किया। बाबा राम सिंह ही थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन से आधी सदी पूर्व ही अंग्रेज़ी ज़ुबान, अंग्रेज़ी लिबास, फिरंगी सरकार की नौकरियों, अदालतों, डाकघर और रेलगाड़ियों के बहिष्कार का आह्वान किया। अंग्रेज़ों द्वारा जनवरी 1872 में 66 नामधारी शूरवीरों को मालेरकोटला में तोपों से उड़ा दिया गया। हकूमत ने बाबा राम सिंह और उनके 12 साथियों को देश निकाला देते हुए बर्मा भेज दिया।
वर्ष 1907 में शहीद भगत सिंह के चाचा स. अजीत सिंह ने ‘पगड़ी सम्भाल जट्टा’ का आह्वान करके आज़ादी के प्रेमियों को जगाया। पंजाबी युवक मदन लाल ढींगरा ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विरोध प्रकट करते हुए ब्रिटिश अधिकारी विलियम कज़र्न वाइली को गोली से उड़ाने के बाद 16 अगस्त, 1909 को शहीदी दी। 1913 में उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट पर रहने वाले कुछ सिखों ने लाला हरदयाल और भाई परमानंद के सहयोग से ‘गदर पार्टी’ का गठन किया, जिसके प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया। कामागाटामारू जहाज के कुल 376 यात्रियों में से 340 सिख थे और शहीद होने वाले सभी सिख थे। इस घटना ने अन्य देशों में रह रहे भारतीयों के  मन में भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध ब़गावत की चिंगारी जला दी। 
अमरीका में ‘गदर लहर’ को प्रचंड करने के बाद करतार सिंह सराभा ने भारत आकर भारतीय सैनिकों के दिलो में भी आज़ादी की चिंगारी जलाने के प्रयास शुरू किए। स्वतंत्रता सेनानियों ने मिल कर 19 फरवरी, 1915 को अलग-अलग छावनियों में हिन्दुस्तानी सेना से ब़गावत करवा कर सत्ता पलट करने की योजना बनाई, परन्तु सरकार के पास किसी मुखबिर ने पहले ही खबर दी और यह योजना पूरी नहीं हो सकी। 16, नवम्बर, 1915 को स. सराभा को 6 अन्य सिख साथियों सहित फांसी के तख्त पर लटका दिया गया। फिरोज़पुर छावनी पर कब्ज़ा करने की कोशिशों के आरोप में भाई रणधीर सिंह को भी गिरफ्तार करके उम्र कैद सुनाई गई और सारी सम्पत्ति ज़ब्त करने के आदेश दिये गये।  वर्ष 1918 में देश को आज़ाद करवाने के लिए महात्मा गांधी के शांति पूर्ण आन्दोलन की शुरुआत भी 1919 की वैसाखी पर जलियांवाला ब़ाग और फिर 8 अगस्त, 1922 को अकाली झंडे में ‘गुरु के ब़ाग’ के मोर्चे में सिखों ने ही किया। 
1922 में ‘बब्बर अकाली लहर’ की नींव रख कर बब्बरों ने ब्रिटिश साम्राज्य को कम्पकपी छेड़ दी। कालोनी एक्ट के विरुद्ध बार तहरीक में शहीद होने वाले, उम्र कैद की सज़ाएं भोगने वाले और अंग्रेज़ सरकार की जेलों में कष्ट भोगने वाले सभी सिख थे। आज़ाद हिन्द फौज को कायम करने वाले जनरल मोहन सिंह थे और इस सेना में शामिल 42 हज़ार सैनिकों में से 28 हज़ार सिख थे। जलियांवाला ब़ाग के दुखांत का बदला स. ऊधम सिंह सुनाम वाले ने पूरे 21 वर्ष बाद लंदन जाकर जनरल ओडवायर को मार कर लिया। वर्ष 1942 में कांग्रेस के आह्वान पर भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान सरकार द्वारा गिरफ्तार किए जाने वालों में तीन चौथाई संख्या सिखों की थी।  ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में 30 अक्तूबर, 1928 के दिन लाहौर रेलवे स्टेशन पर लगभग 7 हज़ार लोगों ने साइमन कमीशन गो बैक के नारों से आसमान गूंजा दिया। प्रदर्शनकारियों में बहु-संख्या पंजाबियों की थी। ब्रिटिश सरकार द्वारा किए अंधे लाठीचार्ज के दौरान लाला लाजपत राय का घायल होने के बाद 17 नवम्बर, 1928 को निधन हो गया। देश को आज़ाद करवाने के लिए पंजाब में चंद्र शेखर आज़ाद के नेतृत्व में ‘हिन्दोस्तान समाजवादी गणतंत्र सेना’ कायम की गई। शहीद-ए-आज़म स. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की आज़ादी के लिए हुई शहादत ने देश में आज़ादी की लहर और प्रचंड कर दी।
भारत की आज़ादी का कोई भी ऐसा मोर्चा नहीं था, जिस पर पंजाब खास तौर पर सिख कौम ने आबादी के अनुपात से देश की अन्य कौमों की अपेक्षा सबसे आगे होकर योगदान न डाला हो। आज़ाद होने पर भारत-पाक बंटवारे का सबसे अधिक संताप पंजाब और सिखों को ही भोगना पड़ा। 
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