आज़ादी के सात दशकों में- मज़बूत हुआ विज्ञान और तकनीक का ताना-बाना

नवंबर 1963 की कुछ तस्वीरें हैं, जिनमें रॉकेट को साइकिल और बैलगाड़ी पर लादकर थुम्बा के लांचपैड तक पहुंचाया जा रहा है। आज जब बावन बरस बाद देश अपने बनाये अंतरिक्षयान से चंद्रमा पर अपना अंतरिक्ष यात्री उतारने की तैयारी में है तो इस तस्वीर को देखकर वाकई अचरज होता है। विज्ञान और तकनीकी के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें आजादी के बाद बीते बहत्तर बरसों में उल्लेखनीय प्रगति हुयी है। कुछ की तेज रफ्तारी तो वाकई काबिले-दाद है। चिकित्सा, दवा, सूचना, संचार, मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, रक्षा और कृषि इत्यादि ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिन्होंने अपने कौशल और कार्यदक्षता से अपनी कीरत कथाएं लिखी हैं। 
इन कथाओं के नायक और चरित्रों में मिसाइल मैन  अब्दुल कलाम, संरचनात्मक रसायन शास्त्र के विशेषज्ञ सी.एन. राव, अंतरिक्ष विज्ञानी जी. माधवन नायर, एस. किरण कुमार, के. राधाकृष्णन , कस्तूरी रंगन, सतीश धवन, होमी जहांगीर भाभा, वर्गीज कुरियन, शांति स्वरूप भटनागर, प्रशातचंद्र महालनोबीस, विश्वेसरैय्या और ई. श्रीधरन जैसे शताधिक नाम शामिल हैं। इन वैज्ञानिकों ने जिन संस्थानों संगठनों की नींव रखी या अगुवाई की, अथवा कार्य किया उन्होंने ही हमें यहां तक पहुंचाया। रामानुजन के गणित ने और बोस तथा रमन की भौतिकी ने यह पहले ही दिखा दिया था कि भारतीय वैज्ञानिक सबसे अगली कतारों तक पहुंचने के लायक हैं।  आजादी के बाद जल्द ही हमारे नीति निर्धारकों की समझ में आ गया कि अगर संपेरों के देश वाली छवि छूटेगी, तभी संसार भारत को और उसके नेताओं को गंभीरता से लेगा। आधुनिक शासन व्यवस्था में कोई पहुंच और पूछ रहेगी। यह सब वैज्ञानिक क्षमता के विकास से ही हो सकेगा। 
इसलिये आजादी के बाद  विज्ञान के क्षेत्र को प्राथमिकता दी गयी। सभी सरकारों ने कल कारखानों पर जोर दिया और उसके बाद हरित क्रांति आयी, फिर श्वेत क्त्रांति। इसके बाद अंतरिक्ष विज्ञान और नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में कदम बढ़े। शोध और विज्ञान के दर्जनों संस्थान शुरू हुये। आजादी के बाद दर्जनों उच्चस्तरीय तकनीक शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थान भी आरंभ हुए। मुट्ठीभर जो पहले से थे, उनको भी विस्तार दिया गया। विज्ञान का संबंध हर व्यक्ति से है। सरकारों ने इसकी जरूरत समझी और दशक भर के भीतर ही विज्ञान और तकनीक पर राजस्व आवंटन पांच गुना कर दिया गया। शुरुआत में हमारी अधिकतम तकनीक आयातित थी मगर आजादी के बाद बीते सात दशकों में हम कई क्षेत्रों में न सिर्फ  आत्म-निर्भर हैं बल्कि दूसरों की सहायता कर रहे हैं। दूसरों ने मना किया तो हमने ज़िद में न सिर्फ अपना सुपर कंप्यूटर बना डाला, अपितु उसे बेचने भी लगे।
बीते सात दशकों में हम नाभिकीय शक्ति बने, कई नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये। विभिन्न दूरी वाली मारक मिसायलें बनाईं। यहां तक कि विकसित देशों से होड़ लेने वाला तेजस नामक हल्का युद्धक विमान भी। बात केवल रक्षा अथवा अंतरिक्ष क्षेत्र की नहीं है। मौसम विज्ञान को ही लें तो आजादी के बाद अभी एक दशक पहले तक इसकी प्रतिष्ठा यह थी कि जो घोषणा होती थी, उसका विपरीत समझा जाता, मजाक बनता था। आज हमारे मौसम विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि उसकी सूचनाएं इतनी सटीक होती हैं कि विगत वर्षों में चक्रवाती तूफान की अग्रिम सूचना से हमने हजारों जानें बचाईर्ं। आज भारत को विश्व का दवाखाना कहा जाता है, क्योंकि  छोटे विकासशील और गरीब देशों को ही नही,ं विकसित देशों को भी हम सस्ती दवा की आपूर्ति करते हैं। 1954 में जब तत्कालीन सोवियत संघ की सहायता से इंडियन ड्रग और फर्मास्यूटिकल लिमिटेड की स्थापना की गयी थी, तब सोच दवाओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने तक की थी पर उसके बाद कुछ ही दशकों में दवा के शोध, विकास एवं निर्माण के क्षेत्र में भारत विकसित देशों को भी मात देने लगा।    
आजादी के बाद इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च ने जब यह विचार किया कि शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, संचार तकनीक तथा मौसम और अंतरिक्ष विज्ञान में विकास के लिये उपग्रह प्रक्षेपित किया जाना चाहिये, विक्रम साराभाई, माधवन और कलाम जैसे वैज्ञानिकों ने छह से कम दशकों में इस सोच को इस ऊंचाई तक पहुंचा दिया कि जिसकी कल्पना भी तब मुश्किल थी। घरेलू संचार के लिए उपग्रह विकसित करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला भारत दुनिया का चौथा देश और अपने पहले ही प्रयास में सफल रहने वाला पहला देश है। चंद्रमा पर पानी भारत ने खोजा और चंद्रमा की पड़ताल के लिए भेजे जाने वाले चंद्रयान-2 को लॉन्च करने में सफलता अर्जित की। अब गगनयान की तैयारी है।   
1950 के बाद अमूल के जरिये वर्गीज कुरियन द्वारा लायी, श्वेत क्रांति ने बहुत कुछ बदल दिया। हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे समाज को वैज्ञानिक तेवर विकसित करने में कोई मदद मिल सकी हो, अभी तक नहीं दिखा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर