चिंताजनक है जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या

आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया की सारी आबादी के 18 प्रतिशत हिस्से को पानी की प्राप्ति नहीं होती। देखने में आया है कि विकासशील देशों में हर वर्ष 22 लाख व्यक्ति शुद्ध पेयजल उपलब्ध न हो सकने के कारण मौत को गले लगा लेते हैं। पेड़-पौधे भी आवश्यक पोषक तत्व जल से ही ग्रहन करते हैं। जल में अनेक प्रकार के कार्बनिक तथा आकार्बनिक पदार्थ, खनिज तत्व तथा गैसें घुली होती हैं। अगर इन तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो यह जल पीने के काबिल नहीं होता। पीने पर नुक्सान देता है। इसे हम प्रदूषित जल कहते हैं। जल का प्रदूषण अनेक तरीकों से हो सकता है, जैसे कुओं, तालाबों तथा नदियों में गंदगी डालना। नदियों तथा समुद्रों में डाली गई गंदगी विषैले योगिकों के रूप में बदल जाती है। यह टोकसिक पदार्थ मछलियों के आहार के रूप में मनुष्यों के शरीर में पहुंचकर अनेक ऐसे रोगों को जन्म देते हैं जिनसे मृत्यु तक हो जाती है। वस्तुत: आज विकासशील देशों की जनसंख्या का एक बड़ा भाग प्रदूषित जल के सेवन से फैलने वाले रोगों से ग्रस्त है। विकासशील देशों में साफ पानी का 56 प्रतिशत भाग कई कारणों से बर्बाद हो जाता है। बहुत से गांवों और कस्बों की औरतें, खासकर पहाड़ी इलाकों में 6-7 किलोमीटर की दूरी से साफ पानी घड़ों में भर कर लाती हैं।  एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया की और खासकर भारत की नदियां घरेलू और औद्योगिक कचरे की वजह से सबसे ज्यादा प्रदूषण का शिकार हुई हैं। इन नदियों में प्राप्त होने वाले सीसे की मात्रा दुनिया के दूसरे औद्योगिक देशों की नदियों में मिलने वाले सीसे की मात्रा से बीस गुना ज्यादा है। बढ़ते हुए प्रदूषण, आबादी की बढ़ोतरी तथा आबो-हवा में तेजी से हो रही तबदीली की वजह से कुदरती जल स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं। इस प्रदूषित पानी की वजह से भारत में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा बताई जाती है। पानी पीने से दमा, नेत्र रोग, रक्त संचार में गड़बड़ी तथा लकवा मार जाता है।