रामायण के रचयिता भगवान वाल्मीकि

भगवान वाल्मीकि जी की महिमा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि उनका प्रकाश समूची दुनिया में फैला हुआ है। ऐसा इस कारण है कि उनकी महान काव्य रचना ‘रामायण’ तथा ‘योग विशिष्ट’ का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। भगवान वाल्मीकि जी किसी वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करते। उनका सम्मान और प्रभाव पूरे विश्व में है। सम्मान के तौर पर उनको ‘ब्रह्म ज्ञानी’, ‘महर्षि’ या ‘भगवान’ कहकर भी सम्बोधन किया जाता है। भारत के अनेक स्थान हैं, जो भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम माने जाते हैं, जैसे श्री अमृतसर साहिब का वाल्मीकि आश्रम, सीतामढ़ी हरियाणा, उत्तर प्रदेश के बालौनी, बाबीना, बिठूर, वाराणसी, भीटी, मध्य प्रदेश के सुनारदी, सीता रपटन, सीतावाड़ी तथा बिहार में भैसान लौटन आदि। भगवान वाल्मीकि जी का प्रकाश उत्सव प्रत्येक वर्ष आश्विन की पूर्णमाशी को मनाया जाता है। आश्विन महीने की प्रकृति बहुत खूबसूरत होती है। गर्मी और वर्षा ऋतु बीतने के बाद ठण्ड का आगमन होता है। प्रकृति शांत हो जाती है। भगवान वाल्मीकि जी ने रामायण में प्रकृति और ऋतुओं का बहुत खूबसूरत वर्णन किया है। शीत ऋतु में नदियों, झरनों का पानी साफ और निर्मल हो जाता है। पक्षी और जानवर भी कम ही बोलते हैं। सूर्य दक्षिण दिशा में चला जाता है। आरण्य के आरणेकांड में बीहड़ जंगलों के दृश्य खूबसूरत और मनमोहक लगते हैं। भगवान वाल्मीकि जी के जीवन काल को निर्धारित करना एक कठिन कार्य है। आधुनिक विद्वानों ने महाभारत काल को 5000 ईसा पूर्व वर्ष माना है और रामायण काल महाभारत काल से भी पहले हुआ है। महाभारत में रामायण के पात्रों का वर्णन है परन्तु रामायण में महाभारत के पात्रों का ज़िक्र तक नहीं है। महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि एक बार पाण्डव पुत्र युधिष्ठिर ने यज्ञ रचाया और उसमें श्री कृष्ण जी के कहने के अनुसार ब्रह्म ज्ञानी वाल्मीकि जी को यज्ञ सम्पूर्ण करने के लिए बुलाया गया था। श्री वाल्मीकि जी को प्रचेता वरुण पुत्र भी कहा जाता है। रामायण भगवान वाल्मीकि जी का प्रथम काव्य रचना है। यह 24,000 श्लोकों पर आधारित संस्कृत में रचित है, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को नर से नारायण बना दिया, जिनकी जीवन गाथा श्री वाल्मीकि जी के लिखित काव्य के कारण ही सुरक्षित है। भगवान वाल्मीकि जी द्वारा दूसरा बड़ा महाकाव्य ‘योग विशिष्ट’ को माना जाता है, जिसको महा-रामायण भी कहा जाता है। यह अध्यात्मवाद और अद्वैतवाद का ग्रंथ है। यह लगभग 32,000 श्लोकों पर आधारित है। ईश्वर की सर्व-व्यापकता साबित करने के लिए वाल्मीकि जी योग विशिष्ट में लिखते हैं, ‘ईश्वर अनादि और अनंत है। आकार और पूजा तो उन लोगों के लिए हैं, जो परम तत्व से परिचित नहीं हैं। रुद्र आदि देवों को पूजने से सिर्फ नपी-तुली चीज ही प्राप्त होती है, परन्तु जो लोग आदि और अनादि देव की पूजा करते हैं, उनको अलौकिक आनंद प्राप्त होता है। परम पिता परमात्मा का सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते हमेशा ही ध्यान करना चाहिए।