" हरियाणा विधानसभा चुनाव " लोक-लुभावन घोषणा पत्र

हरियाणा विधानसभा के लिए 21 अक्तूबर को होने वाले चुनाव हेतु अखिल भारतीय कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) एवं भारतीय जनता पार्टी ने एक-एक दिन के अन्तराल पर अपने-अपने घोषणा पत्र एवं संकल्प पत्र जारी कर दिये हैं जिससे चुनाव प्रचार के दौरान उठने वाले मुद्दों की बात काफी हद तक स्पष्ट होने लगी है। पिछले हफ्ते पहली बार चुनाव लड़ रही पार्टी स्वराज इंडिया ने भी अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया था। सभी घोषणा पत्रों में अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर बड़े-बड़े वायदे एवं दावे किये गये हैं, तथापि कई ऐसे वायदे भी हैं जिन्हें पूर्व में भी अक्सर राजनीतिक दल करते अथवा दोहराते आए हैं। हरियाणा प्रांत भी चूंकि पंजाब की ही भांति कृषि आधारित प्रदेश है, अत: दोनों के घोषणा पत्रों में देहात, कृषि, किसान, उत्पादन, ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था और कृषि पैदावार पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है। दोनों घोषणा पत्रों में युवाओं एवं महिलाओं से जुड़े मामलों को लेकर भी बड़ी बातें कही गई हैं। बस, कहने और करने का अन्दाज़ भर बदला गया है। चुनाव घोषणा पत्र किसी भी राजनीतिक दल की नीतियों एवं कार्यक्रमों का आईना होते हैं। घोषणा पत्र में स्पष्ट करने का यत्न किया गया होता है कि राजनीतिक सत्ता हासिल होने पर वे किस प्रकार की नीतियों का अनुसरण करेंगे अथवा  कार्यक्रम तैयार करेंगे। अतीत में जब कभी घोषणा पत्र जारी होते थे, तो नि:संदेह राजनीतिक दल और उनके शीर्ष नेता यथा-सम्भव और यथा-शक्ति घोषणा पत्र में वर्णित मुद्दों अथवा नुक्तों का क्रमानुसार समय-समय पर विश्लेषण करते रहते थे, परन्तु कालान्तर में चुनाव घोषणा पत्र मात्र एक औपचारिकता में परिवर्तित होते चले गये।  इन पर अमल करने की बात धीरे-धीरे पृष्ठ-भूमि में पिछड़ते चली गई। फिर भी बड़े राजनीतिक दल चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हैं और जन-साधारण, खास तौर पर मतदाता इनमें रुचि भी लेते हैं। वैसे चुनाव घोषणा पत्रों का एक लाभ यह होता है कि कम से कम जन-साधारण के पास एक ऐसा दस्तावेज़ आ जाता है जिसके ज़रिये वे राजनीतिक दलों के नेताओं को समय आने पर उनके द्वारा किये गये वायदों एवं दावों के प्रति चेता तो अवश्य सकते हैं। कांग्रेस के घोषणा पत्र में इस बार सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने को प्राथमिकता के धरातल पर रखा गया है जबकि इनेलो के घोषणा पत्र में गरीब, बेरोज़गार महिलाओं को 2000 रुपये प्रतिमाह देने की बात कही गई है। भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र को कृषि, किसान, सिंचाई और पशु-धन पर केन्द्रित रखा है। दलितों और पिछड़े वर्गों को प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण देने की बात कांग्रेस ने अवश्य पहली बार की है। राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त वाली घोषणाओं को भी निरन्तर बढ़ाया जाता रहता है। पंजाब में किसानों को बिजली-पानी मुफ्त दिये जाने की भांति, हरियाणा में भी कांग्रेस एवं इनेलो ने गरीब किसानों को मुफ्त बिजली देने का वायदा किया है। भाजपा ने कृषि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों का भी ज़िक्र किया है। रोडवेज बसों में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा और पत्रकारों के लिए टोल-टैक्स एवं बस-यात्रा मुफ्त किया जाना भी इन्हीं घोषणाओं में शामिल है। किसानों का ऋण माफ करना बेशक एक बहुत पुरानी एवं घिसी-पिटी राजनीतिक घोषणा हो गई है। पिछले चार दशकों से राजनीतिक दल किसान कर्ज़े -माफी की घोषणाएं करते आ रहे हैं, परन्तु ये कर्ज़े हैं कि शैतान की आंत की तरह बढ़ते जा रहे हैं। यह भी कि इतनी बड़ी-बड़ी घोषणाओं एवं दावों के बावजूद किसानों की आत्महत्याएं थम नहीं रहीं। तथापि, यह एक घोषणा नई बात हो सकती है कि कांग्रेस ने किसानों के कर्ज़े  माफ करने हेतु 24 घंटे की समय सीमा की बात कही है जबकि इनेलो ने 10 लाख तक के कर्ज़े माफ करने की घोषणा के साथ व्यापारियों का नाम भी जोड़ दिया है। गर्भवती महिलाओं को बच्चा होने तक 3500 रुपये प्रतिमाह और बच्चा होने के बाद पांच वर्ष तक 5000 रुपये प्रतिमाह देने का कांग्रेस का वायदा और भाजपा का किसानों की आय दो गुणा करने का वायदा भी लोक-लुभावन प्रतीत होते हैं। तथापि, कांग्रेस द्वारा स्नातक एवं स्नातकोत्तर बेरोज़गारों को 10 हज़ार रुपये तक भत्ता देने की घोषणा एक सराहनीय फैसला माना जा सकता है। राजनीतिक दल एवं सरकारें प्राय: ऐसी घोषणाएं तो करते रहते हैं, परन्तु बेरोज़गारों की नियति इस मामले में कभी साज़गार नहीं हो पाई। पत्रकारों के लिए 20 हज़ार रुपये मासिक पैंशन और सीवर सफाई कर्मचारियों को 10 लाख रुपये का बीमा प्रदान करना भी कांग्रेस घोषणा पत्र का एक सराहनीय पग हो सकता है। प्रति परिवार एक नौकरी की घोषणा भी अच्छी हो सकती है, परन्तु यक्ष प्रश्न यह भी है कि नई सरकार इतनी अधिक नौकरियां कहां से लायेगी? ग्रामीण धरातल पर स्व-रोज़गार और बेरोज़गार युवाओं को ट्रैक्टर-ट्राली पर सबसिडी एवं कृषि बीमा किश्तों को सरकार द्वारा अदा करने की बात तो समझ आती है, परन्तु इसके लिए भी तो बड़ी धन-राशि चाहिए। हम समझते हैं कि नि:संदेह  कांग्रेस, इनेलो एवं भाजपा, तीनों दलों के घोषणा पत्र लोक-लुभावन हैं, और इन लुभावनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए सचमुच भारी धन-राशि की आवश्यकता होगी। प्रदेश के मौजूदा वित्तीय ढांचे में फिलहाल तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखती जिससे अरबों रुपये का अतिरिक्त राजस्व एकत्रित हो सके। इस राशि को हासिल करने के लिए सरकार यदि नये कर लगायेगी, तो अलोकप्रिय होने का ़खतरा बढ़ेगा। कुल मिला कर ये घोषणा पत्र बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा आजकल देश की राजनीति का चरित्र हो गया है कि वायदों, दावों की घोषणाएं करते जाओ। तथापि, इन घोषणा पत्रों में नि:संदेह कुछ ऐसी बातें हैं जो आम आदमी के लिए आशावाद और सुखद अनुभूतियों को जागृत करती हैं, परन्तु इन घोषणाओं, वायदों अथवा दावों के बल पर कांग्रेस, भाजपा अथवा इनेलो क्या चुनावी वैतरणी पार कर पाएंगी? यदि वे चुनाव जीत भी जाती हैं, तो इनमें से कितनी घोषणाएं अथवा वायदे पूरे हो पाते हैं, अथवा कितने दावे सार्थक सिद्ध हो सकते हैं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।