हरियाणा की चुनाव प्रक्रिया गौण रहे लोगों के ज्वलंत मुद्दे

लगभग चालीस दिन की दौड़-धूप और जोड़-तोड़ के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र की क्रमश: 90 और 288 विधानसभा सीटों के लिए सोमवार 21 अक्तूबर को होने जा रहे मतदान में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का भविष्य मतदान मशीनें अपने भीतर समेट लेंगी। इन चुनावों के परिणाम की घोषणा 24 अक्तूबर को होगी। महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या लगभग 9 करोड़ है जबकि हरियाणा में लगभग एक करोड़ 83 लाख मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। हरियाणा में होने वाले चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं कि एक तो लोकसभा चुनावों के बाद, दूसरी बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अग्नि-परीक्षा होगी। दूसरे, प्रदेश कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की प्रतिष्ठा इन चुनाव में दांव पर लगी है। चुनावों की घोषणा से पूर्व भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ने पार्टी आला कमान के विरुद्ध विद्रोह करके, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रधान अशोक तंवर से पार्टी की सत्ता छीन ली थी। बहुत स्वाभाविक है कि पार्टी-सत्ता छिनने पर अशोक तंवर के तेवर दबंग होते। ऐसा हुआ भी, और अशोकतंवर ने कांग्रेस पार्टी को ही तिलांजलि दे दी, तथा पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ घूम-घूम कर प्रचार करने लगे। कोई कुछ भी कहे, अशोक तंवर की इस खुली ब़गावत से कांग्रेस की सम्भावनाएं असर-अन्दाज़ तो होंगी ही। यह भी तय है कि कांग्रेस यदि हरियाणा में पिटती है, तो भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की आगामी सम्भावनाओं पर ग्रहण भी लग सकता है।इन चुनाव परिणामों की कोई भी एक विपरीत लहर, हरियाणा की एक समय की शक्तिशाली किन्तु आज अंग-अंग भंग हो चुकी पारिवारिक पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल यानि इनेलो की लुटिया को भी राजनीतिक  भंवर के बीचो-बीचो खींच कर ले जाएगी। इनेलो के पारिवारिक विभाजन के बाद हुई पार्टी की टूट-फूट के बाद, पार्टी के एक को छोड़ कर शेष सभी विधायकों समेत अनेक बड़े नेता और ढेरों कार्यकर्ता ‘सर सूखै, पंछी उड़ै’ की तर्ज पर अपने जहाज़ को छोड़ कर भिन्न-भिन्न नावों पर सवार हो गये। नि:संदेह अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही इनेलो एवं इसके एक समय के दिग्गज नेता ओम प्रकाश चौटाला के घर की आग को हवा भी उन्हीं पत्तों ने दी जिन पर कभी उनका पारिवारिक तकिया हुआ करता था। तथापि, ओम प्रकाश चौटाला ने अपने जिस बड़े पुत्र अजय चौटाला और उनके दोनों पुत्रों दुष्यन्त चौटाला एवं दिग्विजय चौटाला को घर-पार्टी से निष्कासित किया था, प्रांत में उसी दुष्यन्त चौटाला की दुंदुभि भाजपा और कांग्रेस के समान धरातल पर बजी। दुष्यन्त चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी यानि जे.जे.पी. ने दुष्यंत चौटाला को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर रखा है। चुनाव प्रचार की सक्रियता के दौरान भाजपा की ओर से जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने धुआंधार प्रचार करके पार्टी की सम्भावनाओं का परचम बुलंद किया, वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महामंत्री प्रियंका गांधी ने मोदी-शाह की जुगलबंदी का जवाब ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर देने की भरसक कोशिश की। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी चुनाव के अन्तिम चरण पर अस्वस्थ हो जाने तक चुनाव मैदान में डटी रहीं। भाजपा के स्टार प्रचारकों ने जहां मोदी सरकार की पहली पारी की उपलब्धियों और खास तौर पर दूसरी पारी में जम्मू-कश्मीर में धारा-370 को हटाने के श्रेय-रूप में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की दूसरी पारी हेतु वोट मांगे, वहीं राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी भी पूरी शक्ति के साथ भाजपा-नीत केन्द्र और प्रदेश सरकारों की कार्य-प्रणाली में मीन-मेख निकालते रहे। दुष्यन्त चौटाला इस पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जजपा के चुनावी रथ को ‘स्वयं योद्धा और स्वयं सारथी’ बन कर अन्तिम मोर्चे तक खींचते ले गये। नव-गठित स्वराज पार्टी ने भी इन चुनावों के दौरान राजनीतिक द्वार पर दस्तक दी है। हरियाणा के चुनाव में कुछ बड़े नाम और चेहरे मैदान में हैं जिनसे चुनावी भाग्य बन भी सकते हैं, और बिगड़ भी सकते हैं। भाजपा और  कांग्रेस की ओर से मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करनाल से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भूपिन्द्र सिंह हुड्डा गढ़ी सांपला किलोई सीट पर मैदान में हैं। जजपा का युवा चेहरा दुष्यन्त उचाना से भाग्य आज़मा रहे हैं। इनेलो के एक मात्र बचे विधायक अभय चौटाला एलनाबाद की सीट बचाने हेतु मैदान में हैं। कांग्रेस का एक और बड़ा चेहरा किरण चौधरी तोशाम से पुन: चनाव लड़ रही हैं।  चुनाव मैदान में उतरी सभी पार्टियों ने अपने-अपने चुनाव घोषणा पत्रों के ज़रिये ‘मुफ्त’ वाली घोषणाएं भी बहुतेरी कीं, और किसानों के लिए बड़े-बड़े दावे एवं वायदे भी किये गये। लोपीपोती भी बहुत हुई परन्तु युवाओं, बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य के धरातल पर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई ठोस एवं रचनात्मक नीति अथवा कार्यक्रम की घोषणा नहीं की। तो भी, लोकतंत्र की एक आवश्यक प्रक्रिया के अन्तर्गत चुनावों के दौरान मतदान होना ही है, और 21 को होने वाले मतदान से किसके सिर पर विजय का ताज सजेगा, इसका पता 24 अक्तूबर को घोषित होने वाले परिणाम से चल जाएगा।इस दौरान इन दोनों राज्यों के मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं से भी आग्रह है कि एक ओर जहां वे अपने बहुमूल्य मताधिकार का उपयोग अवश्य करें, वहीं मतदान के दौरान शांति व्यवस्था को बनाये रखें। देश के लोकतंत्र की सफलता के पथ पर यह एक और बड़ा सोपान सिद्ध होगा।