फसली विभिन्नता के लिए धान और गेहूं के लाभदायक विकल्प दिए जाएं 

गत वर्ष पंजाब में कपास, नरमे की काश्त अधीन रकबा बढ़कर 4.1355 लाख हैक्टेयर हो गया, मक्की की काश्त 52,000 हैक्टेयर रकबे पर अधिक काश्त किए जाने के परिणामस्वरूप 1.60 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई। दालों की काश्त 17,000 हैक्टेयर रकबे पर की गई और बासमती की काश्त अधीन 6.29 लाख हैक्टेयर रकबा था (जो गत वर्ष की अपेक्षा 1.15 लाख हैक्टेयर अधिक था)। आलुओं की काश्त निचला रकबा भी बढ़ा। इस तरह धान की काश्त निचले रकबे में कमी आई है। क्या यह रकबा बढ़ने के कारण मक्की, अरहर, उड़द, मूंग, सोयाबीन, आलू, प्याज़ तथा दूध की कीमतों का बढ़ना था या किसानों की धान की बढ़ रही पानी की खपत बचाने के लिए काश्त कम करने की सोच थी? केन्द्र सरकार की गेहूं और धान संबंधी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद कम करने की सोच भी किसानों को धान की काश्त कम करने की ओर ले जा रही है। इस वर्ष बारिश भी काफी ज्यादा हुई। इसके बावजूद भी धान की काश्त निचला रकबा कम हुआ। केन्द्र के पास बफर स्टॉक ज़रूर से अधिक हैं। जून 2019 के समापन पर 73.1 मिलियन टन गेहूं और चावल केन्द्र के बफर स्टॉक में थे। अगले पांच वर्षों में इस बफर स्टॉक का 10 मिलियन टन और बढ़ने का अनुमान है। वैसे तो कृषि उत्पादन मंडी कमेटी एक्ट (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट कमेटी एक्ट) में वर्ष 2006 के दौरान शोध कर दी गई थी और निजी कम्पनियों को किसानों से सीधा अनाज खरीदने के लिए रास्ता खोल दिया गया था। परन्तु पंजाब में निजी कम्पनियों और व्यापारियों को अनाज खरीदने के लिए छूट व्यवहारिक तौर पर पिछले दिनों में ही दी गई जब किसानों को सीधी अदायगी करने का  फैसला लिया गया, जिसका आढ़तियों द्वारा विरोध होता रहा। निजी कम्पनियों को छूट सरकारी खरीद कम करने और एम.एस.पी. वापिस लेने की सोच से ही की जा रही है? यदि ऐसा हुआ तो किसानों का रोष और कृषि संकट और बढ़ेंगे। उत्पादन बढ़ने के बावजूद किसानों द्वारा रैलियों और प्रदर्शनों का जोर है। इनके द्वारा किसानों का सरकार के प्रति विरोध बढ़ रहा है, क्योंकि यह दिन-प्रतिदिन कज़र् में डूबते जा रहे हैं जिसके बाद किसान आत्महत्याएं करने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। पिछली शताब्दी के छठे दशक से हरित क्रान्ति के आगाज़ के बाद चाहे किसानों की आमदनी बढ़ी है, परन्तु खर्चों में भारी वृद्धि हुई है, जिस कारण वह घाटे में जा रहे हैं और उन पर ऋण का बोझ बढ़ रहा है। यूरिया तथा डी.ए.पी. खादों का ज्यादा प्रयोग, कीड़ेमार दवाइयों तथा नदीननाशकों के बढ़ रहे छिड़काव पर बढ़ रहे खर्चे और मशीनरी का ज़रूरत से अधिक प्रयोग और किसानों में स्वयं कार्य करने की रूचि का कम होना यह सब कुछ ही खर्च बढ़ने का कारण है। इस समय पंजाब में 8,000 के लगभग स्वै-चालक कम्बाइन हार्वेस्टर हैं, 4200 ट्रैक्टर से चलाई जाने वाली कम्बाइनें और 4.90 लाख ट्रैक्टर हैं। पंजाब सरकार द्वारा कृषि तथा किसान कल्याण विभाग द्वारा 11,700 मशीनें जिनमें हैपीसीडर, मल्चर, उलटावें हल, सीड-कम-खाद ड्रिलें आदि शामिल हैं। इस वर्ष दी गईं और 28,400 मशीनें गत वर्ष दी गईं। लगभग 9,000 मशीनें सब्सिडी पर दिए जाने की योजनाबंदी की गई। किसानों द्वारा मशीनों के रख-रखाव और मरम्मत पर अनावश्यक खर्च किया जा रहा है, जिससे काश्त के खर्च बढ़े हैं। रबी 2018-19 के बीच में गेहूं की काश्त निचला गत वर्ष के मुकाबले मामूली-सा रकबा कम हुआ है, जबकि देश में 9.7 प्रतिशत रकबा बढ़ा है। इससे जाहिर होता है कि किसानों की रूची गेहूं, धान की काश्त की बजाय कुछ रकबे पर और फसलें बीजने की हैं, परन्तु खोज द्वारा उनको अनुकूल इनके विकल्प तो दिए जाएं। यदि इन दोनों फसलों के ऐसे विकल्प जिनका मुनाफा धान-गेहूं जितना हो, मुहैय्या कर दिए जाएं तो धान-गेहूं की काश्त अधीन आवश्यक रकबा कम होगा और फसली विभिन्नता आएगी। पंजाब केन्द्र अनाज भंडार में 40 प्रतिशत योगदान डाल रहा है। केन्द्र इसको कम करने की रुची रखता है। परन्तु कृषि खोज में तेज़ी लाई जाए ताकि किसानों को इनकी बजाय लाभदायक फसलें उपलब्ध हों। जब तक ऐसा नहीं होता सरकारी खरीद को जारी रखना और लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य निश्चित किया जाना बेहद ज़रूरी है। केन्द्र सरकार धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों की एम.एस.पी. और सरकारी खरीद भी शुरू करे, ताकि किसान धान-गेहूं के अलावा अन्य फसलें बीजने के लिए उत्साहित हों। इस समय जो केन्द्र सब्सिडी का बोझ कम करने पर तुला हुआ है और कृषि खर्चों पर कीमतों संबंधी कमीशन सरकारी खरीद विधि तथा नज़रसानी करने के लिए ज़ोर डाल रहा है, इससे पंजाब तथा हरियाणा का कृषि संतुलन बिगड़ेगा और किसानों द्वारा विरोध और बढ़ेगा। 

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