केन्द्र का नया ठेका कृषि कानून राज्यों व किसानों के हित में नहीं

जालन्धर, 10 जून (मेजर सिंह): मोदी सरकार द्वारा 15 जून को जारी आर्डीनैंस द्वारा कृषि सुधारों के नाम पर बनाए ठेका कृषि नियम व कानून पूरी तरह राज्यों व किसानों के हितों को बड़ा खोरा लगाने व सारा कृषि उत्पादन व्यापार निजी कार्पोरेट कम्पनियों के हाथ पकड़ाने का रास्ता खोलने वाला है। 12 सफों के संक्षेप कानून व नियमों को लागू करने के लिए अगले माह होने जा रहे मौनसून संसद सत्र की भी प्रतीक्षा नहीं की, बल्कि शीघ्रता से आर्डीनैंस जारी कर इस संवैधानिक संशोधन वाले मुद्दे को लागू कर दिया गया है। कृषि संवैधानिक तौर पर राज्यों का विषय है। सारे देश में एकसार ठेका कृषि नियम व कानून बनाने के लिए 2017 में एक कमेटी बनी थी जिसके प्रमुख तत्काली मुख्यमंत्री महाराष्ट्र थे। यह कमेटी लगातार बैठकें करती रही। इस वर्ष के शुरू में हुई बैठक में पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल व कई अधिकारी भी शामिल हुए थे परन्तु लोग हैरान हैं कि दो वर्षों से ठेका कृषि कानून बनाने बारे कवायद करते आ रहे राज्यों को यह कानून बनाते समय पूछा तक नहीं। नए बनाए कानून अधीन किसी भी राज्य में होने वाला कृषि उत्पादन व व्यापार राज्य सरकार के किसी भी नियम, कानून या फैसले के अधीन नहीं होगा। इस उत्पादन व व्यापार पर राज्य सरकार द्वारा किसी भी रूप में लगाया टैक्स, फीस या कोई सैस लागू नहीं होगा। नए आर्डीनैंस तहत किसान व कम्पनी के बीच इकरारनामा होगा जिसमें बीज, खादों, छिड़काव वाली दवाइयों व सलाह-मश्वरे बारे सब कुछ लिखित सहीबंद होगा। नए कानून अनुसार खरीदार कम्पनी को न कोई लाइसैंस लेना पड़ेगा तथा न ही कोई फीस ही अदा करनी पड़ेगी। केवल आयकर विभाग द्वारा जारी पैन कार्ड धारक ही जिन्स की खरीद व भंडार कर सकेगा। इस समय राज्य सरकारों के सरकारी संस्थान कृषि विभाग, बागबानी विभाग व कृषि यूनिवर्सिटियां किसानों को सलाह-मश्वरे मुफ्त देती हैं।
सिविल अदालत में नहीं जा सकेंगे किसान
 नए ठेका कृषि कानून अनुसार किसी भी किस्म के उठने वाले झगड़े या होने वाले अन्याय विरुद्ध किसान सिविल अदालत में नहीं जा सकेंगे। यह केवल एस.डी.एम. द्वारा बनाए बोर्ड के सामने ही अपना केस रख सकेंगे तथा इससे आगे डिप्टी कमिश्नर द्वारा बनाई एपेलैंट अथारिटी के पास अपील कर सकेंगे।
राज्यों के अधिकार किए सीमित
नया केन्द्रीय कानून बनने से राज्यों द्वारा बनाए गए मंडीकरण कानून व ठेका कृषि कानून सीधे तौर पर रद्द तो नहीं किए गए परन्तु केन्द्रीय कानून लागू होने से राज्यों के कानूनों की सांस रुकेगी तथा कम होते अधिकारों के कारण अपने आप ही राज्यों के संस्थान कार्पोरेट कम्पनियों के आगे हथियार फेंकने लगेंगे। पंजाब के मंडी बोर्ड की मंडी फीस व राज्य सरकार को मिलता ग्रामीम विकास फंड जो 4 हज़ार करोड़ वार्षिक से अधिक है ज्यों-ज्यों खरीद में कार्पोरेट सैक्टर बढ़ता जाएगा, यह आय कम होती जाएगी।