बिहार में चुनावों के लिए राजनीतिक गतिविधियां आरम्भ

कोरोना का सबसे अधिक राजनीतिक प्रभाव बिहार में देखने को मिल रहा है, जहां अक्तूबर-नवम्बर में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। प्रवासी मज़दूरों तथा विद्यार्थियों का मुद्दा इस बार मुख्य समस्या है, जिस पर यह चुनाव लड़े जाएंगे। शुरू-शुरू में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने कोविड-19 के कारण लागू तालाबंदी के दौरान अन्य राज्यों में फंसे बिहार के मज़दूरों को वापस लाने की सिफारिश को रद्द कर दिया था परन्तु भाजपा के दबाव में नीतिश राज़ी हो गए थे। राजनीतिक गलियारों में यह भी अफवाहें हैं कि भाजपा बिहार विधानसभा चुनाब अकेले ही लड़ने जा रही है और नीतिश कुमार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जतिन राम मांझी से मुलाकात की और संभावित गठबंधन के बारे विचार-विमर्श किया। 
मुख्यमंत्री का चेहरा
जतिन कुमार मांझी इस बात से नाराज़ हैं कि बिहार में विरोधी महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? सत्ताधारी जे.डी. (यू)-भाजपा गठबंधन खेमे में एक और छोटी सहयोगी पार्टी एल.जे.पी. के प्रमुख चिराग पासवान अपना अलग ही राग अलाप रहे हैं। उनका कहना है कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन के मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा भाजपा करेगी। इस संबंधी केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पटना में डिजीटल रैली करके अपने प्रचार की शुरूआत कर दी है। हालांकि आर.जे.डी. की नेता राबड़ी देवी तथा उनके बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने अपनी पार्टी के अन्य नेताओं से अमित शाह की डिजीटल रैली का थालियां बजा कर विरोध किया था परन्तु दूसरी तरफ शाह द्वारा इसे ‘गरीब अधिकार दिवस’ का नाम दिया गया। तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी प्रवासी मज़दूरों तथा महामारी के कारण भूखे मर रहे गरीब लोगों के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा तथा जे.डी.(यू) द्वारा यह चुनाव मिल कर लड़े जाएंगे। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा के पास लोगों का सामना करने का साहस नहीं है। इसीलिए वह डिजीटल रैलियां कर रहे हैं। इस संबंधी कांग्रेस ने भी शाह पर निशाना साधते हुए क्हा कि वह कोरोना महामारी के दौर में वोटों की राजनीति कर रहे हैं। 
राहुल का वार्तालाप
उद्योगपति राजीव बजाज का कहना है कि तालाबंदी गलत मोड़ ले गई है, क्योंकि इससे जी.डी.पी. तथा अर्थव्यवस्था का नुक्सान हुआ है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से बातचीत करते हुए बजाज ने यह भी दावा किया कि उनके एक दोस्त ने उनको सलाह दी थी कि किसी मुसीबत में फंसने से परहेज़ करने के लिए वह राहुल गांधी से बातचीत करें। तालाबंदी पर टिप्पणी करते हुए बजाज ने कहा कि यदि सरकार समझती है कि लोगों को ‘वायरस के साथ ही जीना’ पड़ेगा तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोगों के मनों से डर कम करना चाहिए। राहुल गांधी का कहना है कि कई बड़े व्यापारियों ने उनसे बातचीत करके बजाज की टिप्पनियों का समर्थन किया है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र की प्रमुख राजनीतिक पार्टी शिव सेना, जो कार्पोरेट तौर-तरीकों के बारे अन्य पार्टियों से अधिक जानकारी रखती है, का कहना है कि राजीव बजाज ने हिम्मत दिखाई है क्योंकि उनका कारोबार तथा उनकी निजी छवि बिलकुल साफ-सुथरी है, जो कि अन्य कई कार्पोरेटरों की नहीं है। शिव सेना की पत्रिका ‘सामना’ के सम्पादकीय लेख में कहा गया है कि ‘जो डर जाए वोह बजाज नहीं।’ इसके अतिक्ति सम्पादकीय लेख में बजाज की विरासत का ज़िक्र किया गया है जो एक स्वतंत्रता सेनानी जमना लाल बजाज से पैदा हुई थी। सम्पादकीय लेख के अनुसार ‘इस (बजाज) परिवार ने सदा समाज तथा देश के बारे सोचा है और उन्होंने कभी सत्ता के आगे घुटने नहीं टेके और सच बोलने की हिम्मत दिखाई है।’
राज्यसभा चुनाव
कोरोना वायरस के कारण लागू तालाबंदी से पहले राज्यसभा चुनाव स्थगित कर दिये गए थे परन्तु अब जब तालाबंदी को खत्म करने की प्रक्रिया की शुरूआत कर दी गई है तो यह चुनाव अब 19 जून को होंगे। गुजरात में चार राज्यसभा सीटों के लिए कांग्रेस तथा भाजपा एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ी हैं। गुजरात की राजनीति में पुराने ढंग-तरीके ही देखने को मिल रहे हैं, जो 2017 में देखने को मिले थे जब कांगे्रसी नेता अहमद पटेल राज्यसभा के लिए चुने गए थे। कांगे्रस के पास 182 विधायकों वाले सदन में 73 विधायक हैं। कांग्रेस को विश्वास है कि वह दो सीटें जीत लेगी जिसके लिए उन्होंने दो प्रौढ़ नेताओं शक्तिसिन्हा गोहिल और भारतसिन्हा सोलंकी को खड़ा किया है। दूसरी तरफ भाजपा के पास सदन में 103 विधायक हैं और उसने अभय भारद्वाज, रमीलाबेन बारा तथा नरहारी अमीन को खड़ा किया है।