कोरोना का बढ़ता कहर और उम्मीदों का सवाल

अनुमान यह है कि सितंबर 2020 के अंत तक दुनिया में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या दस लाख को पार कर जायेगी। भारत में भी नया कोरोना वायरस संक्रमण व मौतों का डाटा निरंतर चिंताजनक होता जा रहा है। इसलिए जीवन व जीविकाओं को बचाने के लिए वैक्सीन की तुरंत आवश्यकता है, खासकर इसलिए कि अब ऑक्सीजन की भी कमी होती जा रही है, जिसकी ज़रूरत गंभीर मरीज़ों को बचाने के लिए पड़ती है (हालांकि अब इसका खंडन हो भी रहा है)। बहरहाल सवाल यह है कि कोविड वैक्सीन कब तक आयेगी? इस रोग से बचने का एक अन्य तरीका हर्ड इम्यूनिटी है। वर्तमान दर से अगले वर्ष इस समय तक लगभग 60 मिलियन लोग नये कोरोना वायरस से संक्त्रमित हो जायेंगे। यह संख्या हर्ड इम्युनिटी उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ग्लोबल जनसंख्या 7.5 बिलियन है, जिसमें हर्ड इम्यूनिटी उत्पन्न करने के लिए तकरीबन 3.6 बिलियन लोगों का संक्रमित होना आवश्यक है। इस स्थिति में हमारे लिए यही बेहतर है कि वैक्सीन विकसित करके संसार को इम्यून कर दिया जाये ताकि सामान्य सामाजिक व व्यापारिक जीवन के दरवाजे खोले जा सकें। इस समय दुनियाभर में वैक्सीन बनाने के 142 प्रयास प्री-क्लिनिकल स्तर पर हैं। 24 ट्रायल के पहले चरण में, 14 दूसरे चरण में, 9 तीसरे चरण में 3 को ट्रायल का तीसरा चरण पूरा करने से पहले ही इस्तेमाल के लिए जारी कर दिया गया है, जिसमें रूस की स्पूतनिक-5 भी शामिल है, जिसे मेडिकल पत्रिका लांसेट तो उपयोगी बता रही है, लेकिन विश्व  स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसके प्रभावी होने पर संदेह व्यक्त किया है, विशेषकर इसलिए कि नया कोरोना वायरस म्यूटेट (जेनेटिक परिवर्तन) कर रहा है। अनुमान यह है कि रूस के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन लाने की जल्दबाजी में म्यूटेशन को संज्ञान में नहीं लिया है। तो बात यह है कि जल्दबाजी दिखाने की बजाय यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वैक्सीन सुरक्षित भी हो व प्रभावी भी हो, जो सही से ट्रायल या टैस्ट करने से ही संभव है। डा. सेठ बर्कले का कहना है कि कोविड वैक्सीन को लाने में तेजी दिखायी जा रही है, लेकिन जल्दबाजी सुरक्षा की कीमत पर नहीं की जा सकती। डा. बर्कले वैक्सीन एलायंस गवि के सीईओ हैं। गवि ने संसार के लगभग आधे बच्चों को जानलेवा व निर्बल करने वाले रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण किया है। वर्तमान में वह कोवेक्स फैसिलिटी को देख रहे हैं, जो कोविड-19 वैक्सीन के विकास व निर्माण में मदद करने के अतिरिक्त यह भी प्रयास करेगी कि भारत सहित 92 कम व मध्य-आय अर्थव्यवस्था वाले देशों को यह खुराक आसानी से उपलब्ध हो सके। डा. बर्कले कहते हैं, ‘नये कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए वैक्सीन बनाने में मुख्य चुनौती विज्ञान है। यह नया वायरस है जिसकी खोज लगभग 9 माह पहले ही हुई है।’ इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने बहुत जल्द प्रतिक्त्रिया की है कि 200 से अधिक वैक्सीन विकास के चरण में और 34 क्लिनिकल ट्रायल के चरण में हैं। पिछले वैक्सीन विकास में जो प्री-क्लिनिकल चरण में थीं, उनमें से 10 प्रतिशत से भी कम अंतिम लाइसेंसिंग चरण में पहुंचने की संभावना रखती थीं। अगर वे क्लिनिकल चरण में पहुंच जातीं तो संभावना दोगुनी बेहतर हो जाती। हालांकि इस समय काफी कोविड-19 वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल्स में हैं, लेकिन हमें अभी तक नहीं मालूम है कि कौन सी कामयाब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि ब्रॉड पोर्टफोलियो के साथ आगे बढ़ा जाये। ...इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस संकट का सामना करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय व दवा निर्माताओं ने बहुत तेजी से प्रयास किये हैं, लेकिन मैं इस बात पर बल देना चाहता हूं कि कोविड-19 वैक्सीन के विकास, टेस्टिंग व नियामक मंजूरी में सुरक्षा पहली वरीयता होनी चाहिए।’आमतौर से एक वैक्सीन के सुरक्षित विकास में एक दशक से अधिक का समय लग जाता है। फिलहाल आपातस्थिति ऐसी है कि 18-माह की समय-अवधि में वहां तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है। इस जल्दबाजी में असफलता भी हाथ लग रही है, जैसा कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कामयाब नहीं हो सका है। दूसरी समस्या यह है कि अधिकतर देश दवा निर्माताओं से द्विपक्षीय समझौते कर रहे हैं। मसलन, 2009 में रईस देशों ने स्वाइन फ्लू वैक्सीन की अधिकतर सप्लाई पर कब्जा कर लिया था। इसलिए जरूरी है कि सभी देश संसाधनों को पूल करें ताकि जब कोविड-19 वैक्सीन उपलब्ध हो जाये तो उसके निर्माण में सबका सहयोग हो और हर देश को जल्दी और अपनी ज़रूरत की मात्रा में वैक्सीन मिल जाये। ध्यान रहे कि कोवेक्स फैसिलिटी से भी काफी देशों ने करार किया है और उसका लक्ष्य है कि 2021 के अंत तक कम से कम 2 बिलियन वैक्सीन अनुबंधित देशों को उनकी जरूरत के हिसाब से सप्लाई कर दी जायें, भले ही उस समय उनमें दाम अदा करने की क्षमता न हो। डब्लूएचओ भी कोविड-19 वैक्सीन आवंटन का एक फ्रेमवर्क तैयार कर रहा है, जिसकी वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, बशर्ते कि रईस व प्रभावी देश उसे ऐसा करने दें। मानवता का तकाज़ा यही है कि यह सुनिश्चित किया जाये कि जो-जो बराबर के खतरे पर हैं, उन्हें टीकाकरण का समान अवसर उपलब्ध कराया जाये। रूस अपनी वैक्सीन की समीक्षा तीसरे चरण के ट्रायल के बाद करेगा। बड़ी संख्या में मानव ट्रायल्स और वैक्सीन के निर्माण के लिए रूस ने भारत से संपर्क किया है। गौरतलब है कि विकासशील संसार की 60 प्रतिशत वैक्सीन सप्लाई की पूर्ति भारत के वैक्सीन निर्माता करते हैं और अब इन भारतीय निर्माताओं ने उन संस्थानों से समयबद्ध सप्लाई का अनुबंध किया है जो कोविड वैक्सीन विकास में लगे हुए हैं। इन अनुबंधों से भी लगता है कि कोविड वैक्सीन अगले साल ही किसी समय आ पायेगी।  

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर