कंजूस का नारियल

श्रीमान् कंजूस-मक्खीचूस को एक नारियल खरीदना था। दुकानदार ने कीमत बताई दो रूपये। बोले-बहुत महंगा है। अगली दुकान पर तो डेढ़ रूपये में मिलता है। दुकानदार बोला-वहीं से ले लो। दूसरे दुकानदार ने कहा-मैं तो डेढ़ रूपये से कम नहीं लूंगा। सस्ता चाहिये तो अगली दुकान पर जाओ। वह तीसरी दुकान पर पहुंचा। उसने कहा-मैं तो एक रूपये से कम नहीं लूंगा। सस्ता चाहिये तो अगली दुकान पर जाओ। श्री कंजूस चौथी दुकान पर पहुंचे। वह बोला-मैं तो एक रूपया से कम न लूंगा। कंजूस ने कहा-इससे सस्ता नहीं है? वह बोला- वो देखो, वे रहे नारियल के वृक्ष। उन पर चढ़ जाओ और मुफ्त में नारियल तोड़ लो। उसने आव देखा न ताव, झाड़ पर चढ़ गया और नारियल तोड़ लिया पर उतरते समय नानी याद आने लगी। डर के मारे बीच में ही लटक गया चिल्लाने लगा बचाओ-बचाओ, मैं गिर पडं़ूगा।इतने में उधर एक ऊंट वाला निकला। उसने कहा-मैं तुम्हारी टांग पकड़ता हूं। तुम धीरे से उतर जाओ किन्तु जैसे ही उसने कंजूस की टांग पकड़ी, ऊंट चल दिया। वे दोनों लटकते रह गये। थोड़ी देर में उधर से एक हाथी वाला निकला। उसने कहा-मैं तुम्हारी टांग पकड़ता हूं। तुम दोनों धीरे से नीचे आ जाना पर जैसे ही उसने टांग पकड़ी, हाथी आगे बढ़ गया। अब वे तीनों लटक गये और बचाओ बचाओ चिल्लाने लगे। इतने में इधर से एक घोड़ा वाला आया। उसने भी ज्यों ही उतारने के लिये टांग पकड़ी, उसका घोड़ा निकल गया। वे चारों ओर जोर से चिल्लाने लगे। उनकी आवाज सुनकर एक गधा वाला वहां पहुंचा। उसने जैसे ही टांग पकड़कर उन्हें नीचे उतारना चाहा। गधा चिल्लाने की आवाज सुनकर डर गया और भाग निकला।  अब पांचों एक-दूसरे को पकड़कर लटक रहे थे। कंजूस पर सबका भार पड़ रहा था। अत: वह बोला-आप सबका वजन मेरे ऊपर आ रहा है और मैं भार से मरा जा रहा हूं। मेरे हाथ छूटने को हो रहे हैं। नीचे वाले चिल्लाकर बोले-
अरे, भाई ऐसा मत करना नहीं तो हम सबके सब मारे जायेगें।कंजूस बोला-ठीक है, तो मेरे द्वारा आप सबको बचाने की फीस तो तय करो। उनमें एक ने कहा-यदि तुम हाथ नहीं छोड़ोगे तो हम तुम्हें सौ-सौ रूपया देंगे। कंजूस ने खुशी-खुशी बात मान ली किन्तु वह निन्यानवे के चक्कर में फंस गया और सोचने लगा-मेरे नीचे बहुत आदमी लटक रहे हैं। हरेक मेरे को सौ-सौ रूपये देंगे तो मेरे पास कितने रूपये इकट्ठे हो जायेंगे? वह कम पढ़ा लिखा तो था ही, अंगुलियों के पैरों पर अंगूठे को घुमाकर जोड़ने लगा- गधे वाले के सौ रूपये, घोड़े वाले के सौ रूपये, हाथी वाले के सौ तथा ऊंट वाले के सौ किन्तु गिनते-गिनते एक हाथ ढीला हो गया, दूसरा वजन न सम्भाल सकने के कारण छूट गया और वे सबके सब धड़ाम से नीचे आ गये। दर्द के मारे उन सबका बुरा हाल हो रहा था।