हरियाणा में निरंतर बढ़ने लगा है कृषि अध्यादेशों का विरोध

हरियाणा में भाकियू सहित विभिन्न किसान संगठनों व आढ़तियों के बाद कांग्रेस व इनेलो भी खुलकर कृषि अध्यादेशों के खिलाफ सड़कों पर आ गई हैं। पंजाब के बाद हरियाणा में इन कृषि अध्यादेशों का सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिल रहा है। वैसे तो हरियाणा में अक्सर किसान संगठन लामबंद नहीं होते लेकिन इन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ ज़्यादातर किसान संगठन खुलकर विरोध में सड़कों पर आ गए हैं। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद पिपली में किसानों का जोरदार प्रदर्शन और उसके बाद प्रदेशभर के मुख्य मार्गों पर किसान संगठनों द्वारा जाम लगाकर रास्ता बंद करना यह दर्शाता है कि आने वाले दिनों में किसानों व किसान संगठनों का विरोध और ज़्यादा तेज़ होगा। किसान इन अध्यादेशों के साथ किसानों को कम से कम एमएसपी सुनिश्चित किए जाने और एमएसपी से कम पर होने वाली खरीद को अपराध की श्रेणी में लाए जाने की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों का यह भी कहना है कि हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में ही कृषि मंडियां काफी व्यापक स्तर पर काम कर रही हैं और इन मंडियों में कृषि उपजों विशेषकर गेहूं, धान, बाजरा, सरसों वगैरा की सरकारी खरीद एमएसपी पर होने के कारण किसानों को ठीक-ठाक भाव मिल जाते हैं। उनका यह भी कहना है कि कृषि मंडियां कमजोर होने से किसानों को औने-पौने दामों पर अपनी फसलें बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 
व्यापारी भी विरोध में
हरियाणा में पहली बार मंडियों में आढ़त का काम करने वाले व्यापारी भी खुलकर इन अध्यादेशों के विरोध में आ गए हैं। प्रदेशभर की मंडियों में हड़ताल चल रही है और किसानों के आन्दोलन में भी व्यापारी वर्ग खुलकर शामिल हो रहा है। उनका कहना है कि अगर ये कानून लागू हो गए तो उनके परिवारों के सामने भूखों मरने की भी नौबत आ जाएगी। उनका कहना है कि जब कृषि उपजों की खरीद मंडी से बाहर सीधे किसान से होने लगेगी और व्यापारी को इस खरीद प्रक्रिया से बाहर कर दिया तो उन्हें आढ़त के तौर पर मिलने वाली राशि भी बंद हो जाएगी और उनका सारा कारोबार ठप्प हो जाएगा। उनका कहना है कि किसान और व्यापारी का चोली-दामन का साथ है और सरकार दशकों पुरानी इस परम्परा और नीति को खत्म करने जा रही है। हरियाणा में किसान आन्दोलन इसलिए भी प्रभावी होने लगा है कि व्यापारी खुलकर किसानों को आन्दोलन करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और इन कानूनों से होने वाले कथित नुकसान से किसानों को अवगत भी करवाया जा रहा है। व्यापारी किसानों को यह भी समझा रहे हैं कि सरकार इन कानूनों को धरातल पर आने के बाद अगले कुछ सालों में सरकारी खरीद पूरी तरह से बंद हो जाएगी और मंडी सिस्टम व पूरा कृषि कारोबार निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा जिससे किसान के साथ-साथ व्यापारी भी पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। जिस तरह से कृषि अध्यादेशों का विरोध बढ़ रहा है, इसके आने वाले दिनों में और ज्यादा तेज होने के आसार हैं। 
कांग्रेस खुल कर आई विरोध में
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी चाहे कितने भी गुटों में बंटी रही हो लेकिन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ एकजुट होकर सामने आई है और प्रदेशभर में धरने प्रदर्शन करके अध्यादेशों के खिलाफ माहौल बनाने में जुटी हुई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर कांग्रेस के हर छोटे-बड़े नेता, विधायक एवं कार्यकर्त्ता इन दिनों खुलकर सरकार के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।  हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से लेकर कृषि मंत्री जे.पी. दलाल तक इन विधेयकों को किसानों के हक में बता रहे हैं लेकिन किसान अभी तक सरकार की बात से संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे। किसान संगठनों का कहना है कि जब सरकार दावा कर रही है कि किसानों को उनकी फसलों का हर हाल में एमएसपी मिलेगा तो इसके लिए कानूनी प्रावधान क्यों नहीं किया जा रहा एवं एक और अध्यादेश लाकर यह भी कानून क्यों नहीं बनाया जाता कि अगर कोई किसानों की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीदेगा तो यह कानूनन अपराध होगा। किसान संगठन सरकार के जुबानी दावों पर भरोसा नहीं कर रहे। कांग्रेस के अलावा इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला भी इन अध्यादेशों के खिलाफ निरंतर अभियान चला रहे हैं और इन्हें वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। 
दुष्यंत पर दबाव बनाने का प्रयास
अकाली नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल द्वारा कृषि अध्यादेशों के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिए जाने के बाद हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर भी विपक्षी नेताओं ने इस्तीफे के लिए दबाव बनाने का हर संभव प्रयास किया था। कांगे्रस लगातार उप-मुख्यमंत्री से हरसिमरत बादल का अनुसरण करते हुए इस्तीफा दिए जाने की मांग कर रही थी। दुष्यंत और जजपा को यह स्पष्ट करना पड़ा कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जब बार-बार स्पष्ट कर रहे हैं कि कृषि उपजों के लिए एमएसपी समाप्त नहीं होगा और मंडियां भी पहले की तरह बरकरार रहेंगी तो फिर इस्तीफा देने का क्या औचित्य है। उनका यह भी कहना था कि वह पूरी तरह से किसानों के साथ हैं और किसानों के हकों के लिए हमेशा साथ रहेंगे। अगर कभी किसी चरण पर यह नज़र आया कि किसानों के हितों को कुठाराघात किया जा रहा है तो वह इस्तीफा देने से भी पीछे नहीं हटेंगे। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पंजाब विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय रह गया है और चुनाव से करीब एक साल पहले तक प्रदेश में चुनावी गतिविधियां शुरू हो जाती हैं  कृषि अध्यादेशों को लेकर हरसिमरत बादल के इस्तीफे को आगामी चुनावों के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। दूसरी तरफ हरियाणा विधानसभा के चुनावों में अभी 4 से भी ज्यादा साल का समय बाकी है।
अफसरशाही में होगा व्यापक फेरबदल
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेश खुल्लर विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक नियुक्त होकर प्रदेश से तीन साल के लिए जाने की तैयारी में हैं। पिछले 5 सालों में वह प्रदेश सरकार में सबसे ज़्यादा पॉवरफुल अधिकारी थे। उनके विश्व बैंक में जाने से अब मुख्यमंत्री के नए प्रधान सचिव के लिए अधिकारियों की तलाश शुरू हो गई है। इतना ही नहीं, हरियाणा की मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा भी इसी महीने रिटायर होने जा रही हैं। इसके चलते मुख्य सचिव पद पर भी किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति होनी है। मुख्य सचिव पद के लिए हरियाणा के कृषि एवं सहकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल और गृह एवं राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विजय वर्द्धन में से किसी एक को नियुक्त किए जाने की संभावनाएं हैं। मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दोनों पदों पर नए अधिकारियों के आने के साथ ही प्रदेश की अफसरशाही में भी व्यापक स्तर पर फेरबदल देखने को मिलेगा।   
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