कांग्रेस की मज़बूती के लिए

राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के भीतर चिरकाल से सुलग रहा क्लेश जगजाहिर होने लगा है। उठता हुआ धुआं तो हर कोई देखता रहा है परन्तु अब यह जलने के पड़ाव पर पहुंच गया प्रतीत होता है। पिछले वर्ष अगस्त मास में कांग्रेस के 23 प्रमुख नेताओं ने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने कांग्रेस में निरन्तर आ रहे अवसान की बात की थी। इसके साथ ही उन्होंने पार्टी के भीतर आत्म-निरीक्षण करने के लिए भी कहा था। कांग्रेस कार्यकारिणी के चुनाव पुन: करवाए जाने की अपील भी की थी। कार्यकारिणी के संबंध में पिछले कई दशकों से निरन्तर यह प्रभाव बना रहा है कि इसके सदस्य चुनावों के माध्यम से नहीं चुने जाते अपितु एक प्रकार से उनका मनोनयन ही होता है। बहुत से सदस्य कांग्रेस कार्यकारिणी में ऐसे होते हैं जो बड़े नेताओं के जी-हज़ूरिये ही बने रहते हैं। 
वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद उनके निरन्तर बढ़ते प्रभाव के समक्ष कांग्रेस सदैव लड़खड़ाते हुए ही दिखाई दी है। विगत कई वर्षों से पार्टी का नेतृत्व या तो सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी के पास ही रहा है। विगत 6 वर्षों से भाजपा एवं मोदी की बही आंधी के दृष्टिगत यह संभलते हुए नज़र नहीं आई। इसी काल में राहुल गांधी भारी चर्चा का विषय अवश्य बने रहे हैं। भिन्न-भिन्न चुनावों में उनकी ब्यानबाज़ी प्राय: निचले स्तर की ही रही है। चाहे यह राफेल सौदा हो, चाहे बड़े पूंजीपतियों का मुद्दा हो, चाहे चीन का मुद्दा हो और चाहे लद्दाख का हो,राहुल के ब्यान उनके अधकचरे होने का ही प्रभाव देते रहे हैं। अधिकतर पार्टी को राहुल के बचाव के लिए भी आना पड़ता रहा है। निरन्तर होने वाली पराजयों को देखते हुए राहुल गांधी ने वर्ष 2019 में पार्टी के अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र दे दिया था। उस समय भी यह उम्मीद उपजी थी कि किसी अन्य परिपक्व एवं प्रबुद्ध नेता को पार्टी की कमान सौंप दी जाएगी परन्तु साधारणत: बन गए प्रभाव की भांति पार्टी दशकों से नेहरू-गांधी के प्रभाव से उभर नहीं सकी। राहुल की ओर से त्याग-पत्र देने के लम्बे समय बाद चाहे सोनिया गांधी को अस्थायी रूप में अध्यक्ष बना दिया गया था, चाहे अपना त्याग-पत्र देते समय राहुल गांधी ने यह ब्यान भी दिया था कि आगे से उनके परिवार का कोई सदस्य पार्टी के इस पद के लिए उम्मीदवार नहीं होगा परन्तु इसके बावजूद सोनिया गांधी ही अध्यक्ष बनी चली आ रही हैं तथा पर्दे के पीछे से राहुल गांधी भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यह परिवार शक्ति से कभी भी बाहर नहीं हुआ चाहे यह शक्ति सरकार  की रही हो, चाहे पार्टी की। इस परिवार का जलवा सदैव बना रहा है। एक पुरानी, बड़ी एवं राष्ट्रीय पार्टी इस प्रभाव से कभी मुक्त नहीं हो सकी। पिछले वर्ष अगस्त में 23 नेताओं के पत्र के बाद कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी। उसमें भी संगठनात्मक चुनाव करवाने एवं बड़े पदों पर नियुक्तियों की बात चली थी। कुछ कटुता एवं विरोध के बाद इस वर्ष मई में संगठन के चुनाव करवाने का कार्यक्रम बनाया गया था परन्तु बाद में ये चुनाव जून में करवाने का फैसला किया गया ताकि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो सकें। अब इन प्रदेशों के चुनावों की घोषणा भी हो चुकी है। परिणामों के बाद पार्टी के आंतरिक परिवर्तन के लिए मार्ग साफ होना शुरू हो जाएगा परन्तु जिस प्रकार लगभग दो दर्जन बड़े नेता अब खुल कर सामने आने लगे हैं, जिस प्रकार का आलोचनात्मक  रवैया उन्होंने अपनाया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि आगामी समय में राहुल गांधी अथवा इस परिवार में से किसी अन्य बड़े नेता का पार्टी में उभरना कठिन हो जाएगा। राज्यसभा सदस्य गुलाम नबी आज़ाद का कार्यकाल पूरा होने के बाद कांग्रेस की ओर से उन्हें पुन: नामज़द नहीं किया गया। आज़ाद ने अपने क्षेत्र जम्मू में शांति सम्मेलन के नाम पर एक आयोजन किया। इसमें आनन्द शर्मा, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी एवं राज बब्बर जैसे चर्चित नेता शामिल हुए। इस सम्मेलन में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से विद्रोही स्वर ही सुनाई दिये हैं। किसी न किसी ढंग से इन नेताओं ने पार्टी नेतृत्व की आलोचना ही की। पार्टी की बेहतरी के लिए अपने यत्न जारी रखने की घोषणा भी की। आगामी दिनों में इस गुट की ओर से निरन्तर सम्मेलन एवं बैठकें आयोजित किये जाने की योजना भी बनाई गई है। जहां पार्टी के भीतर उत्पन्न हुआ यह असंतोष पार्टी को कमज़ोर करने का कारण बन सकता है, वहीं नेहरू-गांधी परिवार के एकाधिरकार के लिए भी यह एक गंभीर चुनौती बनने की संभावना रखता है। यदि इस राष्ट्रीय पार्टी में ऐसे ही चलता रहा तो यह पूरी तरह से हाशिये पर चली जाएगी जिसे दोबारा उठा पाना कठिन हो जाएगा। पार्टी को अपनी मज़बूती के लिए तथा वरिष्ठ नेताओं के भीतर बढ़ रहे असंतोष को दूर करने के लिए उचित समय पर बड़े पग उठाने पड़ेंगे। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द