भाषा और संवाद के गिरते स्तर से आहत होता लोकतंत्र

संसद का विषेश सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस सत्र में नयी संसद में कामकाज की शुरुआत हुई तो वहीं बरसों से अटका पड़ा महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से पास हो गया, लेकिन इस सत्र में एक घटना ने लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता को भंग करने का काम किया। असल में दक्षिण दिल्ली से भाजपा सांसद रमेश बिधुड़ी ने उत्तर प्रदेश के बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के लिए जिन अपशब्दों का प्रयोग किया है, वह व्यवहार पूरी तरह अक्षम्य है। बिधूड़ी ने भाषा और संवाद की मर्यादा को तार-तार कर दिया। इस मामले में जमकर राजनीति भी हुई है। राहुल गांधी और अन्य दलों के नेता दानिश अली के समर्थन में सामने आए। 
कई विपक्षी सांसदों ने इसे ‘विशेषाधिकार के उल्लंघन’ का मामला बताते हुए स्पीकर से कार्रवाई की मांग रखी। इसी बीच भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने बसपा सांसद दानिश अली सहित कई अन्य विपक्षी सांसदों के व्यवहार को गलत बताते हुए स्पीकर को पत्र लिख दिया। उन्होंने पूरे मामले की जांच के लिए एक ‘जांच समिति’ बनाने की मांग कर दी। भाजपा सांसद निषिकांत दुबे का कहना है कि बिधूड़ी के पूरे भाषण के दौरान, उस दिन दानिश अली लगातार रनिंग कमेंट्री कर रहे थे और बिधूड़ी को परेशान करने और उन्हें उकसाने के उद्देश्य से सभी के प्रति अभद्र टिप्पणियां भी कर रहे थे, जिससे उनकी शांति और संयम खो जाए और वह सदन में सही तरीके से अपने विचार व्यक्त न कर पाएं। दुबे ने पत्र में कहा है, ‘उन्होंने (दानिश अली) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ  बेहद आपत्तिजनक और निंदनीय टिप्पणी की, जिसे सुनकर कोई भी देशभक्त जनप्रतिनिधि अपनी शांति खोकर और उनके जाल में फंसकर कुछ अप्रिय बोल सकता था और उस दिन ऐसा ही हुआ।’ 
भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली के धर्म को लेकर जिन शब्दों का उपयोग किया, उन्हें असंसदीय मानकर कार्यवाही से निकाल दिया गया। लोकसभा अध्यक्ष ओम प्रकाश बिरला ने रमेश बिधूड़ी को कड़ी चेतावनी दी, वहीं भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने 15 दिन में जवाब मांगा। बिधूड़ी ने पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष को अपना जवाब सौंप दिया। संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी पार्टी के सांसद के अशोभनीय बयान के लिए माफी मांगने की सौजन्यता भी दिखाई। वहीं दानिश अली ने अध्यक्ष से मामले को विशेषाधिकार समिति में भेजने की अपील के साथ चेतावनी दी कि न्याय न मिलने पर वह सदस्यता छोड़ देंगे, लेकिन अब तक जो होता आया है, उसके अनुसार मामला विशेषाधिकार समिति में जाएगा और रमेश बिधूड़ी के माफी मांग लेने पर उसका पटाक्षेप हो जाएगा। हाल ही में कांग्रेस  नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा प्रधानमंत्री के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के संदर्भ में भी यही देखने मिला। बावजूद इसके संसद या उसके बाहर ऐसी बातें कहने का अधिकार किसी को भी नहीं है।  संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के मुताबिक, संसद में कही गई बात को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
इसमें भी संशोधन किया जाना चाहिए। शायद स्पीकर इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेजें, लेकिन ऐसे सांसद को तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए था। जब कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी और विपक्ष के अन्य सांसदों के खिलाफ  निलम्बन की कार्रवाई की गई, तो तुरंत फैसला लिया गया। क्या रमेश बिधुड़ी को सत्ता पक्ष का सांसद होने के नाते ढील दी गई और मुद्दे को शांत और ठंडा होने दिया जा रहा है? कारण कुछ भी हो, संसद के भीतर ऐसी भाषा स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। 
यह विचारणीय विषय है कि अभद्र टिप्पणियां करके नेता राज्य की जनता को क्या संदेश दे रहे हैं? शायद नेता भूल गए कि आम जनता राजनीतिक नेतृत्व को रोल मॉडल मानती है। अच्छी सोच रखने वाले लोग राजनीति को अपने लिए सही स्थान नहीं मानते। इसी कारण राजनीतिक क्षेत्र में दबंगों, कारोबारियों और अपराधियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
देश के प्रधानमंत्री मोदी के लिए कांग्रेस नेताओं ने अनेक अशब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इधर भाजपा सांसद ने बसपा सांसद के खिलाफ अनुचित शब्दों का इस्तेमाल किया, उधर हरियाणा के एक नेता ने अकारण ही प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री के लिए कथित तौर पर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। क्या राजनीति इसी आधार पर की जा सकती है? ऐसे नेताओं के खिलाफ  कोई कार्रवाई नहीं होती। 
दरअसल, जब राजनीति वैचारिक आधार खो देती है, तब राजनीतिक कार्यकर्ता ऐसा आचरण करने लगते हैं। ये घटनाएं संकेत देती हैं कि राजनीति किस हद तक वैचारिक दीवालियेपन की शिकार हो चुकी है। राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की परिपाटी बंद हो चुकी है। हर नेता शार्टकट तलाश रहा है। बदज़ुबानी इसी का परिणाम है। इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को अपने लिए आचार संहिता बनानी चाहिए, ताकि लोकतंत्र की गरिम बनी रहे।