ब्रह्मपुत्र के पानी से काजीरंगा के जंगलों तक का स़फर 

यात्रा करना और उन यात्राओं के अनुभव को कलमबंद करना मेरा पेशा है। इसलिए पिछले साल भी मैंने अनेक यात्राएं कीं, जिनमें से अधिकतर के बारे में मैं लिख चुका हूं और आप पढ़ चुके हैं। इन सभी यात्राओं में से अगर मैं सबसे खूबसूरत में से किसी एक का चयन करूं तो वह असम की यात्रा होगी, हालांकि अनेक कारणों से अधिकतर पर्यटकों के एजेंडा में यह यात्रा शामिल नहीं होती है। असम में एक सप्ताह गुज़ारने के बाद मैं पर्यटन के सभी शौकीनों से कहूंगा कि वे विशिष्ट अनुभव के लिए अपनी बकेट लिस्ट में ब्रह्मपुत्र के किनारे, पहाड़ियों व पार्कों की सैर को अवश्य शामिल करें। 
सबसे पहली बात तो यह है कि नदी के रूप में ब्रह्मपुत्र ही मंत्रमुग्ध कर देती है- अपने विशाल आकार, अपनी चौड़ाई और गज़ब के ‘वाइल्ड’ चरित्र से। मैंने दो दिन लकड़ी की नाव में इस नदी में गुज़ारे। ऐसा लग रहा था जैसे पानी धीरे-धीरे व शांति से बह रहा था, लेकिन पानी जंजीरों से बंधा तो होता नहीं, इसलिए अपना रास्ता नियमित बदल रहा था। रेत के नये किनारे उभरते तो पहले वाले लुप्त हो जाते। नौका चालक के लिए कड़ी चुनौती थी क्योंकि उसे कठिन करंट को नियंत्रित करते हुए आगे बढ़ना था। इस नाव यात्रा के दौरान अब तब डॉलफिन अपनी नाक के दीदार करातीं, परिंदे नदी पर उड़ान भरते और मछुआरों की नाव हमारा रास्ता काटती। धीमे लेकिन अपने वैभव के साथ बह रहा पानी मुझ पर गहरा असर डाल रहा था, मैं निरंतर अधिक रिलैक्स होता जा रहा था और शांत नज़ारे का भरपूर आनंद उठा रहा था। डेक पर चिल करना! डूबते सूरज के साथ रेतीले किनारे पर डिनर करना, इन अनुभवों ने मेरी नदी यात्रा को असम स्टे का क्लाइमेक्स बना दिया।
कुछ ऐसा ही लुत्फ काजीरंगा में आया। यह प्राकृतिक रिज़र्व अपने अनेक वेटलैंड्स के कारण विविध प्रकार के बेशुमार पक्षियों को आकर्षित करता है। पक्षियों को देखना मुझे बचपन से ही अच्छा लगता रहा है। हालांकि मैं सालिम अली तो न बन सका, लेकिन नये-नये पक्षियों को देखने के बाद मैं भी धरती पर बैठा हुआ आसमान में उड़ने लगता हूं। हॉर्नबिल को एक बार फिर देखकर मेरे उत्साह का ठिकाना न रहा। इससे पहले मैंने पेरियार, केरल में हॉर्नबिल को देखा था, जहां इस प्रजाति की दूसरे प्रकार की संख्या है। काजीरंगा में अलग-अलग प्रकार के राप्टर्स व जलमुर्गाबी देखने को मिलीं। मैंने अनेक लाल जंगली मुर्गे भी देखे। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि जंगली मुर्गे और घरेलू मुर्गे में आज भी कितनी समानता है, जबकि मुर्गों को पालतू 8,000 वर्षों से पहले बनाया गया था।
कच्ची सड़कों पर मैं अपने गाइड के साथ ड्राइव कर रहा था और हमें बहुत कम समय लगा काजीरंगा के ‘सिग्नेचर’ पशु को स्पॉट करने में- भारतीय राइनो (गेंडा)। यह ज़बरदस्त प्रभावी मैमल है। इसकी सबसे विशिष्ट चीज़ इसकी ख़ाल के मोटे ग्रे फ्लैप्स हैं, जिनसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे इसने किसी मध्ययुग के योद्धा का कवच पहन रखा हो। इस पशु को बहुत करीब से चरते हुए देखना वास्तव में अलौकिक अनुभव है। काजीरंगा में 2,000 से अधिक गेंडे हैं, जोकि इस लुप्तप्राय प्रजाति की विश्व संख्या का 50 प्रतिशत से ज्यादा है। मुझे जर्मन आर्टिस्ट अल्ब्रेखत डुरेर की याद आ गई, जिन्होंने भारतीय गेंडे को कभी देखा नहीं था, लेकिन उसका विवरण पढ़कर लकड़ी का एक गेंडा तराशा था और वास्तव में उन्होंने एकदम सटीक चित्रण किया था।
काजीरंगा में दूसरा बड़ा पशु हाथी है। यह तो भारत में हर जगह देखने को मिल जाता है, लेकिन काजीरंगा के जंगलों में इसे देखने का मज़ा ही कुछ और था। हम पहाड़ियों में आधा दिन चल चुके थे कि अचानक हमारे रेंजर ने एकदम स्थिर व शांत खड़े होने का आदेश दिया- 50 मीटर के फासले पर हाथियों का एक बड़ा झुण्ड हमारा रास्ता काट रहा था, जिसमें नर, मादा, बच्चे सभी प्रकार के हाथी थे। मैं झुण्ड को देखता रहा, स्तब्ध। बाद में जब हम कार में थे तो गाइड ने एक वेटलैंड के पास फिर रुकने के लिए कहा, उसे ऊंचे सरकंडों में हाथियों के होने का अंदेशा था। उसका अनुमान सही था। मैं सोचता रहा कि उसने यह अंदाज़ा कैसे लगाया। कुछ देर बाद हाथी सरकंडों से बाहर निकले और कच्ची सड़क को पार किया। झुण्ड में तो बच्चे भी थे। क्या शानदार नज़ारा था।
काजीरंगा के बाहर मैं एक टी प्लांटेशन में गया, जहां चाय ज़मीनी इलाके में उगती है, अन्य जगहों की तरह पहाड़ों में नहीं। चाय के पौधों के बीच, पेड़ों की छांव में टहलते हुए अच्छा लगा। लेकिन असम सिर्फ वन्यजीवन और चाय नहीं है- इसका महान व दिलचस्प इतिहास है। गाइड ने अहोम राज्य का 600 साल का इतिहास सुनाया। मैंने असम के सुंदर मंदिरों के दर्शन किये। लज़ीज़ असमी फूड का सेवन किया, जोकि मिर्चों से अधिक भरा होता है। असम की अपनी भाषा, इतिहास, क्राफ्ट व स्किल जोकि भारतीय उपमहाद्वीप में विशिष्ट है और हर जगह आश्चर्यों से भरा हुआ है।
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर