अवैध कटाई से विलुप्ति के कगार पर पहुंचा पडौक का पेड़

भारतीय महोगिनी के नाम से भी जाना जाने वाला अंडमान और निकोबार द्वीप का राज्य वृक्ष पडौक, मूलत: अफ्रीका और सुदूर पूर्व एशिया का पेड़ है। लेकिन अब यह भारत के भी महत्वपूर्ण वृक्षों में से है, क्योंकि पडौक की एक खास प्रजाति टेरोकार्पस इंडिकस या इंडियन पडौक मूलत: भारत में ही पायी जाती है। पडौक के पेड़ की एक नहीं कई खासियतें हैं। इसकी लकड़ी उच्च पॉलिश लेने की क्षमता के लिए विख्यात है। फैबेसी परिवार से संबंधित भारतीय पडौक एक बड़ा पर्णपाती वृक्ष है, जो आमतौर पर प्राकृतिक आवासों, बलुई और तलछटी मिट्टी में विशेष रूप से पाया जाता है। इसकी कठोर लकड़ी बहुत उपयोगी होती है। इसका रंग आश्चर्यजनक रूप से लाल और नारंगी होता है। इसकी लकड़ी में सुंदर बनावट के इतने ज्यादा दाने होते हैं कि कई बार जिन औजारों से हम इसे काटते हैं, वे कुंद पड़ जाते हैं।
पडौक की लकड़ी के बने फर्नीचर या रोजमर्रा के उपयोग की दूसरी चीजें इसलिए भी लोगों को खास तौर पर पसंद है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक पॉलिश भी की जा सकती है और पेंट भी किया जा सकता है। टिकाऊ फर्नीचर के लिए यह  पसंदीदा लकड़ी है, क्योंकि इसमें कीड़े-मकोड़ों के प्रति उच्च प्रतिरोध की क्षमता होती है। दीमक सहित लकड़ी में लगने वाले अनेक कीड़े इससे दूर रहते हैं। शायद इसका एक कारण यह है कि इसकी लकड़ी में काफी ज्यादा मात्रा में तेल होता है। यह भारी मजबूत और कठोर होती है, इसलिए लकड़ी के काम करने वाले कारीगरों की यह पसंदीदा लकड़ी है। पुराने होने और लगातार सूरज की रोशनी में रहने के कारण इसका रंग गहरा लाल या नारंगी से काला हो जाता है और तब इसकी अलग ही छठा दिखती है। पडौक के पेड़ की लकड़ी इतनी अद्भुत और उपयोगी होती है कि इससे पहले बड़ी तादाद में लकड़ी वाले रेल के डिब्बे तथा रेल की पटरियों में बिछाये जाने वाले स्लीपर भी बनते थे, लेकिन अब रेलवे ने लकड़ी के स्लीपर इस्तेमाल करने बंद कर दिए हैं, मगर कुछ लकड़ी के कोच अब भी बनते हैं।  
आम भारतीय किसानों के लिए पडौक का पेड़ इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बाजार में इसकी लकड़ी शीशम और सागौन की तरह ही काफी महंगी बिकती है। लेकिन अपनी इन्ही खूबियों के कारण पडौक पेड़ संकट में भी है। पडौक का पेड़ बहुत जल्दी तैयार नहीं होता। मूलरूप से सात प्रजातियों वाले पडौक के पेड़ की जो प्रजाति भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप में खास तौर पर पायी जाती है, वह इस वृक्ष की सबसे अच्छी प्रजाति मानी जाती है। भारतीय पडौक के पेड़ की लम्बाई 120 फीट तक होती है और इसका तना आमतौर पर 7 से 10 फीट तक चौड़ा होता है। अच्छे पडौक के पेड़ का मतलब है, इसका बड़ा और गद्देदार तना। कई बार पडौक के पेड़ पहले 60-65 फीट तक सीधे तनकर ऊपर की तरफ बढ़ते हैं फिर इससे शाखाएं निकली शुरु होती हैं। अपनी लम्बाई और इस तरह निकलने वाली शाखाओं के कारण इसका एक खूबसूरत सा मुकुट बन जाता है, तब यह पेड़ बेहद दर्शनीय लगता है। पडौक का तना चिकना होता है, इसमें पीले रंग की छाल होती है। जहां तक पडौक के पेड़ की पत्तियों का सवाल है तो ये हरी और हल्के पीले रंग की मिश्रित पत्तियां होती हैं। पडौक के पेड़ की पत्तियां कई तरह से इंसानों के काम आती हैं। कई आयुर्वेदिक दवाओं में भी इनका इस्तेमाल होता है, विशेषकर इसके पीले और सुनहरे फूलों का, जो इसकी शाखाओं के शीर्ष पर खिलते हैं। 

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