सरकार किसानों की उचित मांगें मान कर धरने समाप्त करवाए

दिल्ली की सीमाओं पर वर्ष 2020-21 में एक वर्ष धरने लगाने तथा सरकार को तीन कृषि कानून रद्द करने के लिए मजबूर करने के बाद अब किसान 10 फरवरी से पंजाब-हरियाणा की शम्भू सीमा पर स्थित टोल प्लाज़ा पर सड़क की एक ओर अपनी मांगें मनवाने के लिए इकट्ठे होकर धरना लगा कर बैठे हैं, जबकि इसे बहाना बना कर हरियाणा ने अपनी तरफ अवरोध खड़े कर सड़क को रोका हुआ है। इस कारण पंजाब से दिल्ली जाने वाले मुख्य मार्ग पर यातायात बंद है और ट्रकों, कारों व अन्य वाहनों को गांवों में से होकर लम्बे रास्ते या पटियाला-बठिंडा के लिए वाहनों को ज़ीरकपुर से होकर जाना पड़ता है। इससे समय भी अधिक लगता है और खर्च भी ज़्यादा होता है।
 किसानों की मुख्य मांग है कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए और यह उनका कानूनी अधिकार बने। इसके अतिरिक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रो. स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के अनुसार सी-2+50 प्रतिशत लाभ जोड़ कर निर्धारित किया जाए। इस फार्मूले के खर्च में किसानों द्वारा किया गया पूरा खर्च, परिवार की ओर से की गई लेबर ही नहीं, उनकी अपनी ही ज़मीन का किराया तथा उस पर आई लागत एवं सूद आदि सब कुछ शामिल किया जाए। वर्तमान में फसलों का जो न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारत किया जाता है, उसमें खर्च ए-2+एफ.एल. अर्थात किसानों द्वारा किया गया खर्च तथा परिवार की लेबर ही शामिल करके उस आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाता है। वर्तमान ढंग से निर्धारत किये जा रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा किसानों द्वारा मांगे जा रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य में 25 से 30 प्रतिशत का अंतर है। किसानों द्वारा की जा रही मांग के फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2+50 प्रतिशत के आधार पर 2866 रुपये प्रति क्ंिवटल बनता है, जो अब 2203 रुपये प्रति क्ंिवटल की दर पर दिया जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के अतिरिक्त किसानों की और भी मांगें हैं—जैसे ऋण की माफी, पैंशन (किसानों एवं कृषि मज़दूरों दोनों के लिए), मनरेगा के तहत 700 रुपये दिहाड़ी तथा इस योजना के अधीन श्रमिकों को किसानों के खेतों में काम करने की आज्ञा देना आदि। 
किसानों की इन सभी मांगों को मानने के लिए सरकार को गम्भीरता से सोचना होगा। सरकार को किसान नेताओं के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए और इसका समाधान करके किसानों का रोष तथा धरने खत्म करवाने चाहिएं। इन सभी मांगों को मिला कर ऐसा लगता है कि किसानों का रोष समाप्त करने के लिए उनकी आय में किसी प्रकार उल्लेखनीय वृद्धि हो। 
किसानों की आय बढ़ाने का एक तरीका तो यह है कि फसलों का उत्पादन बढ़ा कर उनकी आय बढ़ाई जाए। दूसरा यह है कि उनका जो उत्पाद है, वह खुली मंडी में अधिक कीमत पर बिके। उत्पादन बढ़ाने के लिए अनुसंधान, सिंचाई तथा फसलों के विकास संबंधी काफी खर्च करना पड़ेगा, जो शायद सरकार शीघ्रता से न कर सके। लाभदायक मंडी ढूंढने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों में मंडीकरण पर अनुसंधान तेज़ करके किसानों के साथ सम्पर्क करने तथा उनका नेतृत्व करने की ज़रूरत है। सरकार द्वारा निर्यात पर जो पाबंदियां लगाई जा रही हैं और स्टाक की सीमा निर्धारित की जा रही है, उसे हटाने की आवश्यकता है—जैसे गैर-बासमती चावल का निर्यात बंद किया गया है। गेहूं के निर्यात पर भी रोक लगाई गई है। हालांकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र आदि (जहां नवम्बर-दिसम्बर में तापमान सामान्य से अधिक होने के कारण चाहे फसल ज़्यादा अच्छी न हो) को छोड़ कर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार आदि राज्यों में गेहूं की भरपूर फसल सामने दिखाई दे रही है। रातें अभी भी ठंडी चल रही हैं और कटाई में देरी हो रही है, जिससे गेहूं का उत्पादन बढ़ने की सम्भावना है। फिर गेहूं का बफर स्टाक भी इस समय 76 लाख टन है, जो वैसे आम तौर पर 74 लाख टन ही पर्याप्त होता है। फिर यूक्रेन तथा रूस में भी गेहूं की फसल अच्छी होने का अनुमान है। चाहे यह जुलाई-अगस्त में काटी जाएगी। ज़रूरत पड़ने पर इन देशों से भी आयात की जा सकती है। लगभग भारत के 70 प्रतिशत किसानों के पास 2.5 एकड़ से कम ज़मीन है और 88 प्रतिशत किसान ऐसे हैं, जिनकी ज़मीन 5 एकड़ से कम है। इनकी आय छोटे खेतों से बढ़ानी बड़ी मुश्किल है, जब तक कि विभिन्नता लाकर इन्हें दूसरी फसलें उगाने के लिए सहायता एवं मंडीकरण की सुविधाएं उपलब्ध न हों।  
सरकार की नीतियां उपभोक्ता-पक्षीय हैं। इनको उत्पादक-पक्षीय बनाने की भी ज़रूरत है। वास्तव में कृषि में ज़रूरत से अधिक जनसंख्या लगी हुई है, ज़मीन कम है। छोटे खेतों की आय में जल्द वृद्धि होना असम्भव प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत जो 6000 रुपये गरीब किसानों को दिये जा रहे हैं, वे भी उनकी आय बढ़ाने तथा गुज़ारे के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसी लिए उनमें रोष है, जिसे दूर करने के लिए सही अर्थों में किसानों की आय बढ़ाने की ज़रूरत है।