आत्म-मंथन की ज़रूरत

पंजाब के राजनीतिक मंच पर यह बात बेहद चिन्ताजनक कही जा सकती है कि शिरोमणि अकाली दल जो एक सौ वर्ष से भी पहले अस्तित्व में आया था, जिसने उस समय विशाल पंजाब के हकों-हितों के लिए संघर्ष किया था, पंजाबीयत की बात की थी, अपनी संस्कृति की रक्षा की बात की थी तथा सिख भाईचारे की बेहतरी के लिए संघर्ष किया था तथा जिसे भाईचारे का प्रतिनिधि माना जाता रहा है, आज उस पार्टी का अस्तित्व बड़ी सीमा तक सिकुड़ता नज़र आ रहा है। लगातार संघर्ष से गुज़री इस पार्टी ने बाबा खड़क सिंह, मास्टर तारा सिंह, संत फतेह सिंह, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा तथा प्रकाश सिंह बादल जैसे कद्दावर नेता पैदा किये हैं, जिन्हें समय-समय पर समूचे पंजाबियों तथा सिख भाईचारे का भारी समर्थन मिलता रहा है।
नया पंजाब अस्तित्व में आने के बाद इस पार्टी ने पंजाब की राजनीति, पंजाबी संस्कृति तथा प्रदेश के विकास में बड़ा योगदान डाला। चाहे समय-समय पर इसके नेताओं तथा पार्टी की कारगुज़ारी संबंधी उंगलियां भी उठती रही हैं, दूसरी तरफ इस की ओर से डाले जाते भरपूर योगदान की भी बड़ी चर्चा होती रही, है परन्तु दशक भर से पार्टी अवसान की ओर जाती नज़र आ रही है। प्रदेश की राजनीति में इसका योगदान कम होता जा रहा है। उदाहरण के रूप में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में इसके मात्र दो सदस्य सफल हुये थे तथा 2022 में हुये विधानसभा चुनावों में इसके 117 में से सिर्फ 3 सदस्य ही चुने गये थे परन्तु अभी हुये लोकसभा चुनावों में इसकी कारगुज़ारी और भी निराशाजनक रही है। पंजाब की 13 सीटों में से इसे एक सीट पर ही सफलता मिल सकी है। इस बार मुख्य रूप से पांच पार्टियां मैदान में थीं (भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी) जिन्होंने इन सभी सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। लम्बे समय से अकाली दल (ब) तथा भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ते आ रहे थे। इस बार दोनों पार्टियां अपने-अपने दम पर मैदान में उतरी थीं। यदि इस राजनीतिक दृश्य की विस्तारपूर्वक चर्चा की जाये तो अकाली दल की कारगुज़ारी बेहद निराशाजनक रही है। कांग्रेस ने 7 सीटों पर जीत प्राप्त की है। आम आदमी पार्टी के हिस्से 3 सीटें आई हैं। 2 आज़ाद उम्मीदवार भी सफल हुये हैं। दूसरी तरफ अकाली दल की ओर से बठिंडा से हरसिमरत कौर बादल ने जीत प्राप्त की है, परन्तु अकाली दल से अलग होकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ कर भाजपा एक सीट भी प्राप्त नहीं कर सकी। वैसे आंकड़ों के अनुसार उसने अपने वोट प्रतिशत में लगभग 9 फीसदी वृद्धि ज़रूर कर ली है। 
दूसरी तरफ आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में जहां अकाली दल का वोट प्रतिशत 27.8 था, वहीं इस बार यह कम होकर 13.42 प्रतिशत ही रह गया है। इसकी ओर से खड़े किये गये 13 उम्मीदवारों में से 10 की ज़मानत ज़ब्त हो गई है। ज्यादातर स्थानों पर अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले में इसके उम्मीदवार तीसरे, चौथे या पांचवें स्थान पर आये हैं। ऐसे हालात के दृष्टिगत खास तौर पर पार्टी से संबंधित कार्यकर्ताओं में तथा आम तौर पर पंजाबियों में बड़ी निराशा पैदा हुई है। पंजाब की प्रमुख पार्टी अकाली दल का इस प्रकार न्यून होना आने वाले समय में प्रदेश के लिए बड़े अवसान वाला बन सकता है। ऐसे गम्भीर हालात में समूचे अकाली नेताओं को एकजुट होकर गम्भीरता से आत्म-मंथन करने की ज़रूरत होगी। समय-समय पर इसके कामकाज में रह गई त्रुटियों के कारणों को समझने तथा विचार-विमर्श उपरांत इसमें से निकलने वाले परिणामों के दृष्टिगत उन्हें भावपूर्ण क्रियान्वयन में ढालना बेहद ज़रूर दिखाई देने लगा है।
यदि हालात तथा समय की नज़ाकत को देखते हुये समूचे रूप में पंथ के साथ दर्द रखने वाले अकाली इस पक्ष से अर्थ-भरपूर क्रियान्वयनों से वंचित हो गये तो वे अपने समाज के प्रति फज़र् निभाने से वंचित रह जाएंगे, जिसके लिए इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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