रोज़गार पैदा करने के लिए विकास मॉडल में बदलाव की ज़रूरत

2014 के बाद से जारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले दो कार्यकालों में अभूतपूर्व बेरोज़गारी संकट उनके तीसरे कार्यकाल में भी जारी रहने की संभावना है, जब तक कि वर्तमान रोज़गारहीन विकास मॉडल में बदलाव नहीं किया जाता। लगभग एक अरब कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में से पिछले कुछ वर्षों से रोज़गार में लगे लोगों की संख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास रही है, जो चिंता का विषय है।
इस भयावह ज़मीनी हकीकत के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के अधिकारी दावा करते रहे कि बेरोज़गारी दर में गिरावट आ रही है। यहां तक कि सरकार के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों से पता चला है कि 2022-23 के दौरान बेरोज़गारी दर गिरकर 3.1 प्रतिशत हो गयी है। हालांकि गैर-सरकारी सीएमआईई के ताज़ा रियल टाइम आंकड़ों से पता चलता है कि बेरोज़गारी 7.8 प्रतिशत के आस-पास मंडराती रही है।
लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के दौरान जब बेरोज़गारी मतदाताओं के बीच एक प्रमुख मुद्दा बन गयी तो केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय की सचिव सुमिता डावरा ने एक बयान दिया कि 2022-2023 में 30 मिलियन नौकरियां पैदा की गयीं और पिछले पांच वर्षों में 110 मिलियन से अधिक नौकरियां जोड़ी गयीं। इसका मतलब यह था कि मोदी सरकार ने देश के बेरोज़गारी संकट को पहले ही हल कर दिया था, क्योंकि हर साल लगभग 20 मिलियन लोग ही भारतीय श्रम बाज़ार में प्रवेश करते हैं। इसका यह भी मतलब था कि मोदी सरकार ने एक साल में 30 मिलियन नौकरियां पैदा करके ज़रूरत से ज़्यादा काम किया।
डावरा ने यह बयान भारतीय रिज़र्व बैंक के के एलईएमएस डेटाबेस के 2022-23 के अनंतिम आंकड़ों का हवाला देते हुए दिया था कि जो पूंजी, श्रम, ऊर्जा, सामग्री और सेवा क्षेत्रों में रोज़गार सृजन और उत्पादकता के स्तर को ट्रैक करता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि डावरा के दावे का समर्थन केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय के वार्षिक पीएलएफएस डेटा से भी नहीं होता है।
यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने चुनाव प्रचार में हर साल 20 मिलियन नौकरियां देने का वायदा किया था, जो कभी पूरा नहीं हुआ। यहां तक कि हर साल जारी होने वाले सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी नहीं। लेकिन अचानक मोदी सरकार के श्रम सचिव ने पिछले महीने मई में कहा कि पिछले साल 30 मिलियन नौकरियां पैदा हुईं। 
मार्च में ही मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा था कि यह मान लेना गलत है कि सरकार बेरोज़गारी जैसी सभी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को हल कर सकती है। उन्होंने यह बयान नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) के संयुक्त प्रकाशन ‘भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 : युवा रोज़गार, शिक्षा और कौशल) के लॉन्च के दौरान दिया था। सीईए नागेश्वरन ने आश्चर्य जताया था कि सरकार खुद को और अधिक नियुक्त करने के अलावा रोज़गार के मामले में क्या कर सकती है। उन्होंने कहा कि सामान्य दुनिया में यह वाणिज्यिक क्षेत्र है जिसे नियुक्तियां करने की ज़रूरत है। 
रोज़गार सृजन पर मोदी सरकार का दृष्टिकोण काफी चौंकाने वाला था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अभूतपूर्व बेरोज़गारी संकट को हल करना मोदी सरकार की प्राथमिकता नहीं थी। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सीईए के इस बयान की आलोचना की थी कि सरकार बेरोज़गारी की समस्या का समाधान नहीं कर सकती। अगर यह भाजपा सरकार का आधिकारिक रुख है तो यह चौंकाने वाला है। हमें भाजपा से साहसपूर्वक कहना चाहिए कि अपनी कुर्सी छोड़ो। 
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि हमारे युवा मोदी सरकार की दयनीय उदासीनता का खमियाजा भुगत रहे हैं, क्योंकि लगातार बढ़ती बेरोज़गारी ने उनके भविष्य को नष्ट कर दिया है। आईएलओ और आईएचडी की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में बेरोज़गारी की समस्या गंभीर है। उन्होंने यह भी कहा था कि 2012 से मोदी सरकार के तहत युवा बेरोज़गारी तीन गुना बढ़ गयी है।
भारत के पास राष्ट्रीय रोज़गार नीति भी नहीं है, हालांकि श्रम और रोज़गार के मुद्दों पर देश में शीर्ष त्रिपक्षीय निकाय भारत श्रम सम्मेलन (आईएलसी) ने 2013 में अपने 45वें सत्र में इसकी सिफारिश की थी। आईएलसी ने 2015 में आयोजित अपने 46वें सत्र में भी इसे दोहराया, उसके बाद मोदी सरकार ने कभी इसका अगला सत्र नहीं बुलाया। मोदी सरकार ने अभी तक देश के लिए राष्ट्रीय रोज़गार नीति लाने की कोई योजना नहीं बनायी है।
2017-18 तक भारत की बेरोज़गारी दर 6.1 प्रतिशत हो गयी थी, जो 45 साल में सबसे अधिक थी। अब भारत रोज़गार रिपोर्ट-2024 ने नौकरी के मोर्चे पर एक गम्भीर तस्वीर पेश की है, खास तौर पर भारतीय युवाओं के लिए। इस प्रकाशन से देश को पता चलता है कि लाखों युवाओं को कभी नौकरी नहीं मिल पायी, उनमें से कई की मोदी शासन के पिछले 10 वर्षों के दौरान नौकरी की योग्यता की उम्र ही निकल गयी और जो किसी तरह नौकरी पाने में कामयाब रहे उनमें से 90 प्रतिशत अनौपचारिक रूप से कार्यरत हैं, जिनमें से 82 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं। 2022 में 55.8 प्रतिशत लोगों के लिए स्वरोज़गार ही रोज़गार का प्राथमिक स्रोत बना रहा जबकि आकस्मिक रोज़गार में केवल 22.7 प्रतिशत और नियमित रोज़गार में केवल 21.5 प्रतिशत लोग ही थे। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में स्टार्टअप महाकुंभ में कहा था कि भारत के युवाओं ने नौकरी चाहने वालों की तुलना में नौकरी देने वाले बनने का विकल्प चुना है। 
मोदी की तीसरी सरकार में भाजपा के गठबंधन सहयोगियों को पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. कौशिक बसु द्वारा हाल ही में कही गयी बातों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने बताया कि भारत की युवा बेरोज़गारी दर 45.4 प्रतिशत के साथ दुनिया में सबसे अधिक है। उन्होंने सरकार से इस गम्भीर मुद्दे से निपटने के लिए सुधारात्मक उपाय करने का आग्रह किया है। प्रभावी आर्थिक विकास के बावजूद देश के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी का संकट भयावह बना हुआ है जो मोदी सरकार द्वारा 2014 से अपनाये जा रहे रोज़गार रहित विकास मॉडल का प्रमाण है। लोकसभा के नतीजों ने नरेन्द्र मोदी को लोकसभा में बहुमत से वंचित कर दिया जो उनके लिए और सरकार में राजग सहयोगियों के लिए भी एक सबक है। नई सरकार के लिए बेरोज़गारी एक प्रमुख समस्या बनी रहने की संभावना है। (संवाद)

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