प्रेरक प्रसंग-कर्त्तव्य-निष्ठा 

क्रीमिया युद्ध चल रहा था। सेबेस्टोपोल से जार निकोलस को एक गुप्त संदेश भेजना था। रुसी सेनापति ने अपने एक विश्वस्त कप्तान के हाथों में मोहरबंद लिफाफा सौंपते हुए कहा- ‘मुझे विश्वास है कि इस लिफाफे को बिना समय गंवाये सम्राट तक अवश्य पहुंचा दोगे। दिन हो या रात अपनी यात्रा जारी रखना।’  कप्तान लिफाफे को लिए घोड़ागाड़ी में सवार हो गया और चल पड़ा अपने सम्राट को संदेश पहुंचाने। वह हर दस मील की यात्रा पर घोड़ा बदलने के लिए कुछ पल रुकता और अपने गाड़ीवान के यह कहते ही कि गाड़ी चलने को तैयार है। 
इतना सुनते ही वह कहता- ‘जल्दी गाड़ी दौड़ाओ।’  कई दिनों और रातों की यात्रा के बाद वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया। वह सेंटपीटर्सवर्ग के राजमहल में पहुंचकर उस लिफाफे को सम्राट के हाथों में थमाया और सम्राट के सामने ही एक कुर्सी पर अनुमति लेकर बैठ गया। वह कुर्सी पर बैठते ही घोर निद्रा में लीन हो गया। 
पत्र पढ़ने के बाद सम्राट ने उसकी ओर देखा। वह अपनी आंखें मूंदे बैठा था। सम्राट ने उसे आवाज दिया, लेकिन वह वैसे ही बैठा रहा। सम्राट ने पास जाकर उसे झकझोरकर उठाया, लेकिन वह वैसे ही बैठा रहा। यह देखकर सम्राट को किसी अनहोनी की आशंका हुई। उन्होंने फौरन राजवैद्य को बुलाया और उसे देखने को कहा। वैद्य ने नाड़ी को देखकर कहा- ‘सम्राट! यह बिल्कुल स्वस्थ है, किन्तु घोर निद्रा में है।’ 
सम्राट सारी बात समझ गये और उसके कान के पास जाकर धीरे से बोले-‘कप्तान साहब! गाड़ी तैयार है।’ 
इतना सुनते ही कप्तान साहब तनकर बैठ गये और बोले- ‘जल्दी गाड़ी दौड़ाओ।’ 
तभी उसकी आंखें खुली और उसने देखा कि सम्राट उसके सामने खड़े मुस्कुरा रहे हैं। वह घबराकर उठ गया। सम्राट उसका आदरपूर्वक हाथ थामकर बोले- ‘जन्मभूमि और सम्राट के काम के प्रति लगन और कर्तव्यनिष्ठा, ये दो गुण जब तक अधिकारियों में इसी रुप में रहेंगे, तब तक देश के गौरव पर आंच नहीं आ सकती।’
 

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