इसरो की एक और ऐतिहासिक सफलता एसएसएलवी-डी3 का सफल प्रक्षपण

आज़ादी की वर्षगांठ के ठीक अगले दिन यानी 16 अगस्त, 2024 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारतीयों को जश्न मनाने का हमेशा की तरह एक और ऐतिहासिक मौका तब दिया, जब सुबह 9 बजकर 17 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरि कोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो ने बहुप्रतीक्षित एसएसएलवी-डी3 को सफलतापूर्वक लांच कर दिया। इस ऐतिहासिक सफलता के कुछ ही मिनटों बाद इसरो के चीफ एस. सोमनाथ ने कहा, ‘रॉकेट ने अंतरिक्ष यान को योजना के मुताबिक सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है। मुझे लगता है कि उसकी स्थिति में कोई डाइवर्जन नहीं है।’ इस तरह इसरो प्रमुख ने कहा कि एसएसएलवी की प्रक्रिया पूरी हो गई। एसएसएलवी का मतलब स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल और डी3 का मतलब है- तीसरी डिमांस्ट्रेशन फ्लाइट। इस रॉकेट का इस्तेमाल करके इसरो, मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट की लांचिंग मौजूदा लागत से बहुत कम में कर सकेगा। इसरो के पास पहले से जीएसएलवी और पीएसएलवी जैसे सैटेलाइट लांचर थे, लेकिन इन रॉकेट लांचरों की बहुत ज्यादा कीमत आती थी, जिसके कारण छोटे और बेहद छोटे सैटेलाइट लांच करना इन रॉकेट लांचरों के जरिये बेहद घाटे का सौदा था। कहना नहीं होगा कि आज की तारीख में अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना सिर्फ राष्ट्रीय गौरव तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अच्छा खासा बाज़ार भी है। जो साल 2022 तक 49000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का था और माना जा रहा है कि अगले साल के अंत तक यह सैटेलाइट लांचिंग का बाज़ार बढ़कर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो जायेगा।
चूंकि इस बड़े बाज़ार पर कब्जा करने के लिए पहले से ही विश्व बाज़ार में एलन मस्क की स्पेस एक्स जैसी हैवी वेट कंपनी मौजूद है, जो समूचे बाज़ार पर कुंडली मारना चाहती है। इसके लिए जरूरी था कि इसरो भी इस बाज़ार में अपनी ज़रूरी भागीदारी पाने के लिए कम लागत का कोई रॉकेट लांचर विकसित करे। एसएसएलवी-डी3 इसी श्रृंखला का लागत के लिहाज से किफायती रॉकेट लांचर है और यह इसकी तीसरी और आखिरी टेस्टिंग फ्लाइट थी, जिसमें यह इस बार दो महत्वपूर्ण सैटेलाइट भी ले गया है। इस लांचिंग के बाद अब एसएसएलवी को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिल जायेगा। इसे जल्द ही इसरो के नये रॉकेट लांचर के रूप में शामिल कर लिया जायेगा। एसएसएलवी श्रृंखला की पहली टेस्ट लांचिंग 7 अगस्त, 2022 को हुई थी, दूसरी 10 फरवरी 2023 को सम्पन्न हुई और इसमें तीन सैटेलाइट ईओएस-7, जानुस वन और आजादी सैट-2 भेजे गए थे। जबकि इस तीसरी लांचिंग में ईओएस-8 अर्थ ऑर्ब्जेशन सैटेलाइट भेजा गया है, जो हमें आपदाओं के बारे में अधिक से अधिक पूर्व सूचनाएं देगा।
इसरो ने तय समय के मुताबिक शुक्रवार 16 अगस्त को सुबह 9 बजकर 17 मिनट में सतीश धवन सेंटर से इस रॉकेट की सफल लांचिंग की, जिसमें ईओएस-8 सैटेलाइट के अलावा एक छोटा सैटेलाइट एसआर-0, डेमोसैट भी छोड़ा गया। दोनों ही सैटेलाइट धरती से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गोलाकार ऑर्बिट में स्थापित कर दिए गए हैं। एसएसएलवी-डी3 रॉकेट की तीसरी डिमोनस्ट्रेशन फ्लाइट के सफल रहने के बाद इसरो प्रमुख डा. एस. सोमनाथ के चेहरे पर संतुष्टि नज़र आयी और उन्होंने कहा कि जल्द ही हम इस रॉकेट की टेक्निकल जानकारी लांचिंग इंडस्ट्री के साथ साझा करेंगे, जिसका मतलब साफ है कि इसरो अपने इस बहुउद्देशीय लांचर व्हीकल के जरिये एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने और सफल रहने को लेकर आश्वस्त हैं। गौरतलब है कि अगर भारत के एसएसएलवी रॉकेट की लागत 25 से 30 करोड़ रुपये आती है, तो यह पीएसएलवी के मुकाबले एक चौथाई की लागत से भी कम है। क्याकि पीएसएलवी की लागत न्यूनतम 130 से 200 करोड़ रुपये के बीच आती है। ऐसे में 30 करोड़ की लागत वाला एसएसएलवी सैटेलाइट लांचिंग बाज़ार के लिए बेहद प्रतिस्पर्धी लांचर साबित होगा। इसकी लंबाई 34 मीटर है, व्यास 2 मीटर है, इसका वजन 120 टन है और यह 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक ही ऊंचाई पर आसानी से पहुँचा सकता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि एसएसएलवी को सिर्फ 72 घंटे में तैयार किया जा सकता है और इसे श्रीहरि कोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लांच पैड एक से स्थायी रूप से लांच किया जाता है। अगर प्रतिस्पर्धा के स्तर पर एलन मस्क की कंपनी, स्पेस एक्स की लांचिंग क्षमता को हैवी लोड यानी बड़े सैटेलाइट के स्तर पर देखें तो इस समय पांच लाख रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दुनिया के में सबसे सस्ती लांचिंग कर रहा है। लेकिन स्मॉल और नैनो सैटेलाइट लांच करने के मामले में एलन मस्क शायद ही इसरो के इस किफायती सैटेलाइट लांचर का मुकाबला कर सकें। इस समय दुनिया में हैवी सैटेलाइट से कई गुना ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े वैश्विक कारोबारी संगठनों, आदि के निजी सैटेलाइट हैं जो कि स्मॉल और नैनो कैटेगिरी में आते हैं, इनकी भरमार है और जिस तरह से संचार क्षेत्र की टेक्नोलॉजी ने सभी क्षेत्रों की टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया है, उसके कारण सिर्फ कोई देश ही नहीं बल्कि हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कारोबारी संगठन अपना निजी सैटेलाइट अंतरिक्ष में लांच कराना चाहते हैं, ताकि वे अपने कारोबार से असीमित वैश्विक विस्तार दे सकें। यही वजह है कि जिस लांचिंग बाजार का अनुमान साल 2025 के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपये के आसपास आंका गया है, वह इससे कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है। इसलिए इसरो की यह सफलता महज राष्ट्रीय गौरवभर नहीं है बल्कि यह कारोबारी लिहाज से भी ऐतिहासिक है।
हिंदुस्तान ने भी लांचिंग के इस तेजी से उभर रहे विश्व बाज़ार में अपनी दमदार उपस्थिति के लिए इस क्षेत्र में काफी रिफॉर्म किए हैं। ये इन सुधारों का ही नतीजा है कि आज हिंदुस्तान में अंतरिक्ष के क्षेत्र में करीब डेढ़ सौ स्टार्टअप काम कर रहे हैं और इनमें होने वाले निवेश में भी हर नये साल तीन गुना ज्यादा निवेश बढ़ रहा है। भारत जैसे देश के लिए यह सब इसलिए एक परीकथा जैसा लगता है क्योंकि 1963 में जब हमने अपना पहला रॉकेट लांच किया था, तो दुनिया ने हमारा जमकर मजाक उड़ाया था। यह मजाक उड़ाया जाना स्वभाविक था, क्योंकि हमारे पास तब तक रॉकेट को लांच पैड तक ले जाने के लिए उपयुक्त वाहन तक नहीं था और हमने एक साइकिल के कैरियर पर रॉकेट को रखकर लांच पैड तक ले गये थे। लेकिन अपनी खिल्ली उड़ाने वालो की परवाह किए बिना हमने इस क्षेत्र में इतना मजबूत काम किया है कि आज नासा और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर अगर कोई अंतरिक्ष एजेंसी है है तो वह भारत की इसरो ही है।
आज नासा की तरह ही इसरो के साथ भी सैकड़ों पंजीकृत स्टार्टअप भागीदारी करने के लिए लालायित हैं। यह इसलिए भी स्वभाविक है, क्योंकि साल 2022 में जहां वैश्विक सैटेलाइट लांचिंग का बाज़ार 50 हजार करोड़ के आसपास था, वहीं अगले एक दशक में इसके बढ़कर कई लाख करोड़ तक होने जा रहा है और अंतरिक्ष बाज़ार के जानकारों का मानना है कि बहुत ही जल्द ऐसी अनेक कारोबारी गतिविधियां अंतरिक्ष से संबंधित उभरकर आने वाली हैं, जिन गतिविधियों के बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई। कहने का मतलब यह है कि अंतरिक्ष तेजी से उभरता विज्ञान अनुसंधान का क्षेत्र ही नहीं है यह वैश्विक कारोबार का भी एक बड़ा बाज़ार है, जहां प्रतिस्पर्धी होना गौरव ही नहीं फायदे की बात भी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर