उत्तराखंड के झरनों व पहाड़ों में बसा चकराता

गर्मियों के महीने में आप जब पसीने से तर बतर हों, तब आपका कोई परिचित यह बताए कि वह सर्द मौसम का लुत्फ उठा रहा है तो सुनकर आश्चर्य होगा ही लेकिन यकीन कीजिए। इस धरा पर ऐसी भी जगह है जहां पहुंचते ही आप भी पल भर में देश-दुनिया की बातों से अलग सुकून महसूस करेंगे। पहाड़ों की गोद में उत्पात मचाते बादल कभी गर्म कपड़े पहनने को मज़बूर करेंगे तो कभी सावन की फुहार के माफिक जब तब होने वाली बारिश से सराबोर करेंगे। वहीं अचानक धुंध से घिरने के बाद उस जादूगर की याद भी आएगी जिसके करतब आपने बचपन के दिनों में देखें होंगे।
इतना ही नहीं, धूप और छांव के खेल के बीच एसी, कूलर और पंखों की बात भी भूल बैठेंगे। और भी कई हैरतअंगेज बातें सामने आएंगी जिसे जाने बिना आप लौटना नहीं चाहेंगे। तो आइए चलते हैं ऐसे ही एक रमणीक स्थान पर, जहां की सैर करने के बाद उसकी स्मृतियां आपकी जेहन में जीवन भर के लिए रच-बस जाएंगी। 
देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में मसूरी से आगे पहाड़ों की गोद में बसे चकराता के बारे में तो आपने सुना ही होगा। नहीं भी सुना तो कोई बात नहीं। आज हम आपको वहां के दिलकश मौसम में लिए चलते हैं। समुद्र तल से 7000 फीट की ऊंचाई और देहरादून से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर जब आपको चीड़ और देवदार के पेड़ दिखाई देने लगे और पहाड़ों के बीच घिर जाने का एहसास होने लगे तो समझ जाइए कि आप चकराता यानी जौनसार बाबर क्षेत्र में पहुंच चुके हैं। 
कहते हैं कि जौनसर बाबर क्षेत्र में किसी समय में पांडव परंपरा यानी बहु पति प्रथा का रिवाज था जो समय के साथ बदलता गया। इस प्रथा के बारे में अलग-अलग धारणाएं हैं जिन पर आज के समय में स्थानीय स्तर पर लोग खुलकर बात करने से बचना चाहते हैं। सच्चाई चाहे जो हो लेकिन भ्रमण के दौरान ज्यादातर लोगों से यही सुनने को मिलता है कि उस जमाने में खेती-गृहस्थी का अपना महत्त्व था। लोग जमीनों को बंटने में नहीं, इकट्ठा रखने पर जोर देते थे। घर के सभी सदस्य खटते थे और घर के मालिक को अर्जित की गई धन-संपदा को सौंप देते थे। वही मालिक पूरे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करता था। इसलिए किसी एक पुरूष सदस्य की शादी की प्रथा थी। 
खैर, यह तो रही बीते दिनों की बातें। आइए अब चलते हैं यहां के सबसे सुंदर प्राकृतिक दृश्य टाइगर फाल को देखने जिसका नाम ही बहुत कुछ इशारा करता है। वाहन के जरिये चकराता से यहां दस मिनट में पहुंचा जा सकता है लेकिन यह उतना आनंददायक नहीं होता जितना कि जंगल में बने सर्पाकार रास्तों से होता है। चिड़ियों की चहचहाहट और पेड़ों की झुरमुट के नीचे मिलने वाली शीतलता किसी दूसरे लोक में विचरण का अहसास कराती हैं। छोटे-छोटे खेतों को पानी की ज़रूरतें पूरा कर ऊंचाई से ढलान 

की ओर आगे बढ़ता पानी के स्रोत और मुर्गों की बांग देख-सुन कर तो अपने गांव की याद आ जाती है। वहीं दीवान सिंह और चार-पांच साल की गुड्डी जैसे राहगीर के मिलते ही यह कहना कि आज हमारी छानी में चलो, पहाड़ के गांवों में भाईचारा और आदर-सत्कार की भावना को जीवंत रहने का प्रमाण है।
 छानी वह घर होता है जिसका ज्यादातर हिस्सा लकड़ी से बना होता है तो देखने में बड़ा ही आकर्षक होता है। तिकोना शेप लिए ऐसे घरों के विंडो और मुख्य दरवाजे छोटे-छोटे होते हैं। इसके सबसे ऊपरी भाग यानी तीसरी मंजिल पर घर के सदस्य होते हैं। उसके नीचे लोग ज़रूरत की चीजें रखते हैं। सबसे नीचे डंगर यानी मवेशी बांधने का स्थान होता है।
बर्फबारी के दिनों में राहत पाने के लिए लोग छानी में पनाह लेते हैं। इसी जगह रहते हुए वे खेतीबाड़ी का काम भी करते हैं। चाय के साथ मुढ़ी सामने रखते हुए इंद्रौली के दीवान सिंह बताते हैं कि हमारा घर ऊपर की तरफ है। अपना बहुत बड़ा मकान है लेकिन इन दिनों यहीं गुजर बसर करना पड़ रहा है। वे कहते हैं कि यहां के लोग गर्मी से डरते हैं, सर्दी से नहीं, इसीलिए प्लेन में जाने से भी बचना चाहते हैं। 
सर्दी में बर्फ के कारण रास्ते बंद होने और ज़रूरत की चीजें नहीं मिलने जैसे सवाल पर वे कहते हैं कि यहां के लोगों को कोई दिक्कत नहीं आती। लोग इन दिक्कतों के आने से पहले ही जरूरी इंतजाम कर लेते हैं। सर्दी पड़ने से पहले लोग बकरों को काट कर सुखा लेते हैं। इसकी वजह से सब्जियों की कमी नहीं खलती। बकरा यहां काफी पसंद किया जाता है। इस दौरान सगे-संबंधियों को दावत में खास तौर से बुलाया जाता है। जो लोग नहीं आ सकते, उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है। 
टाइगर फाल से अभी कुछ दूरी पर था कि किसी के गुनगुनाने की आवाज मिली। देखा रास्ते की दाईं तरफ खेत में एक व्यक्ति गाने के साथ काम में व्यस्त है। मेरे वहां रूकते ही समझा गया कि कोई बाहर से आया है। जब उससे गाने को जारी रखने को कहा तो बड़ा खुश हुआ। कहा, यह प्रसिद्ध लोकगीत है। यहां के वैशाखी मेले में इसकी खूब धूम रहती है। 
टाइगर फाल के करीब, जहां लगभग सत्तर फीट की ऊंचाई से पानी सीधे नीचे गिर रहा था। बड़ा मनोहारी दृश्य। झरने के नाम के माफिक वहां से पानी की आवाजें उठ रही हैं। ऐसा लग रहा था जैसे वाकई कोई टाइगर दहाड़ रहा हो। पानी भी बिल्कुल निर्मल। कहते हैं इस पानी में स्नान करने से बीमारियां दूर रहती हैं। यहां पहुंचने वाला हर कोई जी भरकर अपनी आंखों और कैमरों में प्रकृति के इस दृश्य को कैद करता नज़र आता है। इसके आसपास कुछ किलोमीटर की दूरी पर कई अन्य पर्यटन स्थल भी हैं, जो बरबस ही अपनी 
ओर खींचते हैं। जैसे कानासर, रामताल गार्डन, आदि। 
कैसे पहुंचें 
देहरादून तक का सफर करने के बाद चकराता पहुंचने के लिए आपके पास दो विकल्प होते हैं। एक तो आप कैंपटी फाल, यमुना पुल और लखवाड़ होते हुए जा सकते हैं, दूसरा देहरादून से वाया कालसी होते हुए पहुंच सकते हैं। दोनों विकल्प के लिए पहले आपको देहरादून स्थित बस स्टैंड जाना होगा।  
कब जाएं
चकराता की मनोरम छटा की सैर करने का मन बनाने से पहले मौसम का ख्याल रखना जरूरी है क्योंकि हो सकता है कि मूसलाधार बारिश और अत्यधिक ठंड के कारण आप मुसीबत में पड़ जाएं। यहां पर एक तरफ जहां बरसात में मार्ग क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है, वहीं सर्दी में बर्फबारी होने के कारण ठंड चरम सीमा पर पहुंच जाती है। इन दिनों जंगली जानवर भी बचने के लिए पहाड़ी से आबादी की तरफ रूख कर लेते हैं। इसलिए आप अप्रैल से जून और सितंबर से दिसंबर का प्रोग्राम बनाएं, तो बेहतर रहेगा।
किन बातों का रखें ख्याल
यहां की सैर करते वक्त बिना जानकारी लिए कहीं नहीं जाएं क्योंकि हो सकता है कि आप जंगलों के बीच भटक जाएं। बस सुविधा भी शाम के समय जल्दी बंद हो जाती है, इसलिए समय से अपने होटल तक पहुंचने की कोशिश करें। साथ ही आर्मी के जवानों का ट्रेनिंग प्लेस होने के कारण कहीं भी जाने का ख्याल नहीं लाएं। फोटोग्राफी भी उन्हीं स्थान की करें जिस पर किसी तरह की आपत्ति नहीं उठाई जा सके। (उर्वशी)