विवाह की प्रदर्शन-प्रियता
देश के आज़ाद होने से लेकर आज तक चेतना सम्पन्न पत्रकार और विद्वान सज्जन जाति मुक्त भारत को उम्मीद की निगाहों से देखते रहे हैं, परन्तु जब देश में आम चुनाव होता है अथवा एक परिवार अपने बेटे-बेटी के लिए योग्य रिश्ते की तलाश में निकलता है तो जातिगत जकड़न सामने आ जाती है। आप अखबारों में विवाह के विज्ञापनों पर एक नज़र डालें-ब्राह्मण ब्राह्मण में ही विवाह करना चाहेंगे। यही हाल अन्य जातियों और सम्प्रदायों का है। पढ़े-लिखे परिवार भी संकीर्ण होते चले जा रहे हैं। टेवा मिलाना, राशिफल देखना, यह सब रिश्ता खोज पाने में मदद नहीं करता। लिहाज़ा शादी की उम्र पर असर पड़ता है।
अब शादी एक बेहद खर्चीली रस्म होती चली जा रही है। शानदार हाल, व्यापक ताम-झाम, सब पर लाखों रुपया व्यय होने लगा है। सम्पन्न लोग तो मानो पूरी ताकत ऐसे समारोह पर दिखाने लगे हैं। आजकल सभी ओर अनंत अम्बानी और राधिका मर्चेंट का शुभ विवाह काफी चर्चा में है। सात महीने तक उत्सव का माहौल बना रहा। विवाह पूर्व हुए उत्सवों में जामनगर में एक भव्य समारोह हुआ, जहां एयरफोर्स स्टेशन को नागरिक निजी जेट विमानों के लिए खोला गया था। उसके बाद भूमध्य सागर में चार दिवसीय लग्जरी क्रूज का आयोजन किया गया और विवाह समारोह के लिए अनेक कार्यक्रम रखे गये। भारतीय हस्तियां तो शामिल हुई ही थीं जस्टिन बीवर, किम कार्दशियन, रिहाना, बिल गेटस, हवांका ट्रम्प जैसी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय हस्तियां और सम्मानित मेहमान हाजिर रहे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी रिसैप्शन में उपस्थित रहे।
पूरे विवाह में जो खर्च का अनुमान लगाया जा रहा है। वह लगभग पांच हज़ार करोड़ की बड़ी राशि है। अकेले नीता अम्बानी का पन्ना जड़ित हीरा हार पांच सौ करोड़ का बताया जा रहा है, जिसे देख पाना भी शायद आम लोगों के नसीब में न हो। वे सपना भी शायद ही देख पायें।
इस पर दो तरह की राय व्यक्त की गई है। पहली यह कि वे धनपति हैं। करोड़ों रुपया कमाते हैं। उसका एक अंश बेटे के विवाह पर खर्च हो भी गया तो कोई बात नहीं। यह सामान्य किस्म की राय है। दूसरी राय यह बनती है कि धन-बल का इतना प्रदर्शन सामाजिक लय के लिए ठीक नहीं। इतना भव्य प्रदर्शन, जहां एक बड़ी जनसंख्या को दो वक्त की रोटी के लिए जी-जान से जुटना पड़ता है, अनुचित माना जाना चाहिए। कुछ लोगों ने ईर्ष्या के कारण सख्त आलोचना की। कुछ लोगों को लगा कि इससे विवाह, होटल उद्योग और फूड उद्योग को नई ऊंचाई मिली है।
आज शादियां महोत्सव बन चुकी हैं। यह बात जितनी उच्च वर्ग के लिए सत्य है, उतनी ही मध्यम वर्ग के लिए भी, लेकिन ऐसे भव्य समारोहों का निम्न वर्ग पर किस तरह का असर होता है, यह सोच-विचार का मुद्दा है। ऐसे परिवार जिनकी आय सीमित है, जो वैभवशाली समारोह नहीं आयोजित कर सकते, स्टेटस और प्रदर्शन के लिए आय/बचत से कहीं बढ़कर खर्च करेंगे, जिससे या तो अनुचित साधनों का उपयोग करना पड़ेगा या फिर भारी कज़र् उठाना पड़ सकता है। लाइव परफार्मर, डी.जे., भव्य सजावट, खाने की विविधता भरपूर सजी हुई मेजें और अन्य कई शानदार कार्यक्रम, वे भी अलग-अलग होटलों में, काफी बड़ा ताम-झाम है और खूब खर्च की मांग करता है। दहेज में भी काफी बड़ी रकम खर्च होने लगी है। डेस्टिनेशन वैडिंग में तो पूरे का पूरा पांच सितारा होटल ही बुक कर लिया जाता है। वेडिंग प्लानर, इवैंट मैनेजर की मांग भी होने लगी है। हम इस प्रदर्शन प्रियता में किस हद तक जाने वाले हैं? समाज के लिए धन के बहाव और प्रदर्शन प्रियता का क्या और कैसा सन्देश है? यही सोचने का समय है।