जलवायु समस्या को लेकर भारत के प्रयास अहम
वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की जीवन शैली के प्रतिदर्श में सकारात्मक परिवर्तन के लिए भारत की भूमिका महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय है। नीतियां और वैश्विक व्यवस्था की पहल समस्त बुराइयों पर राहत नहीं दे सकती जब तक भारत सहित वैश्विक समुदाय इस महायज्ञ में आहुति देने के लिए संकल्पित भाव से काम न कर सके। किसी भी काम की गुणवत्ता, उसके कार्यकर्ता के कार्य, प्रभाव, महत्वपूर्ण भूमिका और व्यक्तित्व से होता है। व्यक्तिगत क्रियाएं और मानवीय व्यवहार प्रतिदर्श जलवायु से संबंधित क्रियाएं और जलवायु से संबंधित मुद्दों के समाधान का एक महत्वपूर्ण भाग हो सकता है।
वैश्चिक स्तर पर जलवायु समस्या के समाधान के लिए भारत का प्रयास महत्वपूर्ण और आवश्यक है क्योंकि भारत वैश्चिक स्तर पर उभरता नेतृत्व है जो विकसित और विकासशील राष्ट्रों-राज्यों का नेतृत्व कर रहा है। भारत अपने लोगों को हरित विकल्पों और टिकाऊ उपभोग प्रतिदर्श अपनाने में सहयोगी है। यह अच्छा प्रयास है जो चिरकाल तक युवाओं के व्यवहार में आकर उनकी आदत बन जाती है। भारत वैश्विक स्तर पर युवाओं को जलवायु अनुकूल और टिकाऊ उपभोग के प्रेरक कार्य जलवायु न्याय की दिशा में उपादेय सिद्ध होगा।
भारत सम्पूर्ण संसार के लिए एवं पृथ्वी ग्रह के स्वास्थ्य के रख रखाव के अपने मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में समानता और जलवायु न्याय के साथ एक सामूहिक यात्रा करने का क्षमता और धारिता रखता हैं। भारत का भूमंडलीय तापन और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक स्तर के संघर्ष में महान योगदान है।
उत्पादन, वितरण एवं उपभोग के हर चरण में हम सभी को प्रकृति, पर्यावरण और मातृ-भूमि का ध्यान रखना चाहिए। वर्तमान में जब संपूर्ण दुनिया जलवायु संकट से जूझ रही है, तो विश्व समुदाय भारत की ओर देख रहा है। भारत ने प्रकृति अनुकूल व्यवहार और परम्पराओं से यह प्रमाणिकता अर्जित की है। वर्तमान में भारत ग्रीन हाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। इसके पीछे उत्तरदाई कारक है कि भारत वैश्विक स्तर पर दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है। भारत को ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जिसके लिए अधिकांश विकसित राष्ट्र-राज्य ज़िम्मेदार हैं। वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर लगभग सभी बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों एवं बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में नियम-निर्धारक की भूमिका निभा रहा है जो विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित है। भारत में परम्परागत सरल जीवन शैली और व्यक्तिगत प्रथाएं, जो प्रकृति में दीर्घकालिक हैं, पृथ्वी के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती हैं। यह कार्य निश्चित तौर पर भूमंडलीय तापिश के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस कदम से प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव न्यून किया जा सकता है। इससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है।
भारत ने वैश्विक स्तर पर अपने दीर्घकालिक उत्सर्जन विकास रोड मैप को प्रस्तुत किया है और वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने घरेलू स्तर पर निर्धारित योगदान का वर्णन किया है। भारत विकसित राष्ट्रों-राज्यों से वित्तीय सहायता की वकालत करता है जिससे वह विकासशील राष्ट्रों-राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सहयोग कर सके। भारत ने वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन में कटौती के वादों को भी दोहराया है। भारत में पहले ही दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति पर काम कर रहा है जो प्रमुख आर्थिक क्षेत्र में उत्सर्जन कम करने पर जोर दोती है। भारत नवीकरणीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, एथेनॉल मिश्रित ईंधन और हरित ऊर्जा के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है। भारत ने मानव जाति के सुखमय और आनंदमय भविष्य के लिए स्वस्थ जीवन शैली की सदा पैरवी की है। (युवराज)