अंतरिक्ष में नये आयाम स्थापित करता भारत
भारत ने वर्ष 2025 की शुरुआत के साथ ही अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। इसरो ने अंतरिक्ष में ही स्पेडेक्स मिशन के दो सैटेलाइट मॉड्यूल आपस में जोड़ लिए हैं। इस मिशन में ‘डॉकिंग’ की प्रक्रिया पूरी हो गई है। यह क्षमता हासिल करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया है। इस मिशन के लिए 30 दिसम्बर, 2024 को सैटेलाइट छोड़े गए थे और बाद में धीमे-धीमे इन सैटेलाइट को पास लाकर जोड़ दिया गया। इसरो अब इसी मिशन के शेष रहते लक्ष्य पूरा करने के लिए कदम बढ़ाएगा।
इसरो ने 16 जनवरी, 2025 को यह जानकारी देते हुए अपने ट्विटर पर लिखा, ‘स्पेस क्राफ्ट डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई। यह एक ऐतिहासिक क्षण था। पहले 15 मीटर से 3 मीटर होल्ड पॉइंट तक पास लाया गया। डॉकिंग की शुरुआत सटीकता के साथ हुई, इसके बाद अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक कैप्चर किया गया। डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई। भारत अंतरिक्ष डॉकिंग को सफल बनाने वाला चौथा देश बन गया। पूरी टीम को बधाई! भारत को बधाई!’
इसरो की इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बधाई दी है। उन्होंने ‘एक्स’ (पहले ट्विटर) पर लिखा, ‘सैटेलाइट की अंतरिक्ष डॉकिंग में सफलता के लिए सफल प्रदर्शन के लिए इसरो के हमारे वैज्ञानिकों और पूरे समुदाय को बधाई। यह आने वाले वर्षों में भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।’
इस मिशन की सफलता भारत को अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने, अपने अंतरिक्ष यात्री को भेजने और बाकी स्पेस मिशन पूरे करने में मदद करेगी। इसरो ने जो प्रक्रिया पूरी की है, उसे डॉकिंग कहा जाता है। डॉकिंग से पहले दोनों सैटेलाइट मॉड्यूल अलग थे।
इसरो द्वारा लॉन्च किए गए मिशन में से एसडीएक्स-01 चेसर सैटेलाइट है जबकि एसडीएक्स-02 टार्गेट सैटेलाइट है। इसका मतलब है कि एसडीएक्स-01 कक्षा में स्थापित किए जाने के बाद एसडीएक्स-02 की तरफ बढ़ा और अंत में दोनों जुड़ गए। पीएसएलवी सी-60 रॉकेट ने इन्हें आपस में लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर छोड़ा था। इसके बाद इन्हें जोड़ने की प्रक्रिया चालू की गई। दोनों सैटेलाइट को जोड़ने की प्रक्रिया यानि डॉकिंग 7 जनवरी, 2025 को चालू की गई। इसके लिए सबसे पहले दोनों को 20 किलोमीटर की दूरी पर रोका गया था। इसके बाद टार्गेट सैटेलाइट एसडीएक्स-01 को स्टार्ट किया गया। 10 जनवरी, 2025 को यह दोनों 1.5 किलोमीटर पास लाए गए। 11 जनवरी को 225 मीटर पर लाए गए। 12 जनवरी को यह 100 मीटर पर आए। इस बाद इसरो ने इन्हें 15 मीटर और फिर 3 मीटर करीब लाया। दोनों को फिर वापस 15 मीटर पर ले जाया गया। इसके बाद 16 जनवरी, 2025 की सुबह दोनों मॉड्यूल आपस में जोड़ दिए गए। अब इन पर आगे और भी प्रयोग भी किए जाएंगे।
अब सारे प्रयोग पूरे होने के बाद दोनों सैटेलाइट को अनडॉक यानी एक-दूसरे से अलग भी किया जाएगा। यह दोनों इसके बाद लगभग 2 साल तक अलग-अलग प्रयोग में काम आएंगे। एसडीएक्स-01 सैटेलाइट पर छोटे कैमरे भी लगे हुए हैं। यह कैमरे इसके बाद तस्वीरें और वीडियो लेंगे। इसके अलावा भी इस पर कई सेंसर लगे हैं। यह सेंसर अंतरिक्ष में होने वाली गतिविधियों का पता लगाएंगे। इनमें से एक सेंसर रेडियेशन का स्तर भी मापेगा। इन सैटेलाइट को भारत में स्थित सैटेलाइट नियंत्रण सेंटर से नियंत्रित किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार इसरो ने पिछले दिनों रात 10 बजे श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-60 रॉकेट लॉन्च किया था। इस रॉकेट पर कुल 24 सैटेलाइट लदे हुए थे। इनमें से सबसे प्रमुख दो सैटेलाइट थे, जिनकी डॉकिंग होनी थी। इसरो ने इन सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अब अंतरिक्ष में ही जोड़ लिया।
ये दोनों सैटेलाइट अंतरिक्ष में पृथ्वी से 470 किलोमीटर की ऊंचाई और 55 अंश के कोण पर छोड़े गए थे। डॉकिंग को सरल भाषा में समझा जाए, तो यह दो सैटेलाइट (मॉड्यूल) को अंतरिक्ष में जोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं। यह कुछ-कुछ ज़मीन पर कोई पुल बनाने जैसा है। जिस तरह पुल के अलग-अलग हिस्से आपस में जोड़े जाते हैं, उसी तरह डॉकिंग में भी दो या उससे अधिक सैटेलाइट आपस में जोड़े जाते हैं। यह पूरी सरंचना किसी विशेष काम के लिए उपयोग होती है।
डॉकिंग का उपयोग वर्तमान में दो सैटेलाइट के बीच किन्हीं वस्तुओं के आदान प्रदान समेत बाकी काम के लिए होता है। अंतरिक्ष में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन भी इसी सिद्धांत पर काम करता है। इसका निर्माण भी डॉकिंग के ज़रिए हुआ था। इसमें सामान की आपूर्ति भी डॉकिंग के ज़रिए ही होती है। दरअसल, कई ऐसे सैटेलाइट या फिर मॉड्यूल होते हैं, जिन्हें एक बार में रॉकेट नहीं ले जा सकते। ऐसे में उन्हें अलग-अलग हिस्से में भेज कर अंतरिक्ष में जोड़ा जाता है। इसी तकनीक इसरो ने इस स्पेडेक्स मिशन (स्पेस डॉकिंग एक्सरसाइज) के ज़रिए हासिल किया है।
जानकारी के अनुसार अब तक विश्व के तीन देश ही यह डॉकिंग की तकनीक हासिल कर सके थे। ये देश अमेरिका, रूस और चीन हैं। 16 जनवरी, 2025 को भारत भी इस लीग में शामिल हो गया है। इस तकनीकी तरक्की का फायदा इसरो को आगे के मिशन में मिलेगा। भारत ने अंतरिक्ष में अपना भी स्पेस स्टेशन बनाने का ऐलान किया है। डॉकिंग में सफलता इसके रास्ते खोलेगी। भारत को 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन बनाना है, इसके लिए 2028 से काम चालू होगा, ऐसा बताया जा रहा है। इसके लिए एक-एक कर इसके हिस्से अंतरिक्ष पहुंचाए जाते रहेंगे। इसके पूरे होने पर इसमें भारतीय एस्ट्रोनॉट जा सकेंगे। इसके अलावा यह प्रक्रिया चंद्रमा पर भारतीय यात्री भेजने, वहां से सैंपल वापिस लाने समेत बाकी मिशन के लिए मील का पत्थर होगी। ऐसा इसरों के वैज्ञानिकों ने दावा किया है। (युवाराज)