कहानी-सात घंटे

आसमान में बादल घुमड़ते देख मीना ने सोचा कि चाहे अभी कपड़े सूखे नहीं हैं, पर अब इन्हें अंदर ले जाना ही ठीक है। घर में उसकी सात वर्षीय नातिन के अतिरिक्त और कोई था नहीं, और 70 वर्ष की इस आयु में वर्षा के बीच कपड़े उतारना उसे बहुत कठिन लगता था।
दरवाजा खुला छोड़कर वह कुछ दूरी पर टंगे कपड़े उतारने चली गई और फिर कपड़े समेट कर कमरे में प्रवेश किया। उसी समय पर्दे के पीछे से दो अनजान आदमी अचानक उस पर झपट पड़े। एक ने उसे पिस्तौल दिखाई व दरवाजे की कुंडी बंद कर दी। दूसरे ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया, फिर उसे पर्दे के पीछे घसीट कर तख्त पर गिरा दिया ताकि बाहर से गुजरने वालों को नज़र न आए।
मीना बुरी तरह घबरा गई थी, फिर भी उसने और ध्यान से देखा। नहीं उन दोनों में से किसी आदमी को वह पहचानती नहीं थी। एक आदमी कुछ लंबा-चौड़ा, गंभीर था, वह युवावस्था पार करने के नज़दीक था। दूसरा, जिसने उसे गिराया था, छोटे कद का युवक था। दोनों के चेहरे पर कठोरता थी, शरीर की हलचल में घबराहट थी।
युवक ने और भी कठोर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘बुढ़िया बिल्कुल सही बताना कि घर में और कौन है। जरा भी गलत बताया तो न तू बचेगी न दूसरे लोग। फोन के पास भूल कर भी मत जाना।’
मीना बहुत डर गई थी, पर उसने अपने को संभाला। उसने कहा - ‘इस समय घर में केवल मेरी छोटी नातिन है। वह स्कूल से आई है, टीवी देख रही है।’
उसी समय गर्जन के साथ तेज़ बारिश शुरू हुई और खुली खिड़की से कुछ छींटे अंदर पहुंचे।
बड़े वाले आदमी ने कुछ संयत स्वर में पूछा, ‘अभी किसी के घर आने का चांस है।’
मीना ने कहा - ‘नहीं’
‘देखो आप सभी खिड़िकयां ऐसे बंद कर दो जैसे तेज़ बारिश आने पर करती हो। बाहर से कोई गुजरे तो ध्यान न देना या कम से कम बात करना।’
मीना ने सब खिड़कियां बंद कर दीं। कोई बाहर नज़र नहीं आया।
‘अब दरवाजे की ऊपर की कुंडी भी लगा दो और भीतर वाला दरवाजा भी बंद कर उसकी भी कुंडी लगा दो।’
मीना ने ऐसा ही किया।
‘अब तुम अपनी नातिन को जाकर कहो दो अंकल आए हैं, वह अपना टीवी देखती रहे। ध्यान रखना तुम दोनों हमारी पिस्तौल के दायरे में हो। जरा भी गड़बड़ मत करना।’
मीना सुमिता के पास गई और अपने कांपते हुए स्वर को नियंत्रित कर बोली, ‘सुमि दो अंकल मिलने आए हैं। तुम यहीं टीवी देखो मैं अभी उन्हें चाय पिलाकर आती हूँ।’
सुमि एक बहुत प्यारी सी बच्ची थी और नानी से उसे बहुत प्यार था। नानी के हाथों से खेलते हुए उसने कहा, ‘मैं भी मिलूंगी अंकल से।’
‘अरे बेटी तुम अपना प्रोग्राम तो देख लो।’
‘अभी तो एड आ रहा है नानी दो मिनट में मिल आती हूँ।’
यह कहते-कहते वह दूसरे कमरे में खुद भाग गई। मीना उसके पीछे भागी।
बड़े आंगुतक ने फुर्ती से अपनी पिस्तौल तकिए के नीचे छिपा दी।
‘नमस्ते अंकल’, सुमि ने जाकर बहुत प्यार और आदर से झुककर दोनों को नमस्ते की।
दोनों आगुंतक सकपका गए। बस ‘नमस्ते’ बुदबुदा सके।
‘अंकल आप पहले नहीं आए न। नहीं तो मैं तुरंत पहचान जाती। आप पापा के दोस्त हो।’
बड़े आगुंतक ने कहा, ‘नहीं बेटी, हमें तो आपकी नानी ने बुलाया है।’
‘तभी तो’ सुमिता ने बहुत आत्मविश्वास से कहा, ‘पापा के तो सब दोस्तों को मैं पहचानती हूं। अच्छा नानी आप को कब से जानती है।’
इतने में मीना ने कहा, ‘सुमिता एड खत्म हो गया। अब अपना प्रोग्राम देख लो नहीं तो बाद में कहोगी कि मिस हो गया है।’
‘ओह सारी अंकल आज जेठालाल वाला सीरियल बहुत मजेदार आ रहा है। मैं देख लूँ जरा।’
‘हां हां बेटी ज़रूर देखो’।
सुमि टीवी वाले कमरे में चली गई तो दोनों आगुंतकों ने जैसे राहत की सांस ली कि और सवाल नहीं झेलने पड़ेंगे। बड़े वाले आगुंतक ने तकिए की नीचे पिस्तौल लेने के लिए हाथ डाला ही था कि इतने में सुमि तेजी से वापस आ गई। दोनों सकपका गए और मुस्कराने की कोशिश करने लगे।
‘अंकल आप भी देखोगे सीरियल। आज बहुत मजेदार है। टप्पू सेना ने चोर को पकड़ने की पूरी तैयारी कर ली है।’
‘नहीं बेटी, आप देखो, हमें अभी कुछ काम है।’
‘ठीक है, अंकल, फिर आती हूँ बाद में’, कहकर सुमि उतनी ही तेज़ी से चली गई जितनी तेज़ी से आई थी।
उसके जाते ही बड़े आगुंतक ने आसपास देखा, फिर चुपके से तकिए के नीचे से पिस्तौल निकाल कर जेब में डाल ली।
कुछ ही समय में मीना कमरे में से कुछ लेने आई तो बड़े आगंतुक ने कहा, ‘माता जी, दो मिनट मैं आपसे बात कर लूं।’
‘हां, कहो’।
‘माता जी, हम कुछ घंटों के लिए यहां हैं। रात गहराते ही चले जाएंगे। कुछ ऐसे हालात बने हैं कि हमारा बुरी तरह पीछा हो रहा है और बचने के लिए हमें जो घर सामने दिखा, उसमें ही घुसना पड़ा। बस कुछ घंटे आपको वह सब करना पड़ेगा जो हम कहेंगे। कोई दरवाजे पर आए, कोई फोन करे तो आप अटेंड करेंगी, बच्ची नहीं। कोई आएगा तो बहाना लगाकर आप उसे दरवाजे से ही लौट कोई फोन आएगा तो बस यही कहना है कि सब ठीक-ठाक है, बिजी हूं तसल्ली से बात बाद में करती हूँ। बात को बढ़ाना नहीं है, अपने से कोई फोन करना नहीं है। बच्ची न कोई फोन करेगी, न उठाएगी।’ (क्रमश:)

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