सभी धर्मों का-तीर्थ स्थान शिरडी
भारत देश में धर्म और धार्मिक स्थानों का जितना महत्त्व है, उतना शायद ही कहीं हो। शायद इसीलिये भारत को तीर्थों का देश कहा जाता है। इतने तीर्थ स्थान होने के बावजूद यहां का प्रत्येक नागरिक इतना श्रद्धालु है कि वह सभी तीर्थों की यात्रा करता है और अपना जीवन धन्य करता है।
इसी भारत देश में एक पवित्र एवं तीर्थ स्थान है शिरडी महाराष्ट्र राज्य के अहमद नगर ज़िले में कोपरगांव तहसील का एक छोटा सा स्थान शिरडी जहां की पवित्रता इतनी विशाल है कि भारत का प्रत्येक निवासी अपने जीवन में एक बार शिरडी जाने की चाह रखता है। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख सभी पंथ के लोग इस पावन स्थल पर दर्शनार्थ आते रहते हैं।
साईं बाबा के नाम से विख्यात शिरड़ी एक प्रकार से साईंनाथ का ही घर है। आज से लगभग 153 वर्ष पूर्व साईं बाबा स्वयं यहां एक बालक के रूप में पधारे थे। फकीर के वेश में बाबा एक बारात में शिरडी। पधारे थे परन्तु शिरडी से वापस नहीं लौटे और शिरडी को ही अपना निवास बना लिया। बाबा के जन्म के बारे में किसी को कोई ज्ञान नहीं था। वे कौन से धर्म से सम्बद्ध थे, इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता था। यदा कदा कोई भक्त बाबा से उनका धर्म जानना चाहता, तो वे उत्तर देते कि मैं एक फकीर हूं, प्रत्येक हिंदू के लिए और एक शुद्ध ब्राह्मण हूं प्रत्येक मुस्लिम के लिए। बाबा की नज़र में हिंदू मुस्लिम सभी एक थे। अमीर गरीब सभी उनके भक्त थे।
एक फकीर की तरह वस्त्र धारण कर सिर पर श्वेत कपड़ा बांधना बाबा का आभूषण था। नीम के वृक्ष के नीचे बैठक हुक्का पीना, चूल्हे पर अपना भोजन स्वयं बनाना, बाबा की दिनचर्या का एक हिस्सा था। बाबा सदैव ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए तैयार रहते थे।
साईं बाबा ने शिरडी में जब अपना घर बनवाया तो वहां के प्रतिष्ठित लोगों ने इसका विरोध किया। जब बाबा भिक्षाटन के लिए जाते तो उन्हें अमीर लोग भिक्षा नहीं देते थे। दीवाली के दिन दीप जलाने के लिए किसी ने भी बाबा को दो बूंद तेल नहीं दिया, तब बाबा ने पानी से दीप जलाकर अपनी दीवाली बनाई। बाबा के ऐसे चमत्कारों से उनके भक्त शिरडी में ही नहीं, अपितु आसपास के गांवों में भी बन गए। अब शिरडी के लोग उनके नियमित भक्त थे ही, साथ ही बाहर के लोग भी उनके दर्शनार्थ आने लगे थे। इसी तरह भक्तों के बीच 60 वर्ष गुजार कर बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया।
बाबा शिरडी में जिस स्थान पर रहते थे, वहां आज एक विशाल मंदिर बना है। नीम के वृक्ष के नीचे जहां बाबा बैठकर शाम को समय बिताते थे, उसे गुरू स्थान के नाम से जाना जाता है। जिन बर्तनों में बाबा भोजन बनाते थे, वे बर्तन, चूल्हा आदि आज भी सुरक्षित रखे हैं। बाबा द्वारा प्रज्ज्वलित धूनी आज भी जल रही है। अपनी मृत्यु के पूर्व बाबा ने कहा था कि जो मेरे पास शिरड़ी आएगा, कभी निराश होकर नहीं जाएगा। यहां आने वाले मेरे सभी भक्तों पर मेरा आशीष रहेगा।
वूटी वाड़ा वह स्थान है जहां बाबा को मृत्यु के पश्चात रखा गया था। इस स्थान पर बाबा की विशाल प्रतिमा स्थित है। यह मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए प्रात: 5 बजे से रात्रि 11 बजे तक खुला रहता है। यहां बाबा ने धूनी जलाई थी, जो आज भी जल रही है, इस स्थान को द्वारका माई के नाम से जाना जाता है।
मंदिर में प्रात: काल की काकड़ आरती, सायंकाल की आरती और रात्रि में शेजारती होती है। इस आरती में भक्तों की संख्या इतनी अधिक होती है कि अधिकांश भक्तों को बाहर टीवी व्यवस्था द्वारा दर्शन हो पाते हैं।
चावड़ी वह स्थान है, जहां बाबा काकड़ आरती व शेजारती में उपस्थित रहते हैं, ऐसी मान्यता है। बाबा के विचरण सिहार के स्थान को ’लैंडी बाग’ के नाम से जाना जाता है। बाबा के मुस्लिम भक्तों की दरगाह भी शिरड़ी मंदिर के सामने ही है।
ठहरने के लिए होटलों के अतिरिक्त धर्मशालाएं भी हैं जहां उत्तम व्यवस्था है। भोजन की व्यवस्था भी उत्तम है। बाबा की आरती के पश्चात प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों को बहुत सस्ती दरों पर भरपेट भोजन करवाया जाता है। भोजनालय इतना विशाल है कि 4-5 हजार लोग एक साथ भोजन कर सकते हैं। कैंटीन और उद्यान की सुविधा भी है।
श्रद्धा और सबूरी का संदेश देने वाला यह स्थान शांत एवं आकर्षक है। इस स्थान पर किसी भी धर्म के लोग आ सकते हैं। यहां सभी धर्मों के लोगों को समान भाव से देखा जाता है। बाबा के भक्त भी सभी धर्मों से संबंध रखते हैं, इसलिए यहां हर धर्म का व्यक्ति अपनापन महसूस करता है। भक्तों से कभी खाली न रहने वाले इस तीर्थ स्थल पर आकर सभी अपने आप को धन्य समझते हैं। आज के विपरीत माहौल में भी यह तीर्थ सर्वधर्म समभाव का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो हमारे लिए गर्व की बात है। (उर्वशी)